महाबनी परिवार पर विशेष कृपा


महाबनी जी की दो बड़ी पुत्रियों के नाम थे उर्मिला व ऊषा । उर्मिला अपनी बुआ के पास दिल्ली में रहती थीं। उनके फूफा जी नार्दन रेलवे में जी.एम. थे। उनके कोई कन्या नहीं थी। अतः उन्होंने उर्मिला जी को लाड़ चाव से खूब बिगाड़ा। उन्हें पाश्चात्य सभ्यता में रहने का अभ्यास हो गया था। पढ़ने के लिये कभी विद्यालय भेजा ही नहीं। किन्तु घर का वातावरण इस प्रकार का था कि वह अंग्रेजी भाषा बेधड़क तेजी से बोल लेती थीं जबकि उन्हें A B C D भी पूरा-पूरा लिखने का ज्ञान नहीं था।




दूसरी पुत्री उषा अपने चाचा के पास रहती थीं। उनके भी कोई संतान नहीं थी। अतः उनको भी इसी प्रकार का बना कर बिगाड़ा गया। यद्यपि दोनों के ही संस्कार स्वभावतः अत्युच्च थे। तथापि विपरीत वातावरण मिलने के कारण वे संस्कार दबे हुए थे।

एक दिन महाबनी जी से वार्ता करते हुए इन दोनों की बात समक्ष आई। श्री महाराज जी ने बड़े खेद व आश्चर्य से कहा कि तुम अपनी दोनों पुत्रियों का जीवन अपने आप बर्बाद कर रहे हो ? उन दोनों को तुरन्त वापस बुलाओ।






महाबनी जी ने बुलाने का प्रयास किया किन्तु वे आने को तैयार नहीं हुईं। तब करुणावश श्री महाराज जी ने कहा, “मैं तुम्हारी बहन शकुन्तला के घर स्वयं जाऊँगा और उर्मिला को भी यहाँ आने के लिये प्रेरित करूँगा।" शकुन्तला जी के पति उत्तर रेलवे में जनरल मैनेजर थे। उनका रहन-सहन भी बहुत कुछ ब्रिटिश प्रणाली का था। अतः महाबनी जी थोड़ा घबराए कि श्री महाराज जी तो अपनी धुन के मतवाले एक विचित्र प्रकार के संत हैं और वे लोग तो पूर्णतया पाश्चात्य सभ्यता में रंगे हुए व पदाभिमान से मदान्ध हैं, भला वे इन्हें क्या समझेंगे ? कहीं वे लोग इनका अपमान न कर दें। अतः महाबनी जी ने अपनी बहन शकुन्तला को पत्र द्वारा विस्तार से श्री महाराज जी का परिचय दे कर उनकी महानता का बोध कराया। जिससे उनके मन में भी श्री महाराज जी के लिये अपार श्रद्धा उत्पन्न हो गई।

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