महापुरुष को पहिचान


किसी महापुरुष को पहिचानने में उसकी बहिरंग वेशभूषा को न देखना चाहिये । कोट पतलून में भी महापुरुष हो सकते हैं एवं रंगीन वस्त्रों में भी कालनेमी मिल सकते हैं । पुनः हमारे इतिहास से भी स्पष्ट है कि ९० प्रतिशत महापुरुष गृहस्थों में हुए है जिनके कपडे रँगे नहीं थे । इस कलियुग में चूँकि लोगों ने यह निश्चय कर लिया है कि बिना कपडे रंगाये कोई महापुरुष नहीं हो सकता, अतएव दंभियो को इस धारणा से लाभ उठाने का मौका मिल गया है । देखो, प्रह्लाद ने हजारों वर्ष सम्राट बन कर राज्य किया है, ध्रुव ने राज्य किया, विभीषण ने राज्य किया, सुग्रीव ने राज्य किया, जनक ने राज्य किया, अम्बरीष आदि ने भी राज्य किया । गोपियों को देखिये, जिनकी चरण धूलि ब्रम्हादिक चाहते हैं, वे पति एवं बच्चे वाली अपढ गवाँर गृहस्थ ही थीं । कबीर, तुकाराम आदि सभी महात्मा गृहस्थ थे ।
विरक्त वेश में भी सब आचार्यों के पृथक - पृथक भेष रहे हैं । कोई गेरुआ, कोई पीला, कोई सफेद आदि । अतएव रंगीन में भी रंग बिरंगे झगडे हैं । उन रंगों से हृदय का निश्चय न करना चाहिये क्योंकि वह तो दो पैसों का ही परिणाम हो सकता है ।

जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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