तिथि अनुसार आज श्री महाराज जी की प्रथम सुपुत्री का अवतरण हुआ। महाराज जी ने उनका नाम विशाखा त्रिपाठी रखा, जिन्हें आप बड़ी दीदी के नाम से जानते हैं और मैं जीजी त्रिपाठी के नाम से पुकारता हूँ। अवतरण मैंने इसलिए कहा क्योंकि महाराज जी राधावतार थे, और अध्यात्म में चलने वाला हर जीव जानता है कि चाहे वह रामावतार हो जहाँ राम जी की संताने लव एवं कुश है, या कृष्णावतार हो जहां उनके एक लाख इकसठ हजार अस्सी पुत्र हों जिन्होंने आपस में लड़ अपनी लीला का संवरण किया, सब स्वयं भगवान ही थे। अतेव भगवान के वंश में सब भगवान ही होते हैं, उसमे जीव क्लास का प्रवेश नही हैं इसलिए साधकों को जीजी के प्रत्येक कर्म को लीला समझ उसका अनुकूल चिंतन ही करना चाहिए।
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