महान् क्या होता है, अनर्थ निवृत्ति क्या होती है?

  【📖प्रश्नोतरी भाग- 2 📖】【प्रश्न :- 12】

    महान् क्या होता है, अनर्थ निवृत्ति क्या होती है?

     श्री महाराज जी द्वारा उत्तर

JAGADGURU KRIPALU JI MAHARAJ

भगवान की पॉवर का नाम प्रकृति है। एक सूक्ष्म शक्ति है, उसका कोई रूप रंग नहीं होता । उस प्रकृति से महत्तत्त्व की उत्पत्ति होती है, जब सृष्टि होती है। वह भी सूक्ष्म होता है। उससे अहंकार पैदा होता है, वह भी सूक्ष्म होता है। उसके बाद जब पंचमहाभूत प्रकट होता है तो यह स्थूल हो जाता है। यानी पहले आकाश यह भी सूक्ष्म-सा है। आकाश का कोई रूप नहीं होता, आकाश को कोई छू नहीं सकता। यहाँ तक सूक्ष्म है। फिर आकाश के बाद वायु बना। अब वायु को देख नहीं सकता कोई, लेकिन छू सकता है; एक गुण आया उसमे छूने का। फिर वायु से आग बनी, अब उसका रूप भी आ गया। आग से जल बना उसका भी रूप है, स्पर्श है। फिर पृथ्वी बनी, फिर वृक्ष वगैरह बने संसार बना। तो यह प्रकृति, महान, अंहकार आदि सब सूक्ष्म तत्त्व हैं। एक दूसरे के कार्य। फिर जब प्रलय होता है तो एक दूसरे में यह लय होते जाते हैं। अपने-अपने कारण में।

और अनर्थ जो होता है वह- काम, क्रोध, लोभ, मोह यह जो मानस मायिक दोष हैं, इनको अनर्थ कहते हैं। तो भक्ति के द्वारा-

ततोऽनर्थनिवृत्तिः स्यात्ततो निष्ठा रुचिस्ततः।

(भ. र. सि ४-८) 

भक्ति करने से अनर्थ की निवृत्ति होती है अर्थात् यह अपना-अपना बोरिया बिस्तर बाँध कर भागने लगते हैं कि यह भक्ति करने लगा, भगवान अंदर आने लगे। तो जहाँ भगवान रहेंगे वहाँ माया नहीं रह सकती। प्रकाश होने लगा तो अंधकार जाने लगा। थोड़ा प्रकाश हुआ तो थोड़ा अंधकार गया और प्रकाश हुआ और अंधकार गया, पूरा प्रकाश जब हो जाएगा तो अंधकार सदा को चला जाएगा।

यह छोटे - मोटे प्रश्न हैं। लेकिन, प्रश्न को लाना नहीं चाहिए केवल साधना करने पर ध्यान दो। ज्यों ज्यों अन्तःकरण शुद्ध होगा अपने आप समाधान होता जाएगा। प्रेक्टिकल एक्सपीरियंस के बिना खाली थ्योरेटिकल ब्रह्मा का बाप भी समझाये तो तो पूरा पूरा बोध नहीं हो सकता, अनुभव से ही होगा। इसलिए प्रश्न को पैदा करना और फिर परेशान होना यह बीमारी कोई मत पालना।

 जगद्गुरुतम श्री कृपालु जी महाराज

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