ये ध्यान का काम कौन करता है ? आँख, कान, नाक, त्वचा, रसना ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ ध्यान नहीं कर सकती l आँख देखेने का काम कराती है, कान सुनने का, नासिका सूँघने का, रसना रस लेने का, त्वचा स्पर्श करने का l ध्यान करने का काम कौन करता है ? मन, अंतःकरण, चित्त अनेक नाम हैं उसके l तो ध्यान करना चाहिये भगवान् का, उसी का नाम, भक्ति उपासना, पूजा, पाठ जो कुछ शब्द बोलो l वो सब मन को करना है, इन्द्रियों को नहीं l तो भगवान् का ध्यान करना है, बस एक बात l दूसरी कोई बात न सुनु, न पढ़ो, न सोचो, न करो l ध्यान करना है और अगर कोई और बात पढ़ो, सुनो, करो, तो ध्यान नम्बर एक, बाद में और सब कुछ जैसे कीर्तन, भगवान् का नाम, रूप, गुण, लीला धाम ये गाते हैं l ये रसना का काम है बोलना l लेकिन नम्बर एक ध्यान, फिर गान l यानी इन्द्रियों को अगर साथ लेते हो तो कोई एतराज नहीं है, लेकीन अगर मन साथ में नहीं है तो ज़ीरो में गुणा हो जायेगा l ज़ीरो गुणा ज़ीरो बराबर ज़ीरो, ज़ीरो गुणा लाख बराबर ज़ीरो, ज़ीरो गुणा करोड़ बराबर ज़ीरो l इसलिये रूपध्यान ही साधना है, उपासना है, भक्ति है l
---- जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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