कान्ह कछु कै गयो टोना री |
यमुना – तट रह धेनु चरावत, श्याम सलोना री |
हौं तहँ गई, अचानक देखी, नंद डुठोना री |
देखत ही मोहिं डस्यो दृगन जनु, नागिनि छोना री |
तन, मन, प्राण सबै सखि ! लै अब, दै गयो रोना री |
दिवस ‘कृपालु’ न चैन एक छिन, रैन न सोना री ||
भावार्थ - ( एक सखी का प्यारे श्यामसुन्दर से प्रथम मधुर – मिलन, एवं उसका अपनी एक अंतरंग सखी से कहना | ) अरी सखी ! श्यामसुन्दर मेरे ऊपर कुछ टोना – सा कर गया | यमुना के किनारे वह श्यामसुन्दर गाय चरा रहा था | मैं अचानक ही वहाँ पर गई एवं मैंने उसको देखा | देखते ही उसकी आँखों ने नागिन बनकर मुझे डस लिया | अरी सखी ! वह मेरा तन, मन और प्राण सभी कुछ लेकर उसके बदले में रोना – मात्र ही दे गया | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अब उसके वियोग में न तो मुझे दिन में एक क्षण के लिए चैन ही मिलता है और न तो रात में नींद ही आती है अर्थात् उसके मधुर – मिलन के लिए निरंतर तड़पती ही रहती हूँ |
( प्रेम रस मदिरा मिलन – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
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