साधक की सबसे बड़ी साधना है कि वह, यह महसूस करे (हृदय में) कि मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। अब करना होगा, यही अवस्था ही साधना की सुन्दर अवस्था है, निराशा नहीं आनी चाहिए। मंजिल बहुत दूर नहीं किन्तु निराशा से दूर अवश्य हो जाती है। पूर्ण विश्वास बढ़ा कर ढूंढते जाओ कि हम तो उनके हो ही चुके हैं सदा सदा के लिए, अब क्या चिन्ता...?"
--- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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