घरों में साफ-सफाई और बर्तन

 मंगला लोगों के घरों में साफ-सफाई और बर्तन  साफ करने का काम करती थी ।उसके घर में उसका एक लड़का एक लड़की और पति था ।उसके मन में यह इच्छा थी कि वह अपने बच्चों को पढ़ा कर कुछ काबिल बनाए ।लेकिन उसके पति का कोई पक्का काम नहीं था कभी उसको कारखाने में काम  मिलता तो कभी ना मिलता ।इसलिए मजबूरी में मंगला को लोगों के घर में साफ सफाई का काम करना पड़ता था ।मंगला जब  काम पर जाती तो रास्ते में एक मंदिर पड़ता था मंदिर की सीढ़ियों से ही ठाकुरजी और किशोरी जी के दर्शन होते थे। मंदिर में नित्य प्रतिदिन संकीर्तन होता था ।मंगला को संकीर्तन सुनने में बड़ा आनंद आता था इसलिए वह काम पर जाने से पहले पांच  दस मिनट के लिए मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर संकीर्तन का आनंद लेती। लेकिन उसको बाहर से अच्छी तरह ठाकुरजी और किशोरी जी के दर्शन नहीं होते थे ।अपने गरीब अवस्था फटी हुई साड़ी के कारण उसको हमेशा शर्मिंदगी महसूस होती यदि मैं  मंदिर के अंदर जाऊंगी कहीं पुजारी जी मुझे बाहर  न निकाल  दें ।इसलिए वह मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर संकीर्तन का आनंद लेती थी ।वह हमेशा देखती लोग ठाकुर जी और किशोरी जी    के लिए नित्य प्रतिदिन तरह-तरह के पकवान बनाकर उनको भोग लगाकर उनकी भोग सेवा  करते हैं , कुछ भगत नई नई पोशाक लेकर आते हैं और कई स्त्रियां मंदिर के प्रांगण में सोहनी सेवा और पोछा लगाती नजर आती है ।उसका भी बड़ा मन होता वह भी ठाकुर जी को भोग लगाए नए वस्त्र लेकर आए ठाकुर जी के मंदिर का प्रांगण साफ करें लेकिन अपनी इस मैली कुचली अवस्था के कारण मंदिर के अंदर ना जा पाती थी क्योंकि मंदिर के अंदर हमेशा बड़े बड़े सेठ सेठानी और अमीर लोग ही आते थे जिसके कारण उसको अंदर जाने में  लज्जा महसूस होती थी। जिस घर में मंगला काम करती थी उस घर के लोग कुछ महीनों के लिए विदेश जा रहे थे जिसके कारण मंगला का काम  छूट गया। मंगला के पास  अब कोई काम नहीं था इसलिए वह घर से तो आ जाती थी लेकिन मंदिर की सीढ़ियों पर घंटों बैठी रहती और ठाकुर जी की और किशोरी जी की सेवा करते लोगों को देखती रहती। एक दिन  वह  मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी हुई थी तभी वहां से एक नवविवाहित सेठ सेठानी का जोड़ा जोकि अत्यंत सुंदर था अत्यंत रूपवान था मंदिर की सीढ़ियों से होकर नीचे उतर रहा था तभी अचानक से   सेठानी का पैर सीढ़ियों में से फिसल गया तो मंगला ने झट से उसको पकड़ लिया जिसके कारण वह सीढ़ियों से गिरने से बच गई सेठ और सेठानी ने मंगला का अत्यंत धन्यवाद किया और  सेठ अपनी सेठानी का हाथ पकड़कर आगे की तरफ चल पड़ा तभी मंगला ने पीछे से सेठ को आवाज  लगाई बाबू जी सेठानी को उठाते वक्त आप के कुर्ते की जेब में से यह आपका बटुआ मंदिर की सीढ़ियों पर  गिर पड़ा था । सेठ मंगला की इमानदारी को देखकर प्रसन्न हुआ और उसका और आभारी होने लगा कि तुम तो  नरम दिल के साथ-साथ ईमानदार भी हो ।