करोड़ों जन्मों के बाद
84 लाख योनियों में
भ्रमण करने के पश्चात
यह मनुष्य जीवन किन्हीं
पुण्य कर्मों के फलस्वरूप ही
हमें ईश्वरीय कृपा से मिलता है
क्या हम फिर से पुनः
उसी जीवन को जीने की शैली को
जीने का प्रयास नहीं कर रहे हैं
जिसे अनंत जन्मों से
बार-बार दोहरा रहे हैं हम
अभी हमारे पास पारमार्थिक
कार्यों के लिए समय नहीं है
पारमार्थिक कार्य तो फिर कर लेंगे
अभी तो बीबी बच्चों की
जिम्मेदारियों में व्यस्त हैं
शास्त्र कहते हैं
शरीर के लिए आवश्यक
संसारी कार्य तो शरीर से करने है
ईश्वरीय क्षेत्र में तो
मानसिक रूप से कण-कण में
व
प्रत्येक जीव में अपने हरिगुरूजी को
अपने संग मानसिक रूप
से निहारते हुए
शरीर से सांसारिककर्मों को करते हुए
श्री हरि गुरूजी की कृपाओं को
बहुत ही सहज भाव से
प्राप्त किया जा सकता है
कर लेंगे कर लेंगे न कहो
अभी कर लो
*फिर करोड़
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