प्रवचन माधुरी ५ साधक सावधानी

 प्रवचन माधुरी ५ 


साधक सावधानी 


पुस्तक के नाम से ही पुस्तक का आशय स्पस्ट है। हर साधक को हर समय सावधान रहना है ताकि जो उसने कमाया है वह गमय न जाय. जैसे जब कोई किसी शहर में साइकिल से चलता है, कहाँ जाना है यह भी याद है पीछे से गाड़ी आ रही है, बायें  कर लो।  बायें  मोटोर साइकिल जा रही है, बिच में रखो। 

अब खड़ी कर दो, भाई , अब खतरा ज्यादा है।  हर समय सावधान रहते हैं आप। जरा सी आपने गड़बड़ की लापरवाही की, हुवा एक्सीडेंट, आप मर गए। 

या हाथ पैर  टुटा, फ्रैक्चर हो गया।  लेकिन वहां आप सावधान रहते हैं क्योंकि उसकी इम्पोर्टेंस है आपके मस्तिक में, और भगवद बिषय का महत्व नहीं  समझते आप इस्सलिये वहां लापरवाही चल रही है। 

श्री महाराज जी से बातचीत करते समय कुछ साधकों को उन्होंने समझाया है, किस प्रकार सावधान रहना है वही इस पुस्तक में प्रकाशित किया जा रहा है। 


चार बिषय हैं    १.  साधक सावधानी , २. व्यव्हार , ३. दान का महत्व   ४, स्वपन का रहस्य 

यह पुस्तक सभी साधकों के लिए अध्यातिक उपोयोगी है। 


प्रकाशक 

२६. १० . २००० 


विशेष : इसका ऑडियो कैसेट और वीडियो कैसेट भी उपलब्ध है।  अर्थ का अनर्थ न हो जाय , इस भय से  जो अंग्रेजी शब्द आये है  ' वह ऐसे ही लिखे गए हैं ' उनका हिंदी अनुवाद नहीं किया गया है. पाठकों के सामने श्री महराज जी के बचनों का यथारूप ही प्रस्तुत किया जा  रहा है। 




साधक सावधानी 

( मसूरी : मई -जून  २००० )



०१. साधक सावधानी 


हमारे पास के जब आप संसार में जाते हैं बिलकुल बदल जाते हैं।  कुछ तोह काम अधिक हो जाता है और कुछ लापरवाही अधिक होती है। काम करते समय भी हरि  गुरु को साथ रियलाइज करता रहे तो फिर काम, क्रोध लोभ मोह ये जो सत्रु हैं, नास करते हैं हमारी साधना का फिर ये नहीं आते। 


खाली समय में राधे नाम का जप करना, बिना माला के श्वास श्वास  से, इसका अभ्यास करना चाइये।  निरर्थक बात न करे माँ से, बाप से , बीबी  से, पति से, बेटे से।  काम- काम की बात करे।  थोड़ा बोले और मीठा बोले। और कोई डांट दे, अपमान कर दे तो उसको सहन करने की शक्ति बढ़ावे।  वह बाप हो , माँ हो ,बीटा हो।  अपने से बड़े  तो अगर सहन कर लो वह बहादुर है - पक्का साधक है। उस की साधना बहुत तेज बढ़ेगी।  कोई ऐसा वाक्य न बोले की चपरासी को भी दुःख हो।  बहुत संभाल के, संयम के , साथ वाणी का प्रयोग करे।  भगवान् कहते हैं की  स्लोकः 


भक्त बनना है तो सबमें  भगवान् को देखो।  किसी का अपमान न  करो।  कड़क न बोलो।  उसको दुःखी न करो - परपीड़ा सम नहीं अधामयी। 

सबसे बड़ा पाप कहाँ  गया है दुषरे को दुःखी  करना। कम बोलो मीठा बोलो और सहनशीलता बढ़ाओ , नम्रता बढ़ाओ , दिनंता बढ़ाओ।  इससे साधना जो किया है या जो कर रहे हो वह पूंजी बानी रहेगी।  ये काम , क्रोध लोभ, मोह आकार उसको बिगाड़ देते हैं।  तोह फिर वहीँ लौटकर आ जाता हैं  जहाँ से चला था।  प्लस नहीं हो पता।  तोह कमाए चाहे १० हजार लेकिन खर्चा कम से कम करे तो पूंजी बढ़ती जाती है और १० हजार कमाया १५ हजार खर्चा करे वह कमाई  किस काम की। 

