विनम्रता में छुपा जीवन की सफलता रहस्य



कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह शरशैय्या पर पड़े हुए थे। कौरव व पांडव समूह के अनेक लोग उनके चारों ओर खड़े थे। भीष्म पितामह ने धीमे स्वर में कहा, अब मृत्यु का वरण करना चाहता हूं। मेरे पास कुछ ही समय शेष है। यह सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर उनके पास बैठते हुए बोले, पितामह आपके मार्गदर्शन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिला। आज जब आपका अंतिम समय है तो मै आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि आप हमे ऐसी कोई उपयोगी शिक्षा दें जो आगे जाकर हमारे काम आए। भीष्म पितामह ने कहा, आज मै तुम्हें नदी की एक छोटी कहानी सुनाता हूं। जिसमें जीवन का सार छिपा है। एक दिन समुद्र ने नदी से प्रश्न किया, तुम बड़े बड़े पेड़ों को अपने प्रवाह में बहा ले आती हो पर क्या कारण है कि नन्हीं घासों, कोमल बेलों को तुम अपने साथ नहीं ला पाती। समुद्र की बात सुनकर नदी मुस्कुराती हुई बोली- जब जब मेरे पानी का बहाव आता है तब-तब नरम बेलें, घास के तिनके व नरम पौधे झुक जाते है। वृक्ष अपनी कठोरता के कारण झुकने को तैयार नहीं होते। वे अंहकार के कारण सीधे खड़े रहते है और तो जानते ही है कि विनम्रता के आगे हमेशा अंहकार परास्त हो जाता है। नदी के जवाब से समुद्र संतुष्ट हो गया। यह कहानी सुनाकर भीष्मपितामह बोले, शायद आप सभी इस कहानी में छिपा हुआ सार समझ गए होंगे। व्यक्ति को हमेशा विनम्र होना चाहिए और विनम्र रहते हुए ही जीवन में आगे बढना चाहिए।

जय जय श्री राधे

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