!! जय जय श्री राधे !!
रुको, देखो, सोचो, समझो विचार करो किधर जा रहे हो ! आंखे खोलो ! अनंत युग बीत गए सोते हुए, अब तो जाग जाओ ! अब कोई जगाने आया है तुमको ! तुम्हारे बिलकुल सामने खड़ा है ! अपनी भुजाये फैलाए है,वो तो व्याकुल है तुम्हे अपना कृपा पात्र बनाने के लिए और तुम उसे दुत्कार रहे हो । अरे जागो जागो..! सोचो तुम किसके हो चुके, किसका तुम्हे सहारा मिला है! किसकी कृपा तुम्हे प्राप्त है ।अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक हैं तुम्हारे कर्णधार और तुम उसको साधारण व्यक्ति से भी अधिक गिरा हुआ समझ रहे हो । और फिर बड़े अधिकार के साथ कहते हो , हम तो साधक हैं। क्या यह नामापराध नहीं है । जिस कृपा दृष्टि को पाने के लिए योगीन्द्र-मुनीन्द्र अपना सब कुछ त्याग कर जप, तप,ध्यान और न जाने क्या क्या करते हैं , उसके मधु रस को पीने के लिए लता, वृक्ष , पुष्प सहस्त्र वर्षों तक तपस्या मैं निमग्न हैं। वह इतने सहज रूप से प्राप्त है हमें ! इसलिए उसके महत्व को न समझ कर आपसी राग द्वेष में उलझे हैं। अपने मान की ग्रंथि को खोलो और सर्व समर्पण कर दो श्री चरणों मे! हमें क्या अधिकार है यह देखने का की कौन अच्छा है, कौन बुरा है । काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार सब प्रेम यज्ञ में आहुति दे दो। यह ही तो तुम्हे दूर भगा रहे हैं उनसे और तुम हो की इन्ही के पीछे पड़े हो हाथ धोकर ! दूर भगाओ इन काम, क्रोध, लोभ को और मन मे लाओ दीनता, सहनशीलता , नम्रता और विरक्ति के विचार ! तभी हो सकेगा उनसे वास्तविक प्यार !!
संभालो अपने आप को ! आगे बढ़ो ! पहचानो ! उनकी करुणा को, अनुभव करो ! उनकी व्यथा को जानो !
“ पल-पल जीवन बिता जाये, बिता पल फिर हाथ न आय “.......!!
इनका भेद कभी नहीं खुलेगा और ये चले जायेंगे , तब पछताना बैठ कर ! रो-रो कर आँसू बहाकर प्रार्थना कर रहे हैं , हाथ जोड़कर भीख मांग रहे हैं । सहनशील बनो, दीन बनो, विनम्र बनो । बार बार कह रहे हैं और हम हैं की मूर्ति की तरह चुपचाप सुनकर मूक बने रह जाते हैं। यह उनको धोखा देना नहीं तो और क्या है । उनके साथ अन्याय नहीं तो और क्या है । धिक्कार है ऐसा जीवन को !!
उपयुक्त विनती पर कुछ ध्यान दे, जिससे की हम हमारे प्यारे 'कृपालु महाप्रभु' जी की आशाओं को पूरा कर सकें ......................!
इसी आकांक्षा से......
भक्ति धाम............ मनगढ......!!!
रुको, देखो, सोचो, समझो विचार करो किधर जा रहे हो ! आंखे खोलो ! अनंत युग बीत गए सोते हुए, अब तो जाग जाओ ! अब कोई जगाने आया है तुमको ! तुम्हारे बिलकुल सामने खड़ा है ! अपनी भुजाये फैलाए है,वो तो व्याकुल है तुम्हे अपना कृपा पात्र बनाने के लिए और तुम उसे दुत्कार रहे हो । अरे जागो जागो..! सोचो तुम किसके हो चुके, किसका तुम्हे सहारा मिला है! किसकी कृपा तुम्हे प्राप्त है ।अखिल कोटि ब्रह्माण्ड नायक हैं तुम्हारे कर्णधार और तुम उसको साधारण व्यक्ति से भी अधिक गिरा हुआ समझ रहे हो । और फिर बड़े अधिकार के साथ कहते हो , हम तो साधक हैं। क्या यह नामापराध नहीं है । जिस कृपा दृष्टि को पाने के लिए योगीन्द्र-मुनीन्द्र अपना सब कुछ त्याग कर जप, तप,ध्यान और न जाने क्या क्या करते हैं , उसके मधु रस को पीने के लिए लता, वृक्ष , पुष्प सहस्त्र वर्षों तक तपस्या मैं निमग्न हैं। वह इतने सहज रूप से प्राप्त है हमें ! इसलिए उसके महत्व को न समझ कर आपसी राग द्वेष में उलझे हैं। अपने मान की ग्रंथि को खोलो और सर्व समर्पण कर दो श्री चरणों मे! हमें क्या अधिकार है यह देखने का की कौन अच्छा है, कौन बुरा है । काम , क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार सब प्रेम यज्ञ में आहुति दे दो। यह ही तो तुम्हे दूर भगा रहे हैं उनसे और तुम हो की इन्ही के पीछे पड़े हो हाथ धोकर ! दूर भगाओ इन काम, क्रोध, लोभ को और मन मे लाओ दीनता, सहनशीलता , नम्रता और विरक्ति के विचार ! तभी हो सकेगा उनसे वास्तविक प्यार !!
संभालो अपने आप को ! आगे बढ़ो ! पहचानो ! उनकी करुणा को, अनुभव करो ! उनकी व्यथा को जानो !
“ पल-पल जीवन बिता जाये, बिता पल फिर हाथ न आय “.......!!
इनका भेद कभी नहीं खुलेगा और ये चले जायेंगे , तब पछताना बैठ कर ! रो-रो कर आँसू बहाकर प्रार्थना कर रहे हैं , हाथ जोड़कर भीख मांग रहे हैं । सहनशील बनो, दीन बनो, विनम्र बनो । बार बार कह रहे हैं और हम हैं की मूर्ति की तरह चुपचाप सुनकर मूक बने रह जाते हैं। यह उनको धोखा देना नहीं तो और क्या है । उनके साथ अन्याय नहीं तो और क्या है । धिक्कार है ऐसा जीवन को !!
उपयुक्त विनती पर कुछ ध्यान दे, जिससे की हम हमारे प्यारे 'कृपालु महाप्रभु' जी की आशाओं को पूरा कर सकें ......................!
इसी आकांक्षा से......
भक्ति धाम............ मनगढ......!!!
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