वह सत्संग करना, भगवान की भक्ति करना , ये तो कमाई है, गधा भी जनता है।  लेकिन इस कमाई में गड़बड़ न होने पावे , ये सावधानी बरतना चाइए।  और ये गड़बड़ संसार में जाते ही हो जाती है।  जहाँ आप लोग संसार में गए तहाँ राग द्वेष ये दो बीमारी।  कहीं अटैचमेंट और कहीं दुश्मनी की भावना,दुषरे में दोष देखने की , दूसरे के प्रति ईर्ष्या करने की तो मन जितना शुद्ध  हुवा था फिर सब गन्दा हो गया।  गौर का परिश्रम बेकार गया, वह साधना बेकार गई।  इतना टाइम लगाया। 


इतना हृदय  अच्छा बना था और मिला क्या? कुछ नहीं।  अपना नुकसान भी हुआ।  जैसे एक आदमी किसी को डाँटता है दुखी करने के लिए।  वह भले ही हमारा नौकर हो, छोटा हो।  वह तो दुखी हुवा ही और तुमको भी क्रोध आया तो तुम्हारा नुकशान तो पहले हो गया।  तो टाइम का सदुपयोग करना और काम, क्रोध, लोभ मोह से बच के रहना , उसको दबा देना।  क्रोध आयेगा , कोई गलती करेगा, घर में तो क्रोध सबको आता है।  लेकिन उसको दबाना सीखो। उस पर

कंट्रोल करना सीखो।  जैसे किसी की साड़ी में आग लगती है खाना बनाते समय, वहीँ पर हाथ से दबा देती है।  और जब पुरे सरीर में लग गयी आग, तो फिर तो मरेगा।  तो क्रोध की शुरुआत, लोभ की शुरुआत , ईर्ष्या की शुरुआत हो, वहीँ पर सावधान हो जाओ - हाँ हमें भगवान् की, गुरु की कृपा चाइए ? हाँ।  और वह हमारे साथ हैं।  और वह देख रहे हैं हम क्या क्र रहे हैं तो कृपा कैसे मिलेगी ? ये सब सावधान रहने का अभ्यास करना चाइए और रात को सोते समय सोचे - आज हमने कहाँ -कहाँ क्रोध किया, कहाँ कहाँ लोभ किया, कहाँ- कहाँ क्रोध किया, कहाँ -कहाँ किसको दुःख  दिया।  उसको कम हो , फिर ख़त्म हो जाय।  ऐसा तो कोई संसार मिलेगा नहीं , न कोई शहर , न कोई मोहल्ला और न कोई अपना ही घर , की मान और बाप और बीटा और न कोई अपना ही घर, की माँ और बाप और बीटा और स्त्री और पति सब एक स्तर के और एक भावना के मिल जाएँ।  ये तो अस्वम्भव है।  दो भी नहीं मिलेंगे एक से। तो ४-५-६-१०  गरियास्थि वाले कहाँ मिलेंगे ? लेकिन अपना नुकसान न हो , इतना तोह ध्यान रखना चाइये। 

अगर हमारे अंदर बीमारी पैदा हुई , क्रोध आया, लोभ आया ईर्ष्या आई, द्वेष आया तोह हमारा नुकसान हुआ।  इस्सलिये ये हानि से बचना चाइए।  इसका अभ्यास करना चाइए।  इसका अभ्यास करना चाइए।  हानि न हो, जो कमाए हो, वो बचा रहे।

