श्री महाराज जी के मुखारविन्द से गायन व पद व्याख्या :-

धनि धनि प्रेम धनि धनि नंदनंदन,
करु  वंदन  प्रेम  अरु  नंदनंदन ।

होड़ जब होय प्रेम अरु नंदनंदन,
जीते नित प्रेम हारे नित नंदनंदन ।

श्रुति कह जग के पिता हैं नंदनंदन,
प्रेम ने बनाया वाय ब्रज नंदनंदन ।

श्रुति कह भूख प्यास नहिं नंदनंदन,
प्रेम ने बनाया भूखा प्यासा नंदनंदन ।

जाको नाम जपि जन काटे भव बंधन,
सोइ ऊखल बंधा मांगे मुक्ति गोपी जन ।

नाचें जाकी माया वश बड़े बड़े ज्ञानी जन,
सोइ गोपी छाछ पर नाचे नंदनंदन ।

श्रुति अरें अस्तुति जेहि नंदनंदन,
सोइ तुतुराय बतराय गाय बछरन ।

जो न जाय शंभुहूं समाधि नंदनंदन,
सोइ गारी खाने जाय घर घर गोपी जन ।

जाको कह वेद है अजित नंदनंदन,
सोइ पायो रणछोर नाम नंदनंदन।

श्रुति कह आनंदकंद नंदनंदन
सोइ माय गोद हित रोये नंदनदन 

श्रुति कह डर डरे डर नंदनंदन,
सोइ माय सांटी लखि डरे नंदनंदन ।

श्रुति कह नेति नेति नेति नंदनंदन,
वाको गोपी कह चौर जार नंदनंदन ।

श्रुति कह जग वंदन नंदनंदन,
सोइ करे नित राधारानी पद वंदन ।


उमा रमा चापें पग जेहि नंदनंदन,
राधारानी पग चापें सोइ नंदनंदन ।

श्रुति कह वेद वेद्य जेहि नंदनंदन,
सोइ गोपन बने घोड़ा नंदनंदन ।

श्रुति कह बुधि पर जेहि नंदनंदन,
उठवावे गोबर टोकरि गोपीजन ।

उर लाना चाहे जेहि योग बल योगी जन,
सोइ राधा को मनावें रो के नंदनंदन ।

जो है सारे जग का ही दाता नंदनंदन,
सोइ बना राधा का भिखारी नंदनंदन ।

सनकादि कृपा चह जेहि नंदनंदन,
राधा कृपा चह सो 'कृपालु' नंदनंदन ।

🌷🌷ब्रज रस माधुरी, भाग-२🌷🌷
         जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

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