भोर भइ जागो सुंदर श्याम |
झुकि झुकि झूमि झूमि मुख चूमति, मातु यशोमति भाम |
लै लै नाम पुकार द्वार पर, मधुमंगल श्रीदाम |
बछरन पियत नाहिं थन सुरभिन, परखत तोहिं सुखधाम |
ऊँ, ऊँ, करत तानि पीतांबर, सो छवि अति अभिराम |
सुनहु कान्ह करि कान जात हम, गोचारण, कह राम |
सुनि ‘कृपालु’ बल - वचन उठे हरि, अरबराइ धरि पाम ||
भावार्थ :- सोते हुए श्यामसुन्दर को जगाती हुई मैया कहती है - “ सवेरा हो गया है, जागो ” मैया यशोदा झुक - झुककर, झूम - झूमकर बार - बार कन्हैया का मुख चूमती है और कहती है – “तुम्हारा नाम ले - लेकर द्वार पर मधु मंगल, श्रीदामा आदि सखा पुकार रहे हैं | देखो तो बछड़े गायों का दूध नहीं पी रहे हैं | तुम्हारी प्रतीक्षा में है |” श्यामसुन्दर एक भी नहीं सुनते | ऊँ - ऊँ करते हुए और भी पीताम्बर ओढ़ लेते हैं | यह झाँकी अनिर्वचनीय है | इतने में ही बलराम ने कहा, “अरे कन्हैया, कान खोलकर सुन ले, मैं तो गाय चराने जा रहा हूँ |”
‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में बलदाऊ भैया की बात सुनकर श्यामसुन्दर तुरन्त ही अड़बड़ाकर उठ खड़े हुए |
🌹प्रेमरस मदिरा श्रीकृष्ण बाललीला माधुरी🌹
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
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सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
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