घर जाकर के सब उल्टा पुल्टा कर जाते हैं।  साधना थोड़ी बहुत करते भी हैं कुछ लोग, लेकिन गड़बड़ ज्यादा करते हैं।  तो साधना हो करके चालो। स्वार्थी मतलब जाओ लो अपना नुकसान न हो।  अपने अंदर गड़बड़ी न आने पावे। और कोई काई  कहे हमारी माँ सुधर जायेगी , हमारा बीटा सुधर जयेगा , अरे अब बड़े उम्र हो जाने के बाद और जिद्द करेगा। इससे सुधर थोड़े ही होता है।  हम लोगों का एक जो सिद्धांत है की अगर वह बोलता है  बोलेंगे तो फिर और सिर चढ़ा जायेगा, ये बकवास और पागलपन है पूरा. एक व्यक्ति घर में बोले दुसरा चुप हो जाय। तो वह कुछ देर बोलकर, क्रोध शांत हो जाने पर वह फील करेगा की इससे क्या मिला हमको।  ऐसा करने से तो वह बात आगे नहीं बढ़ेगी। वहीँ की वहीँ आग भुज जाएगी और हम बोले, फिर माँ बोली, फिर वह बोला , फिर वह बोला।  ऐसे ही बोलै बोली जो करेंगे तोह फिर उसका परिणाम क्या होगा? कोई भी हो , भाई -भाई हो, भाई बहिन हो, कोई भी रिश्ता हो या पड़ोसी  हो , दोस्त हो , सब में प्यार की भावना रखो और प्यार का व्यव्हार करो. और हर समय भगवान् को , गुरु को साथ रखो।  वह कृपा तभी करेंगे जब तुम्हारे हृदय से गन्दगी निकलेगी।  राग द्वेष ये दो चीजें खतरनाक हैं।  इस्को द्वन्द कहते हैं।  कहीं पर अटैचमेंट होना और कहीं पर दुश्मनी होना, ये दोनों जिससे होते हैं वह ह्रदय में आ जाता है। उसी का फल मिल जाता है।  जैसे लाह होती है, उसको खूब पिघला दो और उसमें कोई रंग छोड़ दो तो लाह उसी रंग की बन जायगी।  फिर रंग और लाह दिनीन एक हो  ,ऐसे ही अन्तः करण है।  ये प्यार  दुश्मनी से  पिघल जाता है।  और जिसके परतु पिघलता है , यानि जहाँ यार हो या खार हो वही समां जाता है।   इस्सलिये जो-जो लोग घर जा रहे हो, बहुत सावधान होकर के अबकी अभ्यास करो।  सबसे पहले अपने में दोष देखो और जो भी समय मिले साधना में लगाओ। 

ये जरुरी महीन की टीम भगवन की मूर्ति के सामने बैठ के साधना करो, ऐसा नहीं।  हम कुर्सी पर बैठे हैं और राधे राधे का जप क्र रहे हैं।  साधना हो रही है।  हम चल रहे हैं, कोई काम नहीं है इस समय, भगवन  जप रहे हैं.  साधना हो रही है।  हम चल रहे हैं , कोई काम नहीं है इस समय , भगवान् का नाम जप रहे हैं मन ही मन में।  इसका भी अभ्यास  करें और किसी को दुःख न दो अपने से बड़ा हो चाहे छोटा हो।  ऑफिस में भी सब नौकर चाकर सब रहेंगे तुम्हारा सब नीचे वाले भी रहेंगे, ऊपर वाले भी रहेंगें। 

इसी प्रकार ग्रियसथ में घर में भी तुम्हारे पूज्य भी हैं माँ बाप बड़े भाई बगैरह में अपने से बड़ा भी मिलेगा छोटा भी मिलेगा।  तो बड़ों की रेस्पेक्ट करो, अभ्यास करो इसका।  अरे मुख से मीठा बोलना इसमें क्या खर्चा होता है और फिर सबसे बड़ी बात ये ध्यान राखी की अपना नुकसान न हो।  गर हम दूसरे के प्रति दुर्भावना करेंगे मन से भी , तो वह हमारे हृदय में आ जायेगा।  एक ही तोह मन है उसी में गुरु और भगवान् को लाना है और उसी में हमने जिसके प्रति दुर्भावना किया उसको ला के धार दिया। वह गंधा हो गया कपडा।  तो इस तरह से तो  अनंत कोटि कल्प भी कोई भक्ति करे तो क्या मिलेगा? दोष दे भगवन को , गुरु को।  जितना कमाओ उसको रक्षा करो. गमाओ नहीं।  और जो भी कभी गलती से गड़बड़ हो जय तो फिर सुधर करो की भविष्य में वह न हो।  फील करो।  हमारे कारण किसी जीव को दुःख न मिले।  अगर जरुरी है डांटना , चपरासी है नहीं डाटेंगे , वह ठीक से काम नहीं करेगा, तो ऊपर-ऊपर से डांट  के ख़त्म करो।  अंदर उसको चिंतन मत करो- अंदर न लाओ।  और यह भी सोच लो की ऐसा करने से किसी का कल्याण नहीं होता। तो और जिद्दी हो जाता है।  और बुराई करेगा तुम्हारी। तुम्हारे परतु भी उसके दिमाग में दुश्मनी भर जाएगी और फिर उसका परिणाम एक दिन भयंकर भी हो सकता है। इस्सलिये कम से कम बोलै जाय , मीठा बोलै जाय - ये तो बहार  की साधना है और भीतर से भी किसी के प्रति दुर्भावना न हो एयर मन में जितना समय मिले हरी गुरु को हो लाओ। 

