*शरद पूर्णिमा साधना शिविर - पहला सत्र*
💫नवम्बर 10, 2024: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼
🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷
*जगद्गुरु आदेश:*
साधना शिविर में लापरवाही क्यों? -
ये श्री महाराज जी का विनम्र निवेदन है - साधना के समय अनुशासन का पालन कीजिये। जब साधना करने के लिए शिविर में घर छोड़कर आये हैं, तो कोई किसी से बात न करें, किसी की बात न सुनें। केवल भगवान् के नाम गुण लीलादि का संकीर्तन करें और अगर थक जाएँ तो सुनें, रूपध्यान करें। दृढ़ प्रतिज्ञा कर लें कि हम हॉल में ही रहेंगे ताकि बाहर जाकर कुछ सुनना या बोलना न पड़े। कार्यकर्ताओं को छोड़कर कोई हॉल से बाहर न जाएँ। उनको भी अगर कुछ बोलना हो तो इशारों में या लिखकर बता दें। मौन व्रत का पालन करें।
भगवान् के धाम में आकर अपने टीचर की बात नहीं मानी तो राधारानी दुःखी होंगी। इससे श्री महराज जी को दुःख होता है। गुरु के अनुयायी होने का मतलब 100% आज्ञा पालन होता है। अनंत जन्म हमने बर्बाद कर दिये, अब थोड़े समय के लिए राधारानी के धाम पर आये हैं तो इसका उपयोग करना चाहिए। ज़बान और कान पर कण्ट्रोल करना चाहिए।
द्वौ निषेद्य यन् मन्त्रयेते तद् राजा वेद (ऋग्वेद)
जब दो आदमी प्राइवेट में बात करते हैं और ये सोच रहे होते हैं की तीसरा कोई सुन नहीं रहा, तो ठाकुर जी हसते हैं कि मैं तेरे अंदर बैठकर सुन रहा हूँ, तू धोखे में है।
हमें समझना चाहिए कि गुरु और भगवान् हर समय हमारे आइडियाज़ और कर्म को नोट कर रहे हैं।
साधना क्लास में समय पर आना चाहिए। संसार में तो हम बड़ी सावधानी से रहते हैं। संसार में सर्वत्र हमारा मन वश में रहता है। हर जगह हम टाइम से पहले पहुँचते हैं, अनुशासन में रहते हैं, नियम का पालन करते हैं चाहे ट्रेन पकड़ना हो या बस या जहाज़। बल्कि वहाँ तो हम आधा घंटा पहले पहुँच जाते हैं इस डर से कि जहाज़ छूट न जाये, या ऑफिस में ससपेंड ने हो जाएँ। तो भगवान् के एरिया में आए तो ऐसे क्यों सोचते हो कि - 'मेरा मन कर रहा है...।' कम से कम ऐसे कर्म तो करें जिससे अगले जन्म में मानव देह तो मिले।
हमें ये अहंकार हो जाता है कि हम सब कुछ जानते हैं - ये ज्ञानाभिमान कहलाता है - जब गुरु आदेश और वेद शास्त्र का पालन नहीं कर रहे हैं तो हमें क्या तत्त्वज्ञान है? और अगर सब जानकर आज्ञा पालन नहीं करेंगे तो ये और बड़ा अपराध है। संसार में रहकर पाप करने और धाम में आकर पाप करने के फल में बहुत बड़ा अंतर है - इसको नामापराध कहते हैं । भगवान् के निमित्त जीवन में कुछ घंटे हम देते हैं, उसमें भी हम लापरवाही करते हैं। तत्त्व ज्ञान को बार-बार सुनो, बार-बार मनन करो (श्रोतव्य:, मंतव्य:, आवृत्तिरस्कृत् उपदेशात्) तब डिसीज़न पक्का होगा, तब पालन होगा। सिद्धांत बलिये चित्त न कर आलस।
गुरु और भगवान् की कृपा पाने के लिए कुछ करना पड़ता है। शरणागति का अर्थ मनमानी करना या चोरी-चोरी बात करना नहीं है। अगर हमें वही लाभ चाहिए जो शरणागत जीवों को मिलता है, तो शास्त्र वेद और गुरु के आदेशानुसार चलना चाहिए। साधना करने आये हैं तो करके दिखाओ। इस दुष्ट मन की एक न सुनो। ज़बान को बाँध लो। कान में रुई लगाकर चलो। ज़िद्द कर लो कि हम किसी की नहीं सुनेंगे। साधना के समय महाराज जी या भगवान् की भी बातें न करें। जब अजामिल सरीका महापापात्मा भगवत्प्राप्ति कर सकता है, तो क्या हम बिना बोले नहीं रह सकते? भगवान्नाम न ले सकें तो कम से कम भगवान् का चिंतन तो करें।
*कीर्तन:*
- मन करु सुमिरन राधे रानी के चरण (ब्रज रस माधुरी, भाग 1, पृष्ठ सं. 125, संकीर्तन सं. 58)
- मेरी राधे मेरी राधे मेरी राधे मेरी राधे (ब्रज रस माधुरी, भाग 3, पृष्ठ सं. 164, पद सं. 97)
- रहो रे मन गौर चरन लव लाई (प्रेम रस मदिरा, सिद्धान्त माधुरी, पद सं. 91)
- पाहि मां श्यामा श्याम (युगल माधुरी, पृष्ठ सं. 139, पद सं. 43)
- हरे राम संकीर्तन
*Happy Akshaya Navami!* 👣🪷💖✨
*Sharad Poornima Sadhana Shivir - First Session*
💫November 10, 2024: Highlights of soulful morning sadhana🎼
🌷✨Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj ki Jai!✨🌷
