हम चाकर उन ब्रज नारिनि के |



हम चाकर उन ब्रज नारिनि के |
भूखे रहत ब्रह्म खायेहु पै, जिन ब्रजनारिन गारिनि के |
थेइ थेइ करि नित नाचत गावत, जिनकी तारन तारिनि के |
घर घर फिरत सुनन कटु वचनन, जिनकी चोरिनि जारिनि के |
याचत चरण रेणु ब्रह्मादिक, जिन ब्रज की पनिहारिनि के |
धनि ‘कृपालु’ ब्रजनारिन जिन नित, विहरति संग विहारिनि के ||

भावार्थ    -    हम इन ब्रजांगनाओं के दास हैं, जिनकी सदा गाली खाने पर भी ब्रह्म श्यामसुन्दर भूखे ही बने रहते हैं | जिनके हाथ की तालियों की ताल पर श्यामसुन्दर थेइ - थेइ करते हुए नाचते हैं | जिनके चोरी जारी के कड़वे वचनों को सुनने के लिए श्यामसुन्दर बरबस उनके घरों में जाते हैं | जिनकी चरणधूलि देवाधिदेव ब्रह्मादिक भी चाहते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि वे ब्रजांगनाएँ धन्य हैं जो स्वामिनी कुंज - विहारिणी के साथ विहार करती हैं  |

( प्रेम रस मदिरा    सिद्धान्त  -  माधुरी )
     जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित  -  राधा गोविन्द समिति

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