प्रश्न ३२ :- महाराजजी ! साधना में कैसे आगे बढे़ं ?

प्रश्न ३२ :- महाराजजी ! साधना में कैसे आगे बढे़ं ?

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर :-

मन ने हमारे अनन्त जन्म बरबाद किये । अब मन कर रहा है ऐसा करें , बस हो गया । देखो यहाँ जितने लोग उठते हैं सबेरे तीन बजें , साढे़ तीन बजे और कीर्तन करते हैं , ये अपने घर जाकर तीन बजे उठते है क्या ? कितने आदमी उठते हैं । और जो नहीं उठते हैं वो क्यों नहीं उठते ? मन के गुलाम । अरे! अकेले ही तुम अपना भगवान् का ध्यान करो या इतनी सारी पुस्तकें हमने बना दी हैं पढ़ो । मन को लगाओ भगवान् में , किसी प्रकार से लगाओ । नहीं जी अब मन कह रहा है सोओ , कोई महाराज जी थोड़े ही हैं डाँटेंगे । सो रहे हैं अपना छः बजे उठे , सात बजे उठे । तमोगुण में सुख मिलता है । पढाई और साधना एक बात है । जैसे बड़े - बड़े आदमियों के लडके अरबपतियों के लड़के , प्राइममिनिस्टर के लड़के भी परीक्षा के लिये पढ़ते हैं । जागते है रात - रात भर । अगर वो मन के बहकावे में आ जायें - अरे चलो सोओ , हटाओ , जो होगा देखा जायेगा । तो देखा क्या जायेगा , फेल हो जाओगे । और क्या देखा जायेगा । जितने श्वास बचे हैं मृत्यु के पहले वाले उनको काम में लेना चाहिये । चाहे हजार लोग बैठे हो हम श्वास-श्वास से 'राधे-राधे' बोलें । कौन क्या जानेगा क्या कर रहे हैं हम । ये अवसर फिर नहीं मिलेगा । मनुष्य का शरीर ,भारतवर्ष में जन्म और तत्त्वदर्शी का मिलना , तत्त्वज्ञान प्राप्त कर लेना , सब बनाव तो बन गया और अब कौन सी कृपा बाकी है भगवान् की । अब तो तुम्हारी कृपा आवश्यक है । भगवान् की तो सब हो गई । 'लापरवाही' बस और कुछ बात नहीं । यें लापरवाही जो मैं शब्द बोल रहा हूँ , उसको सोचो ,बार - बार । इसमें पच्चीसो बीमार हैं किसी की कमर ख़राब , किसी का पैर खराब ,किसी का कुछ खराब लेकिन जब मन को डाँट करके लगाते हैं आप लोग तो आँखों में आसूँ भी आ रहे है कीर्तन भी हो रहा है । और अगर ये सब न करो , न हो , महाराज जी भी न हो सत्संग भवन में और आप कमरे में अपने बैठे हों , अरे सर दर्द हो रहा है , अरे लेट जायें , लेट गये , फिर सो गये । क्या मिला ? मन के गुलाम । सब उत्थान और पतन का कारण मन है । केवल मन । इसी मन को जिसने दुश्मन मान लिया और उसके ऊपर लगाम कस ली , वो महापुरुष हो गया । और क्या है महापुरुषों के पास । वही हाथ , पैर ,नाक , कान , आँखे उनके भी है हमारे भी है । उन्होंने प्रतिज्ञा कर लिया ,मैं जो कहूंगा वो होगा और मैं वही कहूँगा जो गुरु ने बताया है । उसके अनुसार मन को गवर्न करूँगा । बस । अभ्यास कर ले कुछ दिन जबरदस्ती , उसके बाद आदत पड़ जायेगी । पहले शौक से कोई व्यक्ति शराब पीता है , कोई व्यक्ति सिगरेट पीता है । ऐसा नहीं होता कि एकदम से हमारी प्यास हो गई शराब की कि शराब लाओ । ऐसा कहीं विश्व में हुआ है ? पहले कुसंग से अपने साथियों के कहने से और ऐसे ही शौक से पिया कि देखें तो , क्या बात है शराब में , सब बड़े - बड़े लोग उसके चक्कर में पड़े है । जिनके पास तमाम वैभव है । उसमें सुख नहीं मिलता उनको तभी तो , शराब पीते होंगे । डेली , शराब पी के लोग सोते हैं बड़े - बड़े अरबपति । बस एक बार पिया , तो शराब का तो अपना काम है नशा करना , बस उसी को आनन्द मान लिया । और रोज पीने लगा , फिर पियक्कड़ हो गया ।

तो संसार में भी सब काम पहले बेमनी से करते हैं । फिर आदत पड़ जाती है । ऐसे ही पहले जबरदस्ती मन को रोको ,गलत चिन्तन न करें , एक सैकिण्ड भी खराब न होने दे । और उसके लिये पच्चीसों साधन हैं । हरि गुरु का चिन्तन ; चिन्तन से थक गये तो पठन । एक - एक विषय पर सैकड़ों , हजारों पद हमने लिख दिये हैं ,बना दिये हैं । एक को पढो , गाओ । फिर बोर हो गये , दूसरा उठाओ , तीसरा उठाओ ,लापरवाही छोड़ो ।

पुस्तक :- प्रश्नोत्तरी ( भाग ३ )
पृष्ठ संख्या :- ७८ , ७९ एवं ८०

🌼जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज🌼

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