*Jagadguru Aadesh:*
Carelessness in Sadhana Shivir -
This is a humble request from Shri Maharaj Ji - please follow discipline during sadhana. Having left your homes to attend Sadhana Shivir for devotional practice, you must not engage in conversation or listen to others. Dedicate yourself solely to singing God's names, qualities, and pastimes. If you get tired, then listen to kirtan and do Roopdhyan. Make a firm resolution to remain within the sadhana hall to avoid hearing or talking to others outside. Except for the volunteers, no one should leave the hall. If communication is absolutely necessary, use gestures or written notes. Complete silence must be observed during sadhana shivir.
Not following your teacher's instructions after coming to God's abode brings sadness to Radharani, which deeply pains Shri Maharaj Ji. Being a guru's disciple means complete obedience. After wasting countless lifetimes, now that you have reached Radharani's abode for this brief period, utilize it fully by controlling your tongue and ears.
dvau niṣedya yan mantrayete tad rājā veda (Rigveda)
When two people converse privately, thinking they are unheard, Thakur Ji smiles and says, "I am present within, listening to you. You are deceived."
Remember that the Guru and God are always aware of our thoughts and actions.
Come on time for the sadhana class. You exercise great care in worldly matters - arriving early for trains, buses, flights, and work commitments to avoid missing them or risking your employment. Why, then, do you follow your whims when in Dhaam? At a minimum, perform actions that ensure a human birth in your next life.
Becoming proud thinking that we know everything is called 'gyanabhimaan' - What philosophical knowledge do you possess if you don't follow these teachings? Moreover, possessing knowledge but failing to apply it is an even greater offense. The consequences of sins committed in dhaam are more severe than those in the material world - this constitutes nāmāparādh. You dedicate only a few hours to God, yet remain negligent even in that time. Repeatedly listen to philosophical knowledge and repeatedly contemplate on it (śrotavya:, maṃtavya:, āvṛttiraskṛt upadeśāt). Only then can you form a firm resolve and follow through. siddhāṃta baliye citta na kara ālasa।
Attaining the blessings of Guru and God requires effort. Surrender does not mean following your mind's desires or conversing secretly. If you wish to attain the same benefit surrendered souls receive, follow the scriptures, Vedas, and your Guru's instructions. When you have come to do sadhana, focus solely on that. Don't listen to this evil mind. Tie your tongue, and put cotton in the ears. Be stubborn that you will not listen to anyone. Do not talk about Maharaj Ji or even God during sadhana.
If a great sinner like Ajamil could attain God, why can't you remain silent? If you cannot speak out God's name, at least maintain a loving remembrance of God.
*Kirtan:*
- Mana karu sumiran Radhey Rani ke charan (Braj Ras Madhuri, part 1, page no. 125, sankirtan no. 58)
- Meri Radhey meri Radhey meri Radhey meri Radhey (Braj Ras Madhuri, part 3, page no. 164, pad no. 97)
- Raho re man Gaur charan lava laai (Prem Ras Madira, Siddhant Madhuri, pad no. 91)
- Paahi maam Shyama Shyam (Yugal Madhuri, page no. 139, kirtan no. 43)
- Hare Ram Sankirtan
http://jkp.org.in/live-radio
No comments:
Post a Comment