मम ठाकुर श्यामा श्याम,
दोउ पूर्णकाम अभिराम।
चिन्मय वृंदावन धाम,
लीला कर दिव्य ललाम।।
दोउ तन सुखघन अभिराम,
दोउ प्रेम रूप रस धाम।
दोउ भज आठों याम,
दोउ धनी प्रेम निष्काम।।
श्यामा बरसानो धाम,
है श्याम धाम नंदगाम।
इक भोरी श्यामा नाम,
इक नटखट हैं घनश्याम।।
नहिं चह सुख मायिक धाम,
नहिं चह सुख मुक्ति ललाम।
सेवा चह श्यामा श्याम,
बस इक यह रह मन काम।।
रसना रट श्यामा श्याम,
मन चिंतन कर वसुयाम।
उर रहे प्रेम निष्काम,
सिर रह 'कृपालु' गुरु पाम।।
🌷ब्रजरस माधुरी -2🌷
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
🌷🌷🦜🦜🙏🏻🙏🏻
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