🙏सहजो बाई की गुरु भक्ति🙏
आज सहजो अपनी कुटिया के द्वार पर बैठी है, उसकी गुरुभक्ति से प्रसन्न होकर परमात्मा प्रकट हुए हैं । पर सहजो के अन्दर कोई उत्साह नहीं । कहा - सहजो हम स्वयं चलकर आऐ हैं तुम्हे हर्ष नही ?
सहजो ने कहा --
प्रभु ये तो आपने अहेतुक कृपा की है, पर मुझे तो आपके दर्शन की भी कामना नही थी। परमात्मा को झटका लगा। ऐसा तेरे पास क्या है , जो तू मेरा आतिथ्य भी नही करती ? सहजो-- मेरे पास मेरा सद्गुरु समर्थ है। मैने तुम्हे अपने सद्गुरु मे पा लिया है, मैं परमात्म तत्व का दर्शन भी करना चाहती हूँ तो केवल अपने सद्गुरु के रूप मे। मुझे आपके दर्शनो की कोई अभिलाषा नही है , यदि मै गुरुदेव को कहती तो वह कभी का तुम्हे उठाकर मेरी झोली मे डाल देते।
ये भाव देखकर आज परमात्मा पिघल गया। कहा - सहजो मुझे अदंर आने के लिए नही कहोगी?
सहजो कहती है- प्रभु मेरी कुटिया के भीतर एक ही आसन है और उस पर भी मेरे सद्गुरु विराजते हैं, क्या आप भूमि पर बैठकर मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगें ? तुम जहाँ कहोगी वहाँ बैठेंगें। भीतर तो आने दो प्रभु ने कहा।देखा सचमुच एक ही आसन है। भूमि पर बैठ गया ठाकुर। कहा -- सहजो मैं जहाँ जाता हूँ कुछ न कुछ देता हूँ ऐसा मेरा नियम है । कुछ माँग लो।
सहजो कहती है -- मेरे जीवन मे कोई कामना नही है। प्रभु-- फिर भी कुछ तो माँग लो । कहा ठाकुर तुम मुझे क्या दोगे ? तुम तो स्वयं एक दान हो, जिसे मेरा दाता सद्गुरु किसी को भी जब चाहे दान कर देता है। अब बताओ दान बड़ा या दाता ? तुमने तो जन्म मरण, रोग भोग मे उलझाया, ये तो मेरे सदगुरु ने कृपा कर सब छुड़ाया।
प्रभु-- सहजो आज मेरी मर्यादा रख ले, कुछ सेवा ही दे दे। कहा - प्रभु एक सेवा है, मेरे सद्गुरु आने वाले हैं, जब मैं उन्हे भोजन कराऊँ तो क्या तुम उनके पीछे खड़े होकर चमर डुला सकते हो ?
कथा कहती है प्रभु ने सहजो के गुरु चरणदास पर चमर डुलाया।
जय सद्गुरू देव महाराज और सहजो बाई की अविचल अटूट ग्रुरू भक्ति ....!
जय जय श्री राधे ।
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