💐मेरे गुरुदेव💐


वृन्दाबन धाम मह श्यामा श्याम धामा ।ठाम सो कृपालु, रसिकन सरनाम।।

सोई मम गुरु बसे मनगढ़ धामा। भगवति सुत, तिय पदमा सी बामा।।

रूप मनोहर, तनु अभिरामा। वारी वारी जाउँ गुरु–गुन-गन-ग्रामा।।

 लीनो सेवा-व्रत बाल्यकाल कृपा धामा। भरे जन-जन प्रेम भाव श्याम श्यामा।।

आपु रहें डूबे नित, प्रेम घनश्यामा ।औरहुँ डुबावें प्रेम - सिन्धु अष्ट यामा ।।

जाने बिनु प्रेमतत्त्व, जीव रत -कामा ।गुरु की कृपा ते लगे, लूटन प्रकामा।।

याते कभू प्रेम - भाव, बढ़े वसु - यामा। कभू मूढ़ मन गति जाए अति वामा।।

लखि जीव - दीन दशा,पुनि कृपा धामा। देन लगे तत्त्व - ज्ञान, बिनुहिं विरामा।।

किय महा सम्मेलन चित्रकूट धामा । दिशि दिशि ते बुलाए, सन्त रामधामा।।

दीनी प्रश्नावली तिन, जन - हित कामा। उत्तर प्रतीक्षा करे, जनता प्रकामा।।

भए असमर्थ सब भाजे निज ठामा। पुनि समाधान कियो स्वयम् कृपाधामा ।।

लखि अल्प आयु अस ज्ञान अभिरामा। कहें सब, धन्य ज्ञान-मूर्ति ललामा।।

ऐसी कीर्ति फैली चहूँ ओर इन नामा। शत पन्च पण्डित बुलाए काशी धामा ।।

पण्डित - निमन्त्रण पे, गए काशी धामा। भए वे चकित लखि दिव्य ज्ञानधामा।।

मानो सर्व वेद शास्त्र खड़े आठों यामा। करत चिरौरी सेवा हेतु कृपा धामा।।

बिन शास्त्रार्थ वे तो, झुके इन पामा। मान दियो पद दे, जगद् गुरु नामा।।

कर्म, ज्ञान, भक्ति को समन्वय ललामा। करें प्रेम प्राप्ति हित, अति अभिरामा।।

निज सुख सोचें नहि, जन- हित कामा। रात - दिन सेवा करें, बिनु विश्रामा ।।

ऐसो को उदार? भयो कब? केहि नामा ? ऐसे गुरु-

चरनन कोटिन प्रणामा।।

सेवा की ही बात समुझाएँ आठों यामा। प्रेम करु श्यामा श्याम है निष्कामा।।

मन - शुद्धि हुए बिन, बने नहि कामा। मन -शुद्धि हेतु मन ; गहो गुरु पामा।।

धन्य मम गुरु पिये रस श्याम श्यामा। सोई पिलावे निज जन वसु - यामा।।

धनि वे जन, रस लूटे गुरु - धामा। धनि मम सद्गुरु, बाँटे बिनु दामा।।

सुधि लो हमारी भी ओ प्रभु कृपा धामा ; दे दो एक बूंद बस, बनि जाय कामा।।

हौं तो अस कुटिल न नरकहुँ ठामा। तुम तो कुपालु करो सार्थक नामा।।

—श्यामा त्रिपाठी

🌸पावन कुंड की महिम🌸




                   एक बार प्रयाग राज का कुम्भ योग था। चारों ओर से लोग प्रयाग-तीर्थ जाने के लिये उत्सुक हो रहे थे। श्रीनन्द महाराज तथा उनके गोष्ठ के भाई-बन्धु भी परस्पर परामर्श करने लगे कि हम भी चलकर प्रयाग-राज में स्नान-दान-पुण्य कर आवें ।

                 किन्तु कन्हैया को यह कब मंज़ूर था। प्रातः काल का समय था , श्रीनन्द बाबा वृद्ध गोपों के साथ अपनी बैठक के बाहर बैठे थे कि तभी सामने से एक भयानक काले रंग का घोड़ा सरपट भागता हुआ आया। भयभीत हो उठे सब कि कंस का भेजा हुआ कोई असुर आ रहा है ।

                 वह घोड़ा आया और ज्ञान-गुदड़ी वाले स्थल की कोमल-कोमल रज में लोट-पोट होने लगा। सबके देखते-देखते उसका रंग बदल गया, काले से गोरा, अति मनोहर रूपवान हो गया वह। श्रीनन्दबाबा सब आश्चर्यचकित हो उठे। वह घोड़ा सबके सामने मस्तक झुका कर प्रणाम करने लगा । श्रीनन्दमहाराज ने पूछा-' कौन है भाई तू ? कैसे आया और काले से गोरा कैसे हो गया ?

