प्रश्नोत्तरी भाग-1

प्रश्न :-113
महाराज जी! रास शब्द का अर्थ क्या है?

श्री महाराज जी द्वारा उत्तर
‘रस' शब्द से बना है ‘रास'। 'रसानां समू‌हो रासः'। रस ही अनन्त मात्रा का होता है फिर दिव्यानन्दों में सबसे उच्च कक्षा का रस, समर्थारति वालों का, उसका कहना ही क्या है। उस रस का भी जो समूह है उसको रास कहते हैं। भगवान् का एक नाम है रस- ‘रसो वै सः'उसी का पर्यायवाची है, ‘आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्' । लेकिन रस में भी कई कक्षाएँ हैं इसलिये पुनः वेद कहता है- ‘स एव रसानां रसतमः परमः' पहले तो कह दिया, ‘रसो वै सः'। वो रस है, ठीक है। लेकिन वह परम रसतम भी है। रस ये ब्रह्यानन्द वाले भी पा चुके, इसलिये ये लोग कहते हैं, ‘'रसो वै सः '।
आनन्द मिल गया इनको। लेकिन जिनको महारास मिला, वो ‘रसो वै सः' से सन्तुष्ट नहीं हैं तो उनके लिये वेद की ऋ्चा ने कहा, 'स एव रसानां रसतमः परमः'। वही ब्रह्य जो रसरूप है, आनन्द रूप है, वही रस का समूह, एक तम् प्रत्यय होता है संस्कृत में, उसका मतलब होता है सर्वोच रस। गुह्य, गुह्यतर, गुह्यतम। तो तम जहाँ आ जाये उसका मलतब होता है सर्वोच्च रस। आगे और कुछ नहीं। जैसे पुरुषोत्तम। पुरुष जीव भी है, पुरुष ब्रह्य भी है, पुरुष सब अवतार हैं लेकिन श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम हैं, उत्तम, अन्तिम। उच्च में तम् प्रत्यय हुआ। उत् ऊँचाई में, तम सर्वश्रेष्ठ-सर्वोच्च। ये रास का अर्थ है।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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