So beautifully written



A young girl Nandini in Mayapur wrote this:

May I be quarantined in the heart of Sri Sri Radha Madhava for the rest of eternity.

May They have me locked down beneath Their reddish lotus feet for the rest of eternity, keeping me safe from the virus of illusion.

May They increase my immune system by giving me the vitamins of Their service.

“This is an order from the government of my heart to the citizens of my mind, during the lockdown period which will extend till the existence of the soul. “

Let me use the hand wash called sincerity, to cleanse me of the germs of superficiality. (This should be done as many times in the day as possible, for at least 20 seconds, as per the time of Lord Brahma. )

Let me keep great distance from the people called lust, anger, pride and hypocrisy who have arrived from a foreign land full of virus.

Let me at the least keep a two meter distance of anger, from anyone who sneezes and coughs out harsh words against You or Your devotees.

Let me cover my mouth with the tissue of intelligence, whenever I cough or sneeze any complaints about the service of Your Lordships.

Let me always keep in my mouth the antivirus of Your holy names and pastimes

एक बार की बात है.....

एक बार की बात है। एक संत जंगल में कुटिया बना कर रहते थे और भगवान श्री कृष्ण का भजन करते थे। संत को यकीं था कि एक ना एक दिन मेरे भगवान श्री कृष्ण मुझे साक्षात् दर्शन जरूर देंगे।

उसी जंगल में एक शिकारी आया। उस शिकारी ने संत कि कुटिया देखी। वह कुटिया में गया और उसने संत को प्रणाम किया और पूछा कि आप कौन हैं और आप यहाँ क्या कर रहे हैं।

संत ने सोचा यदि मैं इससे कहूंगा कि भगवान श्री कृष्ण के इंतजार में बैठा हूँ। उनका दर्शन मुझे किसी प्रकार से हो जाये। तो शायद इसको ये बात समझ में नहीं आएगी। संत ने दूसरा उपाय सोचा। संत ने किरात से पूछा- भैया! पहले आप बताओ कि आप कौन हो और यहाँ किसलिए आते हो?

उस किरात(शिकारी) ने कहा कि मैं एक शिकारी हूँ और यहाँ शिकार के लिए आया हूँ।

संत ने तुरंत उसी की भाषा में कहा मैं भी एक शिकारी हूँ और अपने शिकार के लिए यहाँ आया हूँ।

शिकार ने पूछा- अच्छा संत जी, आप ये बताइये आपका शिकार दिखता कैसे है? आपके शिकार का नाम क्या है? हो सकता है कि मैं आपकी मदद कर दूँ?

संत ने सोचा इसे कैसे बताऊ, फिर भी संत कहते हैं- मेरे शिकार का नाम है । वो दिखने में बहुत ही सुंदर है। सांवरा सलोना है। उसके सिर पर मोर मुकुट है। हाथों में बंसी है। ऐसा कहकर संत जी रोने लगे।

किरात बोला: बाबा रोते क्यों हो ? मैं आपके शिकार को जब तक ना पकड़ लूँ, तब तक पानी भी नहीं पियूँगा और आपके पास नहीं आऊंगा।

अब वह शिकारी घने जंगल के अंदर गया और जाल बिछा कर एक पेड़ पर बैठ गया। यहाँ पर इंतजार करने लगा। भूखा प्यासा बैठा हुआ है। एक दिन बीता, दूसरा दिन बीता और फिर तीसरा दिन। भूखे प्यासे किरात को नींद भी आने लगी।

बांके बिहारी को उन पर दया आ गई। भगवान उसके भाव पर रीझ गए। भगवान मंद मंद स्वर से बांसुरी बजाते आये और उस जाल में खुद फंस गए।

जैसे ही किरात को फसे हुए शिकार का अनुभव हुआ हुआ तो तुरंत नींद से उठा और उस सांवरे भगवान को देखा।

जैसा संत ने बताया था उनका रूप हूबहू वैसा ही था। वह अब जोर जोर से चिल्लाने लगा, मिल गया, मिल गया, शिकार मिल गया।

शिकारी ने उसे शिकार को जाल समेत कंधे पर बिठा लिया। और शिकारी कहता हुआ जा रहा है आज तीन दिन के बाद मिले हो, खूब भूखा प्यासा रखा। अब तुम्हे मैं छोड़ने वाला नहीं हूँ।

शिकारी धीरे धीरे कुटिया की ओर बढ़ रहा था। जैसे ही संत की कुटिया आई तो शिकारी ने आवाज लगाई- बाबा! बाबा !

