स कर्ता सर्वधर्माणां यो भक्तस्तव केशव ।
स कर्ता सर्वपापानां यो न भक्तस्तवाच्युत ॥
(स्कंद पुराण)
जिसने श्रीकृष्ण की भक्ति की, वह समस्त धर्मों को कर चुका। सारे धर्म उसको नमस्कार करेंगे। उसे कुछ नहीं करना। अरे देखो! संसार में एक गवर्नर का पी. ए. होता है, प्रेसीडेन्ट का पी. ए. होता है, प्राइम मिनिस्टर का पी. ए. होता है, बड़े-बड़े ऑफिसर, कलैक्टर, कमिश्नर, सब उसको सलाम करते हैं, खुशामद करते हैं। वह गवर्नर तो नहीं है, प्राइम मिनिस्टर तो नहीं है, अरे, पी. ए. तो है ? उसका आदमी है। तो भगवान् का आदमी जो बन जाये, उसके खिलाफ उँगली उठाने की हिम्मत इन्द्र, वरुण, कुबेर, यमराज, ब्रह्मा, शंकर, किसी में नहीं है। आप जानते हैं, जब नृसिंहावतार हुआ था और हिरण्यकशिपु को मार दिया, नृसिंह भगवान् ने । तो ब्रह्मा, शंकर वगैरह सब थे वहाँ। इन लोगों ने मीटिंग की- अरे भई ! भगवान् हमारे मृत्यु लोक में आये हैं। इनका अभिनंदन करना चाहिये, कुछ थैंक्स देना चाहिये, धन्यवाद देना चाहिये। हम लोगों का इतना बड़ा काम किया इन्होंने, एटीकेट कहता है। तो ब्रह्मा शंकर से कहें, तुम जाओ, तुम तो सृष्टि संहार करने की शक्ति रखते हो, तुम जाओ। ऐ! तुम जाओ, तुमने सृष्टि की है, अरे ! विष्णु तुम जाओ। तुम तो रक्षा करने वाले हो, सारी सृष्टि की। एक दूसरे को ठेल रहे हैं कि तुम पहले चलो, आगे-आगे, तो पीछे-पीछे हम चलेंगे। इतने भयभीत हैं, ये लोग ! इन्द्र, वरुण, कुबेर, यमराज की कहाँ गिनती ? किसी का साहस नहीं हुआ। लक्ष्मी के पास गये कि हमेशा चरण दबाया है तुमने, आज तो यह काम करा दो, हम लोगों का। आगे-आगे तुम चलो माँ, पीछे-पीछे हम लोग चलते हैं। लक्ष्मी कहती हैं-ना, मेरा तो शरीर काँप रहा है, इनको देख करके। अंत में नृसिंह का जो आदमी था, उनका आदमी, पर्सनल आदमी जो था, उसने इन लोगों को घबड़ाते हुये देखा। उसने कहा – इधर आओ, सब लोग, मैं चलता हूँ आगे-आगे प्रह्लाद चले। सब दंग रह गये छोटा-सा बालक, अरे, मामूली शेर को भी कोई देख ले सामने खड़ा हुआ, कोई पहलवान, तो काँपने लगे और भगवान् का जो शेर का स्वरूप बना है, उसको देखकर प्रह्लाद मुस्कुराते हुए कह रहा है कि आइये, आप लोग क्यों डर रहे हैं? ये तो हमारे प्राणवल्लभ हैं, हमारी आत्मा के जीवन दाता हैं। ये भक्षक नहीं हैं, रक्षक हैं। क्यों डरते हो? यह प्रह्लाद की स्थिति और जब गये तब नृसिंह भगवान् ने प्रह्लाद को उठा लिया, प्रह्लाद के चरण को अपने हाथ पर रखा और एक हाथ सिर के ऊपर और क्रोध समाप्त। आनन्द के आँसू बह रहे हैं, नाचने लगे। इतना प्यार करते हैं भगवान् अपने आदमी से, फिर औरों की बेचारों की क्या हिम्मत है, जो कोई उँगली उठावे।
*जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज*
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