तो सुधि होती जाय। और कम दोस्ती रखो।  कम लोगों से मिलो। कम लोगों से बात करो , संसार में ये जो दोस्ती बढ़ाते हैं लोग, ये बहुत टाइम बर्बाद करता है।  हमारे घर कोई आ गया।  अरु अब क्या करें ? बैठना पड़ा , एक घंटा खराब हुआ।  उसको दो मिनट में भी भगा सकती थीं।  मुझे ये काम जरुरी है. साहब अब आप जाइये -फिर आइये।  हम कभी आएंगे आपके यहाँ।  प्यार से उसको भगा दो।  वह एक घंटा हमारा ख़राब करे।  अरे कोई सत्संग को बात करे - ठीक है दो भंते बैठो।  वह हमारा प्रिय है।  लेकिन सत्संगी भी किसी के घर जाता है तो निरर्थक बातें करता है।  भगवान् औरगुरु को बातें न करके संसारी। वह ऐसा है, वह ऐसी है, वह ऐसा करता है, वह ऐसा करती है. निंदा - फिंदा , ये सब सर्वनाश बातें करते हैं लोग. तोह अगर चिटा है तब तो कस दो - देखो भई मेरे घर में आकर  के ये सब बातें न किया करो।  डांट दो।  और अगर बड़ा है तोह उसको समझकर के, प्यार से - बहाना करके वहां से हट जाओ।  वह जान लेगा की मेरी बात सेनन में इसका इंटरस्ट नहीं है. अपने आप दुबारा चुप हो जायगा।  इन सब बातों से होशियार रहना चाइए।  जैसे कार चलाने वाला, साइकिल चलाने वाला, रोड पर हर समय सावधान रहता है।  पीछे से आ रही है गाड़ी, आगे से आ रही है।  इधर से भी, इधर से भी।  जरा भी गड़बड़ करेगा तो एक्सीडेंट हो जायेगा।  ऐसे ही हमारा ये मन है, इसको जरा सी भी छूट दे दिया , लिफ्ट दे दिया ! बीएस कहीं दुश्मनी।  राग द्वेष दो ही एरिया हैं सरे संसार में बाँधे  हुए हैं सबको।  तो राग करना है तो बस हरी गुरु से , लोभ से , मोह से ईर्ष्या से - इनसे द्वेष करो। ये आने न पावें , अंदर घुसने न पावें , हमारी में पूंजी है। हम जो कमाते हैं।  एक बार भी जो भगवान् का नाम लेते हैं।  ये हमारी कमाई है इसमें गड़बड़ न करे कोई।  जैसे संसारी पैसा होता है।  तो आप लोग उसका ताले  में बंद करके या बैंक में रखते हैं बहुत संभाल करके।  वह चोरी न हो जाय।  उसी प्रकार से उस स्पिरिचुअल प्रॉपर्टी  को , आध्यात्मिक शक्ति को , भवाद्प्रेम को , हरी गुरु शरणागति को संभाल क्र रखना है , इसमें गन्दगी न आने पावे।  ठीक है।  अगर हमारा बीटा नहीं हमारा मंटा , ठीक है।  अपने आप उसको कर्म फल  भोगेगा, जैसा होगा उसके बाद।  हम अपना नुकसान न करें। कितने लोग इसी से परेशान हैं।  हमारा बेटा  ऐसा है , हमारी बेटी ऐसी है।  अरे तोह तुम उसको महापुरुष बना दोगे , क्या करोगे ?  तुम लड़ोगे , झगडोगे , और बिगड़ेगा फिर तुम्हारा असली उद्श्य तो अपना लाभ लेना है , अपना स्वार्थ सिद्ध करना है। बड़े बड़े राक्षसों के यहाँ महापुरुष पैदा हुये। क्या क्र लिया किसी ने ? सब अपना - अपना इंटरस्ट है. उसको कोई बदल नहीं सकता।  अरे बड़े -बड़े संत महात्मा हार के चले गए इस संसार से।  तुम क्या बदलोगे।  तुम अपना ही मन नहीं बदल प् रहे हो संसार से।  दावा करते हैं माँ  लोग , बाप लोग।  में इसको सुधर के मानूगा।


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