प्रश्न: जैसे पुराने कपड़े हैं और खाना खिलाना है गरीब को, इस तरह का भी दान कर सकते हैं संसार में ?

उत्तर - श्री महाराज जी द्वारा:- गरीब को खाना खिलाओ या कपड़ा दो या रुपया दो, बात एक है। लेकिन वह गरीब का अंतःकरण कैसा है? वह जैसा भीतर है उसका वैसा फल मिलेगा। नरक भी मिल सकता है, स्वर्ग भी मिल सकता है, अगर वह महापुरुष है तो भगवत्कृपा भी मिल सकती है। उस पात्र के अनुसार फल मिलेगा। कपड़ा हो, खाना हो, दवा हो, कोई भी हैल्प हो, सवाल ये है कि वह आदमी क्या करता है, उसका अंतःकरण कितना गन्दा है, कितना अच्छा है? जैसे मान लो कोई एक डकैत आपके घर पर आया और कहा- मैं बहुत भूखा हूँ। सचमुच भूखा था। तुमने खाना खिला दिया। अब ताकत आ गई एक मर्डर कर दिया उसने। अब तुमने तो खाना खिलाया इसलिए कि वह दुःखी है, भूखा है लेकिन उसका परिणाम उसने ग़लत कर डाला तो तुम भी पाप के हक़दार बनोगे। इसलिए पात्र के अनुसार ही दान करना चाहिए।



 कुपात्र में दान करने से खराब फल मिलेगा। अब तुम कहो कि मैं क्या जानूँ? तो तुमको जानना चाहिए। ऐसे कहने से छुट्टी नहीं मिलेगी। अब देखो! 


हमारी दुनियावी गवर्नमेन्ट के कानून कितने आदमी जानते हैं एक अरब में। एक आदमी भी नहीं जानता। एक अरब आदमी की आबादी है भारत में, लेकिन भारत के हर महकमे के हर कानून को एक आदमी कोई याद किया हो, इम्पॉसिबिल एक ही सब्जैक्ट में, कोई क्रिमिनल का वकील है, वह भी किताब पढ़ता है। लेकिन वह कहता है कि मैं सिविल तो जानता ही नहीं बिल्कुल। मैं पोस्ट ऑफिस के कानून तो बिल्कुल नहीं जानता। यानी एक आदमी भी ऐसा नहीं है एक अरब आदमी में जो अपने देश के हर विभाग के हर कानून को जानता हो। 


और फिर यहाँ तो करोड़ों अँगूठा छाप हैं हमारे देश में लेकिन अपराध हो जाने पर गवर्नमेन्ट सबको दण्ड देती है बराबर। जज नहीं छोड़ता किसी को कि साहब हम बेपढ़े लिखे हैं, हम कायदा-कानून क्या जानें, हमको माफ़ किया जाये। न। सबको दण्ड मिलेगा, एडवोकेट होगा उसको भी, अँगूठा छाप होगा उसको भी। तो भगवान् कहते हैं तुमको शास्त्र - वेद की बात जाननी चाहिए। सन्तों के पास क्यों नहीं गये, उनसे क्यों नहीं समझा, लापरवाही क्यों की? छुट्टी नहीं मिलेगी इससे, दण्ड मिलेगा। तुम्हारी ड्यूटी है। तुमको मनुष्य शरीर मिला। जब पेट के लिए तुम हजार जगह गये और सबसे नॉलेज इकट्ठा की, तो आत्मा के लिए क्यों नहीं किया ? उसके लिए समय नहीं था। इससे नहीं तुम बच सकते।


 तुमको हर कानून समझना चाहिए। ट्रेन में सफर कर रहे हो। उसके लॉ पहले समझो। क्या लॉ है ? यही, जिस टाइम ट्रेन आवे उसके पहले पहुँचो, टिकट पहले ले लो। सब बातें अच्छी प्रकार समझ के तब बैठो गाड़ी में अजी हम रुपया तो लिए हैं, टिकट लें या न लें, इससे क्या मतलब ? ये अटकलपच्चू काम न करो। मजिस्ट्रेट की जब चैकिंग हो जायगी तो दस गुना वो जुर्माना कर देगा। तो साहब जल्दी में थे हम तो जल्दी में थे तो तुमको ऐसा करना चाहिए था कि गार्ड से सर्टिफिकेट ले लेते कि हम यहाँ से बैठ रहे हैं। तो फिर रुपया तुम्हारा काम कर जाता। ऐसा कानून है? हाँ। तो किसी भी एरिया में जाओ, पहले कानून समझो फिर उसका पालन करो, नहीं तो उसका दण्ड मिलेगा। ये कहने से नहीं छूट होगी कि हम क्या जानें साहब, हम तो पढ़े-लिखे नहीं हैं। जानने से कोई मतलब नहीं। जानना चाहिए था, शास्त्र - वेद का ज्ञान तुमको करना चाहिए था। गुरु के पास जाते, महापुरुष के पास जाकर सब समझते तो लापरवाही न करते। :- श्री महाराज जी ।

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