श्याम तन भले भये घनश्याम |

श्याम तन भले भये घनश्याम |
जो तुम होते गौर बरन तो, विष खातीं ब्रजबाम |
भले भये अति निठुर श्याम जो, रहे द्वारिका ठाम |
जो तुम होते सरल हृदय तो, प्रलय होत ब्रजधाम |
भले भये तुम श्याम कंत इक, प्रिया अनंत ललाम |
जो होते मोहन अनन्य तो, क्यों जीती सो बाम |
जो ‘कृपालु’ तुम होत लली तो, होति कौन गति राम  ||




भावार्थ  –  एक सखी कहती है कि हे श्यामसुन्दर ! बड़ा अच्छा हुआ कि तुम काले रंग के हुए, अगर तुम गोरे रंग के होते तो समस्त ब्रजांगनायें तुम्हारे वियोग में जहर खाकर मर जातीं | बड़ा अच्छा हुआ कि तुमने अत्यन्त निष्ठुर स्वभाव पाया जो कि द्वारिकापुरी से लौट कर नहीं आये | अगर कहीं तुम सरल हृदय के होते तो समस्त ब्रजधाम में प्रलय हो जाती | बड़ा अच्छा हुआ कि तुम प्रियतम एक और तुम्हारी प्रेयसी अनन्त हैं | अगर तुम एक ही प्रेयसी से अनन्य प्रेम करते तो आनन्द के मारे उसके प्राण रह ही न पाते | इतने में ‘श्री कृपालु जी’ ने कहा कि यह सब तो ठीक है, किन्तु यदि तुम लली होते, तो हाय राम ! कौन गति होती  |

 ( प्रेम रस मदिरा     सिद्धान्त   –   माधुरी )
    जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति

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