                   वह घोड़ा एक सुन्दर रूपवान विभूषित महापुरुष रूप में प्रकट हो हाथ जाड़ कर बोला- हे व्रजराज! मैं प्रयागराज हूँ। विश्व के अच्छे बुरे सब लोग आकर मुझमें स्नान करते हैं और अपने पापों को मुझमें त्याग कर जाते हैं, जिससे मेरा रंग काला पड़ जाता है। अतः मैं हर कुम्भ से पहले यहाँ श्रीवृन्दावन आकर इस परम पावन स्थल की धूलि में अभिषेक प्राप्त करता हूँ। मेरे समस्त पाप दूर हो जाते हैं। निर्मल-शुद्ध होकर मैं यहाँ से आप व्रजवासियों को प्रणाम कर चला जाता हूँ। अब मेरा प्रणाम स्वीकार करें ।

             इतना कहते ही वहाँ न घोड़ा था न सुन्दर पुरुष। श्रीकृष्ण बोले- बाबा! क्या विचार कर रहे हो? प्रयाग चलने का किस दिन मुहूर्त है ?

            नन्दबाबा और सब व्रजवासी एक स्वर में बोल उठे- अब कौन जायेगा प्रयागराज? प्रयागराज हमारे व्रज की रज में स्नान कर पवित्र होता है, फिर हमारे लिये वहाँ क्या धरा है ? सबने अपनी यात्रा स्थगित कर दी । ऐसी महिमा है श्रीब्रज रज व श्रीधाम वृन्दावन की ।।

अपना सब समय......

                 


हम लोग अपना सब समय,आत्मशक्ति इसी में नष्ट कर रहें हैं कि लोग हमें अच्छा कहें,जबकि उपर्युक्त सिद्धान्त से यह सर्वथा असंभव है। हम अच्छा बनने का प्रयत्न नहीं करते,हम अच्छा कहलाने का प्रयत्न करते है। परिणाम-स्वरूप हमारा जीवन दंभमय हो जाता है। प्रतिक्षण ऐक्टिंग,बनावट,एटीकेट के ही चक्कर में परेशान रहते है। जरा सोचिये कि संसार में अच्छे एवं बुरे दो प्रकार के लोग हैं एवं सदा रहेंगे। ईश्वर के क्षेत्र वाले अच्छे हैं,तीन गुणों के आधीन रहने वाले बुरे हैं। फिर उन बुरों में भी तामस से राजस अच्छे,राजस से सात्त्विक अच्छे हैं।

               अब आपको ईश्वरीय क्षेत्र का वास्तविक'अच्छा' बनना है,जिसके पश्चात् पुन: बुरा बनने की नौबत न आए। ऐसे 'अच्छे' के विरोधी सात्त्विक,राजस,तामस,तीन प्रकार के लोग हैं। तो फिर आप कैसे आशा करते हैं कि स्वभाविक विरोधी गुण वाले आपके अनुकूल रहेंगे ? यदि आप सात्त्विक बनेंगे तो आपको राजस,तामस,एवं ईश्वरीय लोग बुरा कहेंगे। यदि तामस बनते हैं तो राजस,सात्त्विक,ईश्वरीय बुरा कहेंगे। जब तीन पार्टी विरोधी हैं ही तो ईश्वरीय अच्छा क्यों न बना जाय,जिससे सदा के लिए अच्छे ही बन जायें यानी आनन्दमय हो जायें?संसार तो अपना कार्य स्वभाविक गुणों के आधीन होने के कारण करेगा ही,उसकी चिन्ता हम क्यों करें?

           भावार्थ यह कि संसार को उपर्युक्त प्रकार से परस्पर विरोधी समझकर अच्छा कहलाने में समय एवं आत्मशक्ति का अपव्यय न करें,अपितु सत्यमार्ग का अवलम्बन करें। संसार को मिटाना भी हमारे हाथ में नहीं है,अतएव,हमें अपने अन्तरंग संसार को मिटाकर अपना लक्ष्य प्राप्त करना है।

#जगद्गुरुश्रीकृपालुजीमहाराज।

आज


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आज सम्पूर्ण विश्व अत्यधिक विपत्ति का सामना कर रहा है। चारों ओर अत्यधिक भयानक वातावरण हो गया है। दुख, अशांति, और निराशा से घिरे हुए लोग समझ नहीं पा रहें हैं क्या करें Lockdown में और इस कोरोना काल में।

ऐसे विपत्ति के समय में जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की तीनों सुपुत्रियाँ कोरोना के अंधकार को दूर करने के लिए रात दिन कठिन प्रयास कर रहीं हैं।  Social media के द्वारा WhatsApp से, Youtube से, Facebook से, Instagram से, अनेक प्रकार के उपाय अपनाकर और TV के द्वारा जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के प्रवचन घर घर में पहुंचा रही हैं जिससे लोगों को बहुत राहत मिल रही है। ऐसे समय में उन्हें श्री महाराजजी के प्रवचन सुन कर अत्यधिक लाभ हो रहा है।

उनकी सबसे बड़ी बेटी सुश्री विशाखा त्रिपाठीजी, जिन्हें सब प्यार से बड़ी दीदी कहते हैं उन्होंने अपना संदेश देते हुए कहा, "निराश क्यों होते हो? टेंशन की कोइ बात नहीं है, spiritual progress का सबसे अच्छा समय है यह Lockdown। केवल भगवान् और गुरु को अपने अंत:करण में lock कर लो फिर सबकुछ ठीक हो जाएगा। Down, होने की कोई आवश्यकता नहीं है, Depression और tension से छुट्टी के लिए सबसे अच्छा रास्ता है अपने मन को भगवान् और गुरु के चिन्तन में लगाए रहो। भगवान् सदा हमारे साथ हैं इस बात पर विश्वास कर लो।"