श्रीमहाराज जी द्वारा एक साधक को उसके प्रश्न का उत्तर--



बेटा-बेटी नाती-पोते के विवाह में लाखो-करोड़ो की धनराशि में आप लोग प्रसन्नतापूर्वक आग लगा देते है(समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिऐ), हास्पीटलो में लाखो खर्च करते है (नाशवान शरीर में आसक्ति के कारण), कोठी-बंगले-मकान-दुकान आदि में करोड़ो स्वाहा कर देते है (दिखावे में आकर या इससे सुख मिलेगा ऐसे अज्ञान के कारण), जीवन भर की पूंजी जोड़कर संतान के लिऐ छोड़कर मर जाते है (उनको अपना मानकर जबकि जीते-जी भी यह पूर्णरूप से असत्य सिद्ध होते हुऐ हजारो बार देख चुके है)।
लेकिन अगर गुरु/संत कह दे कि ज़रा 2-4 लाख की धनराशि तुमको इस सेवा (मंदिर/अस्पताल/प्रवचन आदि में ) में लगानी है या इतना सेवा लाकर हमको दो आदि; तब नापिऐ आप अपनी भगवत्शरणागति/गुरु-शरणागति की सच्चाई जिसकी बड़ी-बड़ी डींगे आप दुनिया के सामने स्वयम् को परम हरिभक्त घोषित करने के लिऐ मारते नही थकते और सोचो कि तब कितने एक से एक बहाने आते है आपकी दो कौड़ी की मायिक खोपड़ी में कि गुरु जी से ये कह दे तो बच जाये या ये कहके बच जाऐ, ये जानते हुऐ कि गुरु जी अंतर्यामी है और जो कह रहे है वो केवल हमारे कल्याण के लिऐ कह रहे है ।
खैर!! हम आपसे बस इतना ही कहना चाहते है कि इन सब पैमानो के हिसाब से स्वयम् की अवस्था तथा उन्नति या अवनति का हिसाब लगाते रहिऐ ताकि आप कम से कम खुद को तो धोखा ना दे (क्योकि भगवान/गुरु को तो चाहकर भी आप धोखा दे नही सकते) कि हम तो परम भगवद्भक्त है या गुरु-शरणागत है या हम में तो अब कोई दोष बचा ही नही या हम तो बस अब पूर्ण ही हो चुके है आदि आदि ।
बड़ी सीधी सी बात है लगाओ हिसाब कि साल भर में कितना तन-मन-धन संसार में लगाया और कितना हरि-गुरु में; आप स्वयम् ही अपनी सच्चाई जान जाओगे, और फिर उसको सुधारने का भरकस प्रयास करो अगर वास्तव में भगवदीय क्षेत्र में कुछ चाहते हो तो ।
जय श्री राधे।

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