आज संध्या के समय जब कान्हा नंद भवन में अपने महल के चौबारे में खड़ा था तभी उसका हाथ अपनी कमर पर लगी बांसुरी पर पड़ा जो उसको बांसुरी को हाथ लगाते कुछ गीला गीला महसूस हुआ कान्हा ने जब बांसुरी को हाथ में पकड़ा तो ऐसा लगा कि जैसे बांसुरी अश्रु बहा रही है उसका मुख मुरझाया सा लग रहा था कान्हा को बहुत हैरानी हुई कि आज मेरी प्रिय बांसुरी को क्या हुआ है तभी उन्होंने बांसुरी से कहा क्या हुआ प्रिया आज तुम्हारा मुख मंडल इतना मुरझाया हुआ क्यों है और किस के वियोग में आंसू बहा रही हो तो बांसुरी कहने लगी अरे कान्हा आज सुबह से तूने मुझे अपने अधरों पर नहीं लगाया जब तक मैं तुम्हारे अधर के रस का पान नहीं करती और तुम्हारी सांस जब तक मेरे अंदर नहीं चली जाती तो मुझे ऐसा महसूस होता है कि मैं प्राण हीन हूं और सुबह से इसी तड़प इसी पीड़ा से मेरा यह बुरा हाल हुआ है।
कान्हा सोचने लगा हां आज सचमुच में मैंने बांसुरी को सुबह से छुआ तक नहीं यह गलती मुझसे कैसे हो गई। तभी कान्हा चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बड़े प्यार से बांसुरी के छिद्रों को अपने हाथ से सहलाने लगा और अपने अधरों पर बांसुरी को लगाकर अपनी सांसो को भरने लगा ।उधर सावन का पहला दिन होने के कारण निकुंज में किशोरी जी कान्हा की बड़ी देर से प्रतीक्षा कर रही थी इतनी दूर से बांसुरी की धुन सुनकर किशोरी जी बेचैन सी हो गई कि आज कान्हा दूर से ही बांसुरी क्यों बजा रहा है।
इसी बेचैनी से लाडली जू इधर उधर घूमने लगी उधर कान्हा अपनी धुन में बांसुरी को बजाये जा रहा था और इधर किशोरी जी कान्हा की विरह में तड़पने लगी और निकुंज में ही इधर-उधर टहलने लगी सभी सखियां सावन का पहला दिन होने के कारण निकुंज में बड़ी लगन से झूले को सजा रही थी किशोरी जी के श्रृंगार का सामान भी अभी उनके पास ही पड़ा था वह चाह रही थी जल्दी से झूले का श्रृंगार करके कान्हा के आने से पहले ही हम किशोरी जू का श्रृंगार कर देंगी। उनका ध्यान किशोरी जी की तरफ नहीं गया जो कि वह कान्हा के वियोग में इधर-उधर टहल रही है। जब किशोरी जू से ना रहा गया तो वह एक वृक्ष की टहनी के ऊपर जाकर बैठ गई और धीरे-धीरे उस पर लेट गई पास ही बैठा एक मोर अपनी स्वामिनी की इस दशा को देख कर व्याकुल हो रहा था वह कितने चक्कर निकुंज में लगा आया था कि अब तक कान्हा क्यों नहीं आ रहा उसके वियोग में मेरी स्वामिनी का यह हाल हो रहा है तभी अचानक से आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट शुरू हो गई बादलों की आवाज को सुनकर तभी एकदम से कान्हा की तंद्रा भंग हुई और उसको याद आया कि निकुंज में किशोरी जी मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी वह जल्दी से बांसुरी को अपने पीतांबर में लगाकर निकुंज की तरफ भागा ।वहां पहुंचते-पहुंचते काफी बरखा होनी शुरू हो गई निकुंज में जाकर जब इन्होंने चारों तरफ देखा तो उसनेे देखा सखियां झूले को फूलों से सजा रही थी तभी कान्हा उस वृक्ष के नीचे जाकर खड़े हो गए जहां पर किशोरी जू उसकी टहनी पर लेटी हुई थी कान्हा के वियोग में उसकी आंखों से आंसू टपक रहे थे तभी बारिश की ठंडी बूंदों के साथ-साथ कान्हा के कंधे पर कुछ गरम गरम बूंदो का एहसास हुआ जब कान्हा ने उपर देखा तो किशोरी जू की आंखों के आंसू उसके कंधे पर गिर रहे थे , लाडो की इस दुर्दशा का दोष कान्हा अपने आप को दोष देने लगा लेकिन फिर भी उसने अपने आप को संभाल कर किशोरी जू को उस वृक्ष की टहनी से अपनी गोद में उठाकर नीचे उतारा और किशोरी जू के श्रृंगार विहीन और मुरझाए हुए चेहरे देखकर कन्हैया कहने लगा अरे मेरी प्रिय आज तुम्हें क्या हो गया है तुम्हारा श्रृंगार विहीन मुख मंडल मुझे व्याकुल कर रहा है।