एक साँझ लाला बोले गोविन्द राधे, आ मैया एक कहानी सुना दे..
मैया बोली सुनु लाला गोविन्द राधे, थे नृप दशरथ अवध के बता दे..
उनके थे चार सुत गोविन्द राधे, नारि कौशल्या आदि तीन थीं बता दे..
सुत राम लछिमन गोविन्द राधे, भरत शत्रुघन नाम बता दे..
सब ते बड़े थे राम गोविन्द राधे, उनकी थी नारि नाम सीता बता दे..
सीता को लै गया गोविन्द राधे, रावण हरि निज लंका बता दे..
यह सुनि चट उठि गोविन्द राधे, बैठे लाला रौद्र स्वरुप दिखा दे..
लाला कह लछिमन गोविन्द राधे, कहाँ है धनुष मेरा वेगि ला दे ला दे..
मैया डरि लाला को गोविन्द राधे, गोद ले उर अँचल में छिपा दे..
पुनि राई नोन लै के गोविन्द राधे, सात बार तनु पै उतारि बहा दे..
भावार्थ : एक रात कन्हैया ने मैया को आग्रहपूर्वक अपने पास बैठाकर कहा, 'मैया आज मुझे कोई कहानी सुना.' मैया लाला के पास बैठकर प्रभु श्रीराम की कथा सुनाने लगी. मैया बोली, 'लाला ! प्राचीन काल में अवध देश के एक राजा थे, उनका नाम था - दशरथ. राजा दशरथ के तीन रानियाँ थीं - कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी. और उनके चार पुत्र थे - राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न. सभी पुत्रों में राम सबसे बड़े थे. राम की पत्नी थीं - सीता. रावण नामक असुर सीता का हरण करके अपनी नगरी लंका में ले गया.'
इतना सुनते ही छोटे से कन्हैया अचानक खड़े हो गए और रौद्र स्वरुप में आकर कहने लगे, 'लक्ष्मण मेरा धनुष कहाँ है? तुरंत मेरा धनुष लाकर मुझे दो.' मैया लाला की इस विचित्र दशा को देखकर अत्यंत ही भयभीत हो गयीं और लाला को अपनी गोद में लेकर अपने आँचल में छिपा लिया. इसके बाद मैया ने राई और नमक लेकर लाला के शरीर पर से सात बार उतारा और बहा दिया. (श्रीकृष्ण ही पूर्व अवतार में त्रेतायुग में श्रीराम थे, मैया से कहानी सुनते हुए उन्हें उसी की स्मृति हो आई और वे आवेश में आ गए).
(राधा गोविन्द गीत, दोहा संख्या 8104 से 8113)
जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज विरचित
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