अपनापन रखना, मेरे घनश्याम |
घड़ी - घड़ी पल - पल नाम तिहारो, रटे मेरी रसना मेरे घनश्याम |
लली - लाल दोउ दै गरबाहीं, हमारे हिये बसना, मेरे घनश्याम |
भाव - हिँडोरे डारि हिये में, झुलावूँ नित झुलना, मेरे घनश्याम |
दै उपहार हार अँसुवन को, बना लूँ तुझे अपना, मेरे घनश्याम |
कैसेहुँ करि ‘कृपालु’ प्रभु अपनो, पुरवो मम सपना, मेरे घनश्याम ||
भावार्थ - हे मेरे श्यामसुन्दर ! अपने अकारण करुण विरद की सदा ही रक्षा करना अथवा हे मेरे श्यामसुन्दर ! तुम मुझे सदा अपना ही समझना | हे श्यामसुन्दर ! मेरी यही कामना है कि मेरी जिह्वा प्रत्येक क्षण तुम्हारे नामों की रटना लगाया करे | हे श्यामसुन्दर ! हे वृषभानुनन्दिनी ! तुम दोनों गले में हाथ डाले हुए हमारे हृदय में नित्य ही निवास करना | हृदय में विविध भावों के झूले में मैं तुम दोनों को नित्य ही झुलाया करूँ एवं आँसुओं की माला की भेंट देकर मैं तुमको सदा के लिए अपना बना लूँ | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि हे श्यामसुन्दर ! किसी भी प्रकार से मुझको अपना बनाकर मेरी इस कामना को पूर्ण करो |
( प्रेम रस मदिरा प्रकीर्ण – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
No comments:
Post a Comment