निज गुरु पादाश्रय


श्री गुरवे नम: 
निज गुरु पादाश्रय 
मैं श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष श्री कृपालु महाराज के चरण कमल रज की अनन्य शरण का आकांक्षी हूँ क्योंकि सुधी साधकजन सभी महापुरुषों के श्री चरणों का नमन तो करते हैं किन्तु आश्रय केवल निज गुरु पाद पद्मों का ही लेते हैंl 
कुछ स्नेही भावुक स्वजनों ने मुझसे कहा है कि मेरे लिए तो आप के लेख ही काफी हैं, आदि आदिl 
मैंने सदैव यह घोषणा की है कि मेरे लेख और उनमे दिए गए वेद, पुराण, शास्त्र, गीता, ब्रह्मसूत्र आदि के उदाहरण मेरी स्व-अर्जित ज्ञान संपत्ति नहीं हैl मैं ब्रह्म विद्या तो दूर आस्तिकता से भी नितांत परे तमोगुणी, रजोगुणी अर्थहीन-रसहीन परिश्रम में जीवन गंवा रहा थाl
जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज ने कृपा करके अपनाया तब तत्व ज्ञान की शिक्षा से मेरा परिचय हुआl मेरी बुद्धि सीमित है अत: वह ज्ञान जो मैंने श्री गुरुवर से सुना उसका भी अल्पांश ही बुद्धि में धारण कर पायाl
गोस्वामी तुलसी दास जी के शब्दों में;
“मैं पुनि निज गुरु सन सुनी कथा सो सूकरखेतl समुझी नहि तसि बालपन तब अति रहेउं अचेतl”
उनसे ही साधना पद्धति सुनी और अटकल लगा लगा के अभ्यास कियाl जो भी किया गुरु कृपा से अति अल्प रस मिलने लगा इसलिए “और साधना करूं” इसकी प्रेरणा मिलीl गुरु कृपा से जो प्राप्त हुआ उसका मैंने कुछ वर्णन पिछले 4 वर्षों के लेखों में किया हैl
आशय यह कि मैं अत्यंत निम्न कोटि का साधक ही हूँl इसके अतिरिक्त कुछ भी नहींl
मान लो यदि मेरे स्थान पर कोई महापुरुष भी हो तो भी सबका परम कल्याण पंचम मूल जगद्गुरु श्रोत्रिय-ब्रह्मनिष्ठ निखिल दर्शन समन्वयाचार्य श्री कृपालुजी महाराज की शरणागति में ही हैl
चिन्मय लाभ केवल निज गुरु चरण आश्रय दे सकता हैl अन्य महापुरुष भी नहीं, तो फिर कोई मेरे जैसा अन्नमय कोष में स्थित, स्थूल शरीर, स्थूल बुद्धि वाला प्राणी क्या देगाl
सभी आदरणीय हैं, सभी कृपामय हैंl किन्तु हमें सौभाग्य तो मूल जगद्गुरु के अनुयायी होने का प्राप्त हैl
जगद्गुरूत्तम श्री कृपालुजी महाराज के निज धाम, निज कृतियाँ, निज संकल्प से प्रकट संस्थाएं, भक्ति मंदिर, प्रेम मंदिर मंदिर, निकट भविष्य में कीरति मंदिर, नि:शुल्क, विद्यालय एवं नि:शुल्क चिकित्सालय आदि ही हमारी आध्यात्मिक सम्पदा एवं सेवा के सौभाग्यावसर हैंl
उनकी निज संतान, मेरी तीनों दीदियां गुरुवर की वह आध्यात्मिक शक्तियां हैं जो उनके समस्त संकल्पों को सम्पूर्ण करने में और उनके आश्रमवासियों व सत्संगियों के हितों का ध्यान रखने में दिन-रात अथक परिश्रम कर रही हैं किन्तु सभी संकल्प सिद्ध होने का श्रेय वह सदा गुरु चरण रजकण की कृपा को ही देती हैंl मैं केवल यह ही कह सकता हूँ कि उनका महत्व मेरे लिए गुरु कमल-कोमल-गात की दिव्य ज्योति के समान हैl
भगवदीय लाभ हेतु सदैव आध्यात्मिक संपदा का ही आश्रय लेना ही उचित हैl

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