गुरू ऋण




तुम्हारा मेरा इस जीवन का नहीं...कई-कई जन्मो का सम्बन्ध है....मैं तुम्हारे पिछले कई जन्मो से परिचित हूँ.....

और हर जीवन में तुम्हे पुकारा है...तुम्हे आवाज दी है....
जीवन की पगडण्डी पर चलने का आह्वान किया है.....
और तुम्हे समझाने की कोशिश की है...
की तुम मेरी ऊँगली पकड़ कर चलो...
मैं तुम्हे निश्चित ही पूर्णता तक पंहुचा दूंगा....
पर हर बार तुमने धोखा दिया है...
हर बार तुम्हारे पैर फिसले है....
हर बार तुम्हारे होंठो पर झूठ और स्वार्थ की परते बिछी...
हर बार तुमने खुद ही अपना हाथ छुड़ा कर संसार के दलदल में फंसा लिया....
और मैं पुकारता रहा...तुम अनसुना करते रहे..
मैं आवाज देता रहा और तुम कान में ऊँगली ढाल कर बैठे रहे...
हर बार मैंने प्राण-तत्व समर्पित किये....
और हर बार तुम अनजान से भटकते रहे......
और मेरा ऋण तुम पर चढ़ता रहा....
और अब यह समय इस ऋण को चुकाने का है...

जय जय श्री राधे

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