*उधार करना यही एक आदत ऐसी है हम लोगों की जिसने अनन्त जन्म बरबाद कर दिये, अनन्त जन्म। कर लेंगे। महापुरुष भी मिल गया, तत्त्वज्ञान भी हो गया, इस शरीर की क्या इम्पॉर्टेन्स है, किसलिये मिला है ? देवता भी चाहते हैं इस शरीर को । इसका क्या उपयोग करना है, ये सब समझ में आ गया। भारत में जन्म भी हो गया, सब बात चीज बन गई लेकिन कर लेंगे। अभी तो पढ़ना है, अभी तो शादी-ब्याह करना है, संसार का आनन्द लेना है। अभी तो बाल-बच्चे छोटे छोटे हैं, जरा बड़े हो जायें। मृत्यु तक उधार करता रहा। उसका वो कल नहीं आया जब प्रारम्भ कर दे। तो हिदायत की जा रही है कि देखो बेटा, ये कल-कल की बात छोड़ो। वेद कहता है- न श्वः श्व उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद । (वेद)*
*अरे मनुष्यो ! कल-कल मत करो।*
*को हि जानाति कस्याद्य मृत्युकालोभविष्यति। (महाभारत)*
*कौन चैलेन्ज करता है कि हम कल तक रहेंगे। यही एक ऐसा समय है जिसे ब्रह्मा ने छिपा रखा है। कोई नहीं जानता। अरे! हम पहलवान हैं। अरे! बड़े-बड़े पहलवान को जाना पड़ेगा, उसी क्षण। कोई नहीं बचेगा। तो उधार बंद करो। तुरन्त करना है। तन, मन, धन, इन तीनों का भगवान् के निमित्त उपयोग हो। धन नहीं है ? नहीं। तो फिर तन-मन दो तो हैं ? हाँ हैं। लेकिन तन बन्धन में है। तो जाने दो, मन तो है? हाँ, मन है। बस मन लगाओ हरि-गुरु में ।* *अन्तःकरण शुद्ध करो, बस तुम्हारी ये ड्यूटी। इसके बाद का काम गुरु और भगवान् का है। तुम्हारा काम केवल इतना है कि अपने मन में हरि गुरु को लाकर शुद्ध करो लेकिन इसके लिये उधार न करो।*
*जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज*
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