शास्त्रे यक्तौ च निपुण: सर्वथा दृढ़निश्चय:। प्रौढश्रद्धोधिकारी य: स भक्तावुत्तमो मत:।।




 
शास्त्रे यक्तौ च निपुण: सर्वथा दृढ़निश्चय:।
प्रौढश्रद्धोधिकारी य: स  भक्तावुत्तमो मत:।।

    ( भ.र.सि.२-९ )

ध्यान दो।नम्बर एक शास्त्र वेद के ज्ञान में निपुण हो,अगर वो निपुण नहीं होगा तो एक आदमी ने अपने तर्क से उसके दिमाग में भूसा भर दिया और वो अलग हो जायगा।हमारी बुद्धि तो वैसे ही संशयात्मा है।इसलिये शास्त्र वेद का ज्ञान परमावश्यक है।वो भी किसी महापुरुष से मिले,पण्डितों से मिलने से वो काम नहीं बनेगा और दिमाग खराब हो जायगा।वो कहेगा,ये जप कर लो,एक हजार,दो हजार,एक लाख,चार लाख,चारों धाम घूम आओ,गोलोक मिल जायगा।ये सब फिजिकल ड्रिल बताते हैं।गंगा में डुबकी लगा लो।गंगा सागर चले जाओ।बद्रीनारायण,अरे और ऊँचे केदारनाथ,और एक बर्फ के शंकरजी हैं,वहाँ चले जाओ।बर्फीले भगवान् और हम घूम रहे हैं पागल सरीखे और हमारे अन्दर भगवान् बैठे हैं,वो हँसते हैं।अरे गधे कहाँ जा रहा है ?मैं तो तेरे भीतर बैठा हूँ।
      - जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज❤️❤️🙏🏻🙏🏻


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