प्रश्नोतरी भाग-1



प्रश्न :- 11
साधना करते - करते ही मन दिव्य होने लगता है या थोड़ा शुद्ध होने के बाद गुरु से जब प्रेम मिलता है उसके बाद जा के दिव्य होता है ?
श्री महाराज जी द्वारा उत्तर
नहीं, शुद्ध होने लगता है उसी को दिव्य कहते हैं। शुद्ध होने लगता है कि गंदगी साफ होती गई, तो हमारे विचार अच्छे होने लगे नैचुरल, हमारा अटैचमेन्ट संसार से कम होने लगा नैचुरल। ये सब उसकी पहचान है। जैसे हमारा किसी ने अपमान किया तो कितना चिंतन हुआ था, आज अपमान किया तो थोड़ी देर में खतम कर दिया । हाँ, अब आगे बढ़ गये । कल हमारा सौ रुपया खो गया तो हम आधा घंटा परेशान रहे , आज सौ रुपया खो गया तो पाँच मिनट परेशान रहे , उसके बाद हमने कहा- ये हमारे लिए नहीं रहा होगा। हटाओ। ज्यों - ज्यों हम आगे बढ़ेंगे ईश्वर की ओर त्यों - त्यों ये कष्ट की फीलिंग कम होती जाएगी। ये माइल स्टोन असली है।

तो साधना में मन धीरे - धीरे , धीरे - धीरे शुद्ध होता है। लेकिन जब पूर्ण शुद्ध होगा तो अलौकिक शक्ति गुरु देगा , वह असली दिव्य है जिससे माया निवृत्ति होगी , भगवद्दर्शन होगा, सब समस्यायें हल होंगी। वह दिव्यता एक पॉवर है । और इधर की जो शुद्धता है इसको दिव्य बोलते हैं कि ये माया से रहित होने लगा । मायिक अटैचमेन्ट कम होने लगा, ईश्वरीय अटैचमेंट बढ़ने लगा।
जगद्गुरुतम श्री कृपालु जी महाराज

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