वृन्दाबन धाम मह श्यामा श्याम धामा ।ठाम सो कृपालु, रसिकन सरनाम।।
सोई मम गुरु बसे मनगढ़ धामा। भगवति सुत, तिय पदमा सी बामा।।
रूप मनोहर, तनु अभिरामा। वारी वारी जाउँ गुरु–गुन-गन-ग्रामा।।
लीनो सेवा-व्रत बाल्यकाल कृपा धामा। भरे जन-जन प्रेम भाव श्याम श्यामा।।
आपु रहें डूबे नित, प्रेम घनश्यामा ।औरहुँ डुबावें प्रेम - सिन्धु अष्ट यामा ।।
जाने बिनु प्रेमतत्त्व, जीव रत -कामा ।गुरु की कृपा ते लगे, लूटन प्रकामा।।
याते कभू प्रेम - भाव, बढ़े वसु - यामा। कभू मूढ़ मन गति जाए अति वामा।।
लखि जीव - दीन दशा,पुनि कृपा धामा। देन लगे तत्त्व - ज्ञान, बिनुहिं विरामा।।
किय महा सम्मेलन चित्रकूट धामा । दिशि दिशि ते बुलाए, सन्त रामधामा।।
दीनी प्रश्नावली तिन, जन - हित कामा। उत्तर प्रतीक्षा करे, जनता प्रकामा।।
भए असमर्थ सब भाजे निज ठामा। पुनि समाधान कियो स्वयम् कृपाधामा ।।
लखि अल्प आयु अस ज्ञान अभिरामा। कहें सब, धन्य ज्ञान-मूर्ति ललामा।।
ऐसी कीर्ति फैली चहूँ ओर इन नामा। शत पन्च पण्डित बुलाए काशी धामा ।।
पण्डित - निमन्त्रण पे, गए काशी धामा। भए वे चकित लखि दिव्य ज्ञानधामा।।
मानो सर्व वेद शास्त्र खड़े आठों यामा। करत चिरौरी सेवा हेतु कृपा धामा।।
बिन शास्त्रार्थ वे तो, झुके इन पामा। मान दियो पद दे, जगद् गुरु नामा।।
कर्म, ज्ञान, भक्ति को समन्वय ललामा। करें प्रेम प्राप्ति हित, अति अभिरामा।।
निज सुख सोचें नहि, जन- हित कामा। रात - दिन सेवा करें, बिनु विश्रामा ।।
ऐसो को उदार? भयो कब? केहि नामा ? ऐसे गुरु-
चरनन कोटिन प्रणामा।।
सेवा की ही बात समुझाएँ आठों यामा। प्रेम करु श्यामा श्याम है निष्कामा।।
मन - शुद्धि हुए बिन, बने नहि कामा। मन -शुद्धि हेतु मन ; गहो गुरु पामा।।
धन्य मम गुरु पिये रस श्याम श्यामा। सोई पिलावे निज जन वसु - यामा।।
धनि वे जन, रस लूटे गुरु - धामा। धनि मम सद्गुरु, बाँटे बिनु दामा।।
सुधि लो हमारी भी ओ प्रभु कृपा धामा ; दे दो एक बूंद बस, बनि जाय कामा।।
हौं तो अस कुटिल न नरकहुँ ठामा। तुम तो कुपालु करो सार्थक नामा।।
—श्यामा त्रिपाठी