संत ने तुरंत दरवाजा खोला। और संत उस किरात के कंधे पर भगवान श्री कृष्ण को जाल में फंसा देख रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण जाल में फसे हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं।

किरात ने कहा: आपका शिकार लाया हुँ। मुश्किल से मिले हैं।

संत के आज होश उड़ गए। संत किरात के चरों में गिर पड़े। संत आज फूट-फूट कर रोने लगे। संत कहते हैं- मैंने आज तक आपको पाने के लिए अनेक प्रयास किये प्रभु लेकिन आज आप मुझे इस किरात के कारण मिले हो।

भगवान बोले: इस शिकारी का प्रेम तुमसे ज्यादा है। इसका भाव तुम्हारे भाव से ज्यादा है। इसका विस्वास तुम्हारे विश्वास से ज्यादा है। इसलिए आज जब तीन दिन बीत गए तो मैं आये बिना नहीं रह पाया। मैं तो अपने भक्तों के अधीन हूँ।

और आपकी भक्ति भी कम नहीं है संत जी। आपके दर्शनों के फल से मैं इसे तीन ही दिन में प्राप्त हो गया। इस तरह से भगवान ने खूब दर्शन दिया और फिर वहां से भगवान चले गए।

मसूरी लीला.........



साधक-श्री महाराजजी संवाद।

एक बार एक सत्संगी ने श्री महाराजजी से पूछा कि हम संसार के लोगों को बाकी सभी प्रश्नों के उत्तर तो दे देते हैं किन्तु एक प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते। जब लोग हमसे बहस करते हैं कि रामजी, कृष्णजी,और गौरांग महाप्रभु जी के गुरु थे,तो फिर तुम्हारे गुरु (श्री महाराजजी) के कोई गुरु क्यों नहीं है?

श्री महाराजजी: अरे! तो तुम कह दो न की उनके भी गुरु हैं।

सत्संगी: महाराजजी,लेकिन आपके गुरु तो कोई भी नहीं है।

महाराजजी: हैं.....हैं .....पर बताएँगे नहीं।

सत्संगी: महाराजजी,प्लीज बताइये न?

महाराजजी: जब प्रचारक लोग प्रवचन करते हैं और सत्संगी फिर उनसे जुड़ते हैं और बाद में ये प्रचारक लोग बताते हैं कि हमारे गुरु 'जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज' हैं तो सब उन लोगों को छोड़ के मेरे पास आ जाते हैं। इसलिए अगर मैं भी अपने गुरु का नाम बता दूँगा तो तुम लोग भी मुझे छोड़ के उनके पास चले जाओगे, और मैं अकेले बैठा रह जाऊँगा मसूरी में।

थोड़ी देर बाद सिद्धान्त समझाया कि देखो दो प्रकार के महापुरुष होते हैं एक साधन सिद्ध,और एक नित्य सिद्ध। तो साधन सिद्ध को तो गुरु बनाना ही पड़ता है लेकिन नित्य सिद्ध महापुरुष को कोई आवश्यकता नहीं है,फिर भी चाहे तो बना सकते हैं।

इसके बाद फिर मज़ाक करते हुए बोले  : हमारे भी गुरु हैं पर बताएँगे नहीं।

जय हो ऐसे विनोदी स्वभाव वाले श्री कृपालु महाप्रभु की।

पूर्ण विश्वास और सर्वसमर्पण...✍



एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई, तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।
 राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया।
राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।
विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई।
पहले ही दिन कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं ?
संन्यासी ने जवाब दिया कि- ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे।
संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी, राजकुमारी ने कहा- कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगा कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप केवल भक्ति करते हैं... भजन, कीर्तन करते हैं और कल की चिंता करते ही नहीं हैं।
पर स्वामी! मैं जितना जानती हुं की- सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता कदापि नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। सर्वसमर्पण करता है।
अगले दिन की चिंता तो पशु भी नहीं करते हैं, हम तो मनुष्य हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।
ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। वो नतमस्तक हो गया।
उसने राजकुमारी से कहा कि- आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं। जबकि मैं तो पहले से ही एक सन्यासी हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। केवल कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया। जो सारे संसार की पालनहार है,वो मेरा भी तो पालनहार है।

अगर हम सतगुरु की भक्ति करते हैं, तो विश्वास भी होना चाहिए कि सतगुरु हर समय हमारे साथ हैं। सतगुरु को हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती है। कभी आप बहुत परेशान हो, कोई मार्ग नजर नहीं आ रहा हो तो आप आँखे बंद कर के विश्वास के साथ पुकारें, सच मानिये थोड़ी देर में आप की समस्या का समाधान मिल जायेगा...(संगृहीत संदेश)

हमें जो प्राप्त है-पर्याप्त है...श्रीहरि गुरु का आसरा है हमें...राधे राधे🙏