वैसे तो तुम्हारी सुंदरता का तीनों लोगों में कोई सानी नहीं है लेकिन तुम्हारे ऊपर सोलह श्रृंगार अति शोभायमान होते हैं और तुम्हारा श्रृंगारिक मुख ही मेरे मन को अति प्रसन्न करता है । तभी किशोरी जी का ध्यान कान्हा की मनमोहक चेहरे पर गया किशोरी जी की आंखों में अभी भीआंसू भरे हुए थे और वह रुआंसी सी होती कान्हा से बोली अरे कन्हैया आज तुम्हारा मुख मंडल तो चमक रहा है लेकिन तुम्हारे अधरों की लालिमा आज कुछ कम है और अपनी कटाक्ष नेत्रों को फैलाते हुए और भृकुटी को टेढी करती हुई कान्हा को बोलीआज किस को अपने अधरों के रस का पान करवा कर आए हो ऐसी बातें सुनकर कान्हा एकदम से सकपका गया और मुस्कुराता हुआ किशोरी जी को अपने हृदय से लगाकर बोला अरे प्रिय ऐसा मत कहो और साथ में टेढ़ी नजरों से बांसुरी की तरह देख कर मुस्कुराने लगा और बांसुरी भी प्रसन्नता से इतराती हुई ठाकुर जी की तरफ देख रही थी । बात को पलटने के लिए तभी ठाकुर जी ने सभी सखियों को जानबूझकर डांटते हुए कहा अरे सखियों आज तूने मेरी राधिका का श्रृंगार क्यों नहीं किया ।सभी सखियों डर के मारे भागते हुए श्रृंगार का थाल लेकर वहां आ गई और किशोरी जी का श्रृंगार करने लगी लेकिन कान्हा ने जानबूझकर उनको डांटते हुए कहा अब रहने दो आज अपनी लाडो का श्रृंगार मैं खुद कर लूंगा सखियां एकदम से हैरान होकर एक दूसरे की तरफ देखने लगी क्योंकि उनको पता था कि ठाकुर जी को इतना सुंदर श्रृंगार करना नहीं आता लेकिन फिर भी ठाकुर जी ने उनके हाथ से श्रृंगार के सामान से भरा थाल ले लिया और किशोरी जू की वेणी कोबहुत सुंदर तरीके से गूंथने लगे और उस पर गजरा लगाने लगे।माथे पर टीका ,गले में हार ,कानों में कुंडल आंखों में काजल बिंदिया सब कुछ लगाया और प्रसंता से इतराते हुए बोले देखो प्रिया आज मैंने तुम्हारा कितना सुंदर श्रृंगार किया है जब किशोरी जु ने अपना मुख दर्पण में देखा तो एकदम से हैरान हो गई क्योंकि उसको दर्पण में अपना नहीं कान्हा का चेहरा नजर आ रहा था क्योंकि आज कान्हा नेअपने जैसा श्रृंगार किशोरी जू का कर दिया था ।किशोरी जू पहले तो एकदम से घबरा गई फिर जोर से खिलखिला कर हंसने लगी और कहने लगी चपल कन्हैया आज तुम्हें मेरा श्रृंगारअपने जैसा कर दिया है तो कान्हा मुस्कुराते हुए किशोरी जी के मुख हो ऊपर करके एक उंगली से किशोरी जी की ठोड़ी को को टेक देते हुए उसके रूप रस का पान करते हुए बोले क्या तुझ में और मुझ में कुछ फर्क है प्रिय ।तभी सभी सखियों निकुंज में होने वाली बरखा में कान्हा और राधा रानी को खींच कर ले गई। ठाकुर जी और किशोरी जी बहुत सुंदर नृत्य करने लगे पास में ही खड़ा मोर जो कि अपने स्वामिनी के उदास होने से उदास था लेकिन अब उनको प्रसन्न देखकर वह भी प्रसन्न हुआ और वह भी उनके साथ में नृत्य करने लगा और तभी नृत्य करते करते कान्हा और लाडली जू की नजर एकदम से सखियों द्वारा सजाए हुए बहुत सुंदर झूले पर पड़ी और किशोरी जू भागी भागी झूले की तरफ गई और जाकर वहां पर विराजमान होकर झूले की शोभा को बढ़ाने लगी और ठाकुर जी पीछे से झूले को पकड़कर झूला झुलाने लगे ।किशोरी जी और ठाकुर जी सावन की पहली बरखा का आनंद ले रहे थे तभी ठाकुर जी भी आकर झूले पर किशोरी जी संग विराजमान हो गए और दोनों झूले का आनंद लेने लगे । झूले पर विराजमान उन दोनों की सुंदर और मनमोहक छवि का वर्णन करना असंभव है और सखियां उन दोनों की सुंदरता का रस पान करके अपनी आंखों को सौभाग्यशाली मान रही थी तभी अचानक से एकदम कुछ जोर से आवाज आई। किशोरी जी ठाकुर जी का ध्यान उस आवाज की तरफ गया और देखा कि जिस टहनी पर किशोरी जी ठाकुर जी के विरह में लेटी हुई थी वह एकदम से टूट कर नीचे गिर गई है किशोरी जी घबरा कर कान्हा की तरफ देखने लगी और कान्हा को कहने लगी हो कुछ समय पहले तो यह बिल्कुल कठोर थी एकदम से यह नीचे कैसे गिर गई तो कान्हा ने मुस्कुराते हुए कहा हे मेरी प्रिय लाडो आज तूने अपने चरण इस टहनी पर डालकर उस पर बहुत बड़ा उपकार किया ना जाने यह कितने जन्मों से इधर उधर भटक कर सौभाग्य के उदय होने पर निकुंज की इस टहनी के रूप में यहां थी लेकिन आज तूने इसके ऊपर चरण पग रखकर इसको हर योनि से मुक्त कर दिया है।
हे किशोरी जू हमें भी अपने चरण रज प्रदान करो और हमारे भी किए हुए युगों युगों के पापों को नष्ट करके हमें भी जन्म मरण के बंधन से मुक्त करके अपनी चरणों की चेरी बना कर अपने चरणों में स्थान दो।
सावन की पहली घटा और पहले दिन की आप सबको बहुत-बहुत बधाई हो।
बोलो श्यामा श्याम जू की जय हो ।