💞गुरू महिमा💞
गुरु क्या है ?
गुरु का महत्व क्या है ?
गुरु निमित्त है या सर्वस्व है ?
गुरु सब कुछ है, अगर हमें मार्गदर्शक चाहिए तो वो मार्ग दर्शक है ।
हम जो भी माने , श्री गुरु उसी रूप में आ जाते है है ।
हमारे लिए गुरु सर्वस्व है,भगवान है, और प्रेमी है ।
बस इसी तरह गुरु की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है ,
बस उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है।
गुरू एक तेज हे जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हे ।
गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हे ।
गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे।
गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो भवसागर पार हो जाते हे।
गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे।
गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे।
गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हे।
गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई कभी प्यासा नही।
गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती हे।
गुरू वो कृपा हि हे जो सब शिष्यो को समान रूप मे मिलती हे,
लेकिन सब अपनी अपनी योग्यता अनुसार पा सकते है ।
गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे।
गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही पड़ती।
गुरु गुरु गुरु.................
जय जय श्री राधे
गुरु क्या है ?
गुरु का महत्व क्या है ?
गुरु निमित्त है या सर्वस्व है ?
गुरु सब कुछ है, अगर हमें मार्गदर्शक चाहिए तो वो मार्ग दर्शक है ।
हम जो भी माने , श्री गुरु उसी रूप में आ जाते है है ।
हमारे लिए गुरु सर्वस्व है,भगवान है, और प्रेमी है ।
बस इसी तरह गुरु की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है ,
बस उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है।
गुरू एक तेज हे जिनके आते ही सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हे ।
गुरू वो मृदंग हे जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते हे ।
गुरू वो ज्ञान हे जिसके मिलते ही पांचो शरीर एक हो जाते हे।
गुरू वो दीक्षा हे जो सही मायने मे मिलती हे तो भवसागर पार हो जाते हे।
गुरू वो नदी हे जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हे।
गुरू वो सत चित आनंद हे जो हमे हमारी पहचान देता हे।
गुरू वो बासुरी हे जिसके बजते ही अंग अंग थीरक ने लगता हे।
गुरू वो अमृत हे जिसे पीके कोई कभी प्यासा नही।
गुरू वो मृदन्ग हे जिसे बजाते ही सोहम नाद की झलक मिलती हे।
गुरू वो कृपा हि हे जो सब शिष्यो को समान रूप मे मिलती हे,
लेकिन सब अपनी अपनी योग्यता अनुसार पा सकते है ।
गुरू वो खजाना हे जो अनमोल हे।
गुरू वो समाधि हे जो चिरकाल तक रहती हे।
गुरू वो प्रसाद हे जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ मांगने की ज़रूरत नही पड़ती।
गुरु गुरु गुरु.................
जय जय श्री राधे
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