''आप प्रतिदिन अस्पताल में, मरीज़ों को देखने अवश्य जाते थे l वहाँ भी गरीबो को आप 100-100 रुपये बाँटते थे और यदि कोई अधिक माँगता तो उसे सहर्ष प्रदान करते l एक दिन आपको लगा कि मरीज़ों के बैठने के लिए पर्याप्त कुर्सियों की व्यवस्था नहीं है तो उसी समय उनके लिए आरामदायक कुर्सियों की व्यवस्था कराई l एक दिन रात को अस्पताल पहुँचे तो देखा मरीज़ और मरीज़ों के साथ आए लोग बाहर बैठकर ठंड में पर्चे बनवाने की प्रतीक्षा कर रहे थे l उन्हें देखकर आपको इतनी दया आयी l कि तुरंत उनके लिए अलाव की व्यवस्था की और हॉस्पिटल की डायरेक्टर से कहा कि पूरी सर्दी इन लोगों के लिए अलाव की व्यवस्था हॉस्पिटल की ओर से की जायेगी l साथ ही ये भी कहा कि रात को ठहरने वाले मरीज़ों को अंदर सुलाया जाय, कोई भी मरीज़ अस्पताल के बाहर ठंड में नहीं रहेगा l उनके लिए पर्याप्त बिस्तरों की व्यवस्था की गयी l कोई ठंड में बीमार न पड़े इसीलिए सबको कम्बल बाँट दिए गये ||
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