*♻♻ हमारे महाराज जी ♻♻*


       

महाराज जी सन् 1936 में वाराणसी से व्याकरणाचार्य की परीक्षा पास की। विषय बड़ा गंभीर था किन्तु समय बहुत थोड़ा। महाराज जी पढने का विचित्र ही ढंग रखे हुए थे। कक्षा में बहुत कम बैठते। पुस्तक घर पर ले जाकर पढते और उसके किसी अंश को चिन्हित कर लेते। उन्हीं अंशों को वे अलग कर लेते और बाद में उसका अर्थ अपने अध्यापक से पूछते। संतुष्ट न होने पर कभी-कभी ऐसा होता कि वह उन अंशों की स्वयं अपनी एक अलग ही व्याख्या कर देते। इस पर वह अध्यापक उनसे सहमत न होता तब दोनों लोग स्कूल के मुख्य प्रधान अध्यापक के पास जाकर अपनी अपनी व्याख्या बताते तब महाराज जी की व्याख्या उचित ठहरायी जाती।



बनारस की ही बात है एक बार सहपाठियों में कम्पटीशन हुआ कि कौन एक निश्चित समय में अधिक से अधिक संस्कृत का श्लोक याद कर सकता है। तब महाराज जी ने सात घण्टे में संस्कृत के 67 कठिन श्लोक याद किया जो एकदम नये थे। दूसरे स्थान पर पहुंचने वाले छात्र ने 7 घण्टे में केवल 27 श्लोक को ही याद कर पाया था।


मध्यमा साहित्य की परीक्षा के समय एक प्रश्न था, हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करना था। श्री महाराज जी ने उस हिन्दी का संस्कृत में तीन अलग-अलग ढंग से अनुवाद किया। पहले अनुवाद का शीर्षक दिया, मध्यमा कक्षा के अनुसार, दूसरा अनुवाद का शीर्षक था साहित्य जानने वालों के लिए और तीसरे अनुवाद का शीर्षक था, विशेष योग्यता वालों के लिए।


उसके पश्चात् यह भी लिख दिया, जैसी योग्यता हो उसके अनुसार मान लिया जाये।


श्री शम्भू नाथ शास्त्री उन दिनों वहां के प्रधान अध्यापक थे। उन्होंने इसे पढ लिया। इन्हें बुलाकर कहा, परीक्षक को इस प्रकार नहीं लिखा जाता। यदि फेल कर दे तो, इनका विनम्र उत्तर था, दोबारा जाँच करा ली जायेगी।


और जब मध्यमा का परीक्षा फल आया इनका नाम द्वितीय श्रेणी में था। समाचार पत्र पढा और फेंक दिया। तुरन्त ही परीक्षक संस्था को लिखा ज्ञात होता है कि काॅपियां देखी नहीं गयी हैं, उछाल कर न० दिये गये हैं। कृपया मेरी काॅपी दोबारा जांची जाय। काॅपी दोबारा जाँची(चैक) गयी और महाराज जी प्रथम श्रेणी में पास हुए।


इसी प्रकार वर्ष 1944 में आपने साहित्याचार्य की परीक्षा कलकत्ता विद्यापीठ से एक वर्ष में ही प्रथम श्रेणी में पास की। महू से महाराज जी ने प्रथम एव मध्यमा की परीक्षाएं वाराणसी विद्यापीठ से उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् आपने आर्युवेदाचार्य की परीक्षा इंदौर दिल्ली विद्यापीठ से दी।


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*।। हमारे प्यारे प्यारे महाराज जी की जय।।*

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