♻♻हमारे महाराज जी ♻♻


       


एक वृद्ध सज्जन जो पिछले अनेक वर्षों से, वृंदावन वास कर रहें हैं, हमारे सत्संग में भी आते थे l 9-1-99 को वो श्यामा श्याम धाम आये तो महाराज जी ने स्वयं इनका  परिचय दिया । ये वृंदावन के नारद हैं l वृंदावन और उसके आस पास के सभी मंदिरों, आश्रमों, प्रवचनों एवं आयोजनों में जाते रहते हैं l वहाँ भी 'किंतु' 'परंतु' बहुत लगाते थे l हमे आकर सब जगह की रिपोर्ट देते रहते हैं' हम सभी हँस पड़ें और वह सज्जन भी हँस पड़ें l


उन सज्जन ने कुछ प्रश्न पूछे, जो हमारे लिये बहुत सार्थक सिद्ध हुए l


सज्जन ने आग्रह किया, महाराज जी! अभी कुछ दिन पहले तीन शंकरचार्य आए थे, उन्होनें अपने भक्तों के साथ चौरासी कोस की वृंदावन गोवर्धन यात्रा की थी, अब आप भी अपने भक्तों को लेकर चौरासी कोस की परिक्रमा करवाईये l


श्री महाराज जी बोले,  हम अपने लोगों को चौरासी ( योनियों ) के चक्कर से मुक्त करवाना चाहते हैं l और आप चाहते हैं ये चौरासी के चक्कर लगावे, हम सबने ठहाका लगाया l


सज्जन माने नहीं और किंतु लगाते हुए पूछा, किंतु स्वामी जी यहाँ सभी चौरासी कोस की परिक्रमा को बहुत महत्व देते हैं l  श्री महाराज जी बोले, ठगी है और ठग लोगों का तो यह साधन बन गया है l भोले लोगों को ठगने का l ठीक साधन तो लोग बतलाते नहीं जिस साधन से भगवान से प्रीति बढ़े वही साधन सर्वश्रेष्ठ है। चक्कर लगाने से अच्छा एकांत में संकीर्तन करना व आँसू बहाना है l किसी से पूछो क्या चौरासी कोस की परिक्रमा कर लेने के बाद, उनकी भगवान में प्रेम या निष्ठा बढ़ी ?


सज्जन ने बीच में ही शब्दों को रोक लिया महाराज जी, परिक्रमा के बाद, भेंट आदि के बाद, लोग अपने आप को बहुत कोसते हैं किंतु भगवान कृष्ण ने भी अपने माता पिता को चौरासी कोस की परिक्रमा करवाया था भला क्यों ?


महाराज जी - भगवान से जाकर पूछो मुझसे क्यों पूछते हो ? हम सब हँस पड़े l कुछ क्षण श्री महाराज जी गम्भीर रहे और यह श्लोक बोले


गो कोटि दानं ग्रहणेषु काशी

प्रयाग गंगा युत कल्प वास:।

यज्ञागतं मेरु सुवर्ण दानं

गोविंद नाम्नान कदापि तुल्यम।।


फिर श्री महाराज जी ने इसका भावार्थ किया l


भावार्थ - यदि चंद्रग्रहण के दिन काशी में 1 करोड़ स्वर्ण मढ़ी सींग वाली गउएं दान की जाये, दस हज़ार वर्ष तक कल्प वास किया जाये और इन सब कर्मों के फल को तुला के एक पलड़े में रख दिया जाये और 'गोविंद नाम' को दूसरे पलड़े में रख दिया जाये तो गोविंद नाम भारी पड़ेगा l


कुल मिलाकर आशय ये है -परिक्रमा, तीर्थाटन, दान, यज्ञ, वास आदि का अपना महत्व है परंतु भगवान के नाम सुमिरन के समक्ष यह सब कुछ भी नहीं है l


श्री मद् सद्गुरु सरकार की जय ।

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