#उत्तर : अरे! पा रहे हो तो क्या भगवान दे रहे हैं? मनुष्य को दुःख नहीं मिल रहा है संसार में। दुःख तो बहुत कम है प्रारब्ध का, 1% भी नहीं है। यह अपनी मूर्खता से मनुष्य दुःखी हो रहा है। दुःख कहीं बाहर से नहीं आता है। एक व्यक्ति है; माँ से प्यार किया, बाप से प्यार किया, बेटे से प्यार किया, बीवी से प्यार किया। अब उसके दुःख में दुःखी हो रहा है। उसके मरने पर दुःखी होओ, क्यों प्यार किया?
वेद कहता है भगवान से प्यार करो। तुम्हारी गलती है, attachment करो फ़िर रोओ। यह तो तुमने दुःख बुलाया है, यह प्रारब्ध का थोड़ी है। प्रारब्ध का तो कभी कभी आता है। यह तो अपने ही क्रियमाण कर्म का है। अपने जो reaction हैं मन के, attachment का। किसी ने अधिक किया उसको अधिक दुःख, किसी ने कम किया उसको कम दुःख, किसी ने और कम किया उसको और कम दुःख। जैसे हमारी कोई निन्दा करता है तो अहंकार के कारण हमको दुःख होता है। यह तो तुमने बीमारी पाल ली अपने आप। तुम जानते हो कि हम अनन्त जन्म के पापात्मा हैं, अल्पज्ञ हैं, अज्ञानी हैं, सब तरह की गड़बड़ है। हाँ, मालूम है। तो क्यों feel करते हो? किसी ने कह दिया कामी हो, क्रोधी हो, लोभी हो, क्यों बुरा मानते हो? यह तुम्हारी गलती है न? तो दुःख तो तुमने बुलाया है। दुःख प्रारब्ध का ऐसा कुछ नहीं है, बहुत कम है। दाल में नमक के बराबर।
इसी मनुष्य जन्म में तो तुलसी, सूर, मीरा हुए हैं, दुःख नहीं पा रहे हैं। तुम लोग ऐसा क्यों नहीं करते? अब कोई आदमी अपने हाथ से मारने चले, पत्थर मार ले और कहे - 'हमको दुःख मिल रहा है।' कीचड़ में पैर डाल दिया और चिल्ला रहा है - 'गंदा हो गया, पानी लाओ, तौलिया लाओ....।' अरे तो क्यों डालते हो कीचड़ में पैर को?
हम को साहब ज्ञान नहीं था हम आत्मा हैं और हमारा लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति है।
तो क्यों नहीं ज्ञान प्राप्त किया? मनुष्य किसलिए बनाये गए हो तुम? प्राप्त करो ज्ञान, तदनुसार आचरण करो, अभ्यास करो, कोई दुःख नहीं होगा। अरे जहाँ attachment होता है उसी के वियोग में दुःख होता है। जब कहीं तुम संसार में सुख न मानो तो कहीं दुःख नहीं मिलेगा। सुख मानना - यह तुम्हारा काम (गलती) है।
छोटा सा बच्चा है अभी दो महीने, 4-6 महीने का। गाली दो तो कोई असर नहीं, हँस रहा है। पाखाना गंदा सब पड़ा हुआ है, उसी में अपना पैर उठा उठा के किलकारी मार रहा है।
हम दुःखी जो होते हैं वह अपने कारण होते हैं। संसार में न सुख है न दुःख।
#जगद्गुरुश्रीकृपालुजीमहाराज।
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