तुम क्या करती हो तो मंगला ने बताया कि मैं लोगों के घर में काम करती थी लेकिन आजकल मेरा काम छूटा हुआ है तो सेठ ने कहा हमारी नई नई शादी हुई है क्या तुम हमारे घर में काम करोगी तो मंगला ने सहर्ष स्वीकार कर लिया ।लेकिन सेठ ने कहा हमारा घर तो यहां से काफी दूर है तुम ऐसा करो कि रोज मंदिर आ जाया करो और हमारे साथ हमारे घर चला करो।  अब तो हर रोज़ सेठ और सेठानी मंदिर आते और मंगला उनके साथ  गाडी में बैठकर उनके घर चली जाती । सेठ सेठानी का घर..घर नहीं बल्कि आलीशान महल जैसा घर था ।मंगला घर को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई उसने तो स्वपन में भी इतना सुंदर घर नहीं देखा था घर में एक अजीब तरह की अलौकिक शांति थी अजीब तरह के इत्र की खुशबू घर के चारों ओर फैली हुई थी घर के हर कोने में आनंदमई वातावरण  था । घर में इतनी साफ सफाई थी कि मंगला को भी ज्यादा सफाई करने में मेहनत नहीं लगती थी । अब तो मंगला  उस घर का अहम हिस्सा बन चुकी थी वह हर रोज नहा धोकर आती और सेठानी के लिए तरह-तरह के पकवान बनाकर उनको खिलाती । सेठानी के अत्यंत सुंदर रूप को देखकर वह सेठानी को  कहती थी क्या मैं आज आपका श्रृंगार करूं और वह  बहुत सुंदर तरीके से  सेठानी का श्रृंगार करती उसके हाथों में मेहंदी लगाती कभी उसके बालों में गजरा लगाती कभी उसके पांव में पायल  पहनाती । सेठानी हमेशा बहुत खुश होकर मंगला को कहती कि तुम्हारे द्वारा किया गया श्रृंगार सेठ जी को बहुत पसंद आता है। सेठ सेठानी के घर में काम करते करते मंगला के घर की हालत भी सुधर चुकी थी सेठ की शहर में बहुत जान पहचान थी जिसके कारण मंगला के पति को भी एक अच्छी जगह पक्की नौकरी  मिल गई थी उसके घर के हालात अब बहुत ही अच्छे हो गए थे। मंगला के अब बच्चे बहुत अच्छे स्कूल में पढ़ना शुरू हो गए थे। अब मंगला पहले जैसी गरीब ना रही।अब उसके पास इतना धन इकट्ठा हो गया था कि वह भी अपने घर में नौकर रख सकती थी लेकिन वह सेठ सेठानी का घर को नहीं छोड़ना चाहती थी । एक दिन अचानक ही ना जाने कैसे उसके मन में यह भाव आया कि सेठ सेठानी की सेवा करते मुझे इतनी देर हो गई है अब तो मेरे पास भी  इतना धन है कि मैं भी नौकर रख सकती हूं लेकिन फिर उसने सोचा नहीं नहीं  मुझे अपने घर से ज्यादा तो सेठ सेठानी के घर से लगाव है अगर मैं अपने घर में भी जाती हूं तो मेरी आत्मा इस घर में और  सेठ सेठानी की सेवा में लगी रहती है ।अगले दिन जब वह मंदिर की सीढ़ियों पर खड़ी थी तो उसको सेठ सेठानी लेने नहीं आए। ऐसे ही दो-तीन दिन हो गए उसको वह लोग लेने नहीं आए।

 अब मंगला बहुत  चिंतित रहने लगी सेठ और सेठानी ठीक तो होंगे  । किसी अनिष्ट की आशंका से मंगला के शरीर में अजीब सी उथल-पुथल होने लगी ।वह सारा दिन मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी रहती थी कि शायद सेठ सेठानी थोड़ी देर से आते होंगे लेकिन आज भी वो ना आए । मंगला काफी सालों से  उनके घर जा रही थी इसलिए उनके घर का रास्ता उसको पता चल चुका था तो वह अगले दिन सुबह पैदल ही उनके घर चल दी काफी देर चलने के बाद वह उस जगह पहुंची तो वह देखकर हक्की-बक्की रह गई कि वहां पर तो कोई आलीशान घर है ही नहीं । वहां एक वृक्ष के नीचे एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है जिसमें छोटे छोटे ठाकुर जी और किशोरी जी की प्रतिमा पड़ी हुई है । वह इधर-उधर भाग भाग कर  सबसे पूछती रही यहां पर जो एक आलीशान घर था वह कहां चला गया सब लोग कहने लगे क्या तुम बाबंरी हो गई हो यहां तो सालों से कोई भी घर नहीं है यहां तो वृक्ष के नीचे यही एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है मंगला तो अपनी बात पर अडी रही  मैं तो उनके यहां सालों से काम कर रही थी लेकिन किसी को भी उनके घर का पता मालूम न था मंगला तो पागल हो चुकी थी और रोती रहती थी कि मेरे सेठ और सेठानी कहां चले गए हैं मैं जिनके यहां सालों से आ रही हूं उनका यहां घर है ही नहीं ।लगातार एक हफ्ता वह वहां आती रही लेकिन उसको वह घर का पता ना मिल सका थक हार कर वो उसी मंदिर में गई आज वो मंदिर की सीढ़ियों पर ना बैठकर मंदिर के अंदर चली गई क्योंकि अब वह पहले जैसी गरीब न रही थी आज उसने साफ-सुथरे कपड़े पहने हुए थे  । आज ठाकुर जी और किशोरी जी के मंदिर में उनकी प्रतिमा के दर्शन को कर के वह एकदम से अचंभित हो गई अरे यह तो वही सेठ और सेठानी के रूप जैसी प्रतिमा है अब उसका माथा ठनका जिनके यहां मैं सालों से काम कर रही थी क्या वह ठाकुर जी और किशोरी जू थे। क्या उन्होंने मेरे मन के भावों को पड़ा था कि मैं उनकी सेवा करूं मैं उनको भोग लगाऊं मैं उनके लिए नए-नए वस्त्र बनाकर उनको पहनाऊं उनके प्रांगण की सेवा करूं तो क्या यह मौका उन्होंने मुझे अलग से दिया है यह सोचकर मंगला के पैरों तले जमीन खिसक गई कि क्या सच में ठाकुर जी और किशोरी जू  थे।वह अपने आप को कोसने लगी कि जब तक मेरे मन में भाव था कि मैं ठाकुर किशोरी जी की सेवा करुं तब तक तो उन्होंने मुझे अपनी सेवा में रखा लेकिन जब मेरे मन में यह भाव आया कि अब तो मेरे पास इतना धन हो गया है कि मैं भी नौकर रख सकती हूं तो तब  उन्होंने मेरे मन के भावों को पढ़ा और उन्होंने मुझे अपनी सेवा से मुक्त कर दिया ।वह ठाकुर किशोरी जी के प्रतिमा के आगे जोर जोर से रोने लगी और क्षमा मांगने लगी जिसके कारण आज मैं यहां तक पहुंची हूं आज उन्होंने मुझे सेवा मुक्त कर दिया है सब आने जाने वाले उसकी तरफ देखकर हैरान हो रहे थे कि इस देवी को क्या हो गया है ! मंगला तो जैसे बावंरी सी हो गई थी वह बस अब मंदिर की सीढ़ियों पर बैठी रहती और हर आने-जाने वाले  भगतजन  की चरण धूलि अपने मस्तक पर लगाती रहती और  लाडली लाल जू से प्रार्थना करती रहती कि उस सेवा से वंचित कर दिया लेकिन जब तक मेरे तन में प्राण है तू अपने भक्तजनों की चरण धूलि से मुझे विमुख मत करना ‌।

           हमारे जैसे भाव  होते हैं ठाकुर जी तुरंत पहचान जाते हैं और वैसे ही सेवा और फल प्रदान करते हैं इसलिए हमें ठाकुर जी के प्रति सेवा भाव सच्चे मन से रखनी चाहिए क्योंकि ठाकुर जी भाव के भूखे हैं ना कि धन के इसलिए जैसी जैसी भावना जिसकी वैसा ही फल ठाकुर जी और किशोरी जी हमें देते हैं।

💚💛जय जय श्री राधेश्याम💛💚

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