💞 गुरू महिमा 💞


एक बार एक सत्संगी सेवा करने के लिए आया हुआ था, दस दिन की सेवा ख़तम होने के बाद वो घर जाने वाला था कि एक दिन पहले उसकी टांग टूट गयी, वह
काफी दुखी हुआ और उसके मन में ख्याल आया कि दस दिन सेवा की और उसके बदले में टांग टूट गयी
मालिक तो सब जानते हैं, जब महाराज जी संगत
को दर्शन देने के बाद अपनी कोठी जा रहे थे तो रस्ते
में उस भाई से मिले,और उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा कि आज रात को भजन पर जरूर बैठना
जब वह रात को भजन करने के लिए बैठा तो महाराज
जी उसकी सुरत ऊपर के मंडलों में ले गए और
उसको दिखाया कि जिस बस में उसने वापिस
जाना था उसका एक्सीडेंट हो गया था, और उस एक्सीडेंट में उसकी मौत हो गयी थी,महाराज जी ने उसकी सुरतको उसकी deadbody भी दिखाई, क्योंकि वह सतगुरु की शरण में आया हुआ था इसलिए महाराजजी ने उसके कर्म काटकर उसकी सिर्फ टांग ही टूटने दी जब उसकी सुरत नीचे
सिमटी तो उसका रो रो कर बुरा हाल
हुआ और उसने मालिक से अरदास की कि मालिक
बक्श दो –
बक्श दो
सार – सतगुरु पर हमें पूरा विश्वास होना चाहिए,
वो हमारा बाल भी बांका नहीं होने देते,और जो हमारे साथ होता है उसमें कहीं न कहीं हमारा अच्छा ही होता है….🙏🙏🙏
सत्संग में फ़रमाया गया-
हम जो घड़ी, आधी घड़ी ,घंटा दो घंटा भजन बैठते हे वो उस तरह है जैसे हम कोई बिमा पालिसी में थोड़ी थोड़ी रकम installment के रूप में भरते है
फिर जब बिमा पालिसी पक जाती है तब एक बड़ा amount हमें इंटरेस्ट के साथ बोनस के साथ वापिस मिलता है।
ठीक उसी तरह थोडा थोडा किया भजन एक दिन बहुत बड़ा interest और बोनस के साथ हमें सतगुरू एक साथ देता है।
कतरे कतरे से तालाब और बूँद से सागर भरता है।
हम जो डेरे में सेवा में मिटी की एक टोकरी उठाते है सतगुरू हमें उसकी भी मजदूरी देता है।
आओ आज से हम भजन की विमा policy में थोडा थोडा भजन का installment अदा करे ।
फिर आगे की गुरु पर छोड़ दे।
वो हमारे आधे अधुरे भजन की लाज रखेंगे।

जय जय श्री राधे ।


क्या आप जानते हैं कि-



१. विश्व के समस्त शास्त्रों - वेदों का सम्पूर्ण ज्ञान केवल भगवान को ही हो सकता है, अन्य किसी को नहीं.................

२. स्वयं ब्रह्मा जी को भी यह ज्ञान स्वयं भगवान ने ही कराया.............

३. धरती पर भी स्वयं भगवान के अवतार वेद - व्यास ने ही वेदों शास्त्रों को लिपिबद्ध किया.............

४. आज से लगभग ६०० वर्ष पूर्व पृथ्वी पर केवल एक विभूति थी जिनको बिना पढ़े हुए विश्व के समस्त शास्त्र वेद कंठस्थ थे और वह थे श्रीचैतन्य महाप्रभु..............

५. श्रीमहाप्रभु ने २४ वर्ष की अवस्था में सन्यास लेने के पश्चात्त २४ वर्ष तक जगन्नाथ पुरी में रहकर श्रीराधाकृष्ण भक्ति का प्रचार किया.................
(इस अवधि में उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण भी किया)

६. इसके बाद भी जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों ने उनको २४ वर्ष तक पाखंडी घोषित करके मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया................

७. ४८ वर्ष की अवस्था में जब श्रीमहाप्रभु अचानक सबके सामने जगन्नाथ जी की प्रतिमा में विलीन हो गए तो उन्ही पुजारियों ने पश्चाताप में अपने सिरों को मंदिर के पत्थरों पर पटक पटक कर फोड़ डाला...............

८. लगभग हम सभी के पूर्वज उस समय जगन्नाथ जी तक दौड़ कर गए थे और सिर पटक कर जगन्नाथ जी से क्षमा मांगी थी कि आप आये और हम आपको पहचान नहीं सके इसलिए आपसे वंचित रह गए............

९. आज की तिथि में पृथ्वी पर एकमात्र विभूति हैं जिनको ९० वर्ष की अवस्था में भी बिना पढ़े ही विश्व के समस्त शास्त्र वेद कंठस्थ हैं और वह हैं कलियुग के पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु..............

१०. श्री चैतन्य महाप्रभु की तरह ही श्री कृपालु महाप्रभु के श्री चरणों को पखारने वाला साधारण जल भी गंगाजल बन जाता है और कभी ख़राब नहीं होता.............

११. श्री चैतन्य महाप्रभु ने अपने धाम जाने के पूर्व घोषणा कर दी थी कि मै ५०० वर्ष के अन्दर पुनः अवतार लेकर आऊंगा और उसी अवधि में श्री कृपालु महाप्रभु का अवतरण हुआ है..................

१२. श्री कृपालु महाप्रभु को एक बार भी सुन लेने वाले लोग यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि उनके जैसा कोई दूसरा हो ही नहीं सकता .................

जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु कि जय ।।


जय जय श्री राधे ।

महापुरुष को पहिचान


किसी महापुरुष को पहिचानने में उसकी बहिरंग वेशभूषा को न देखना चाहिये । कोट पतलून में भी महापुरुष हो सकते हैं एवं रंगीन वस्त्रों में भी कालनेमी मिल सकते हैं । पुनः हमारे इतिहास से भी स्पष्ट है कि ९० प्रतिशत महापुरुष गृहस्थों में हुए है जिनके कपडे रँगे नहीं थे । इस कलियुग में चूँकि लोगों ने यह निश्चय कर लिया है कि बिना कपडे रंगाये कोई महापुरुष नहीं हो सकता, अतएव दंभियो को इस धारणा से लाभ उठाने का मौका मिल गया है । देखो, प्रह्लाद ने हजारों वर्ष सम्राट बन कर राज्य किया है, ध्रुव ने राज्य किया, विभीषण ने राज्य किया, सुग्रीव ने राज्य किया, जनक ने राज्य किया, अम्बरीष आदि ने भी राज्य किया । गोपियों को देखिये, जिनकी चरण धूलि ब्रम्हादिक चाहते हैं, वे पति एवं बच्चे वाली अपढ गवाँर गृहस्थ ही थीं । कबीर, तुकाराम आदि सभी महात्मा गृहस्थ थे ।
विरक्त वेश में भी सब आचार्यों के पृथक - पृथक भेष रहे हैं । कोई गेरुआ, कोई पीला, कोई सफेद आदि । अतएव रंगीन में भी रंग बिरंगे झगडे हैं । उन रंगों से हृदय का निश्चय न करना चाहिये क्योंकि वह तो दो पैसों का ही परिणाम हो सकता है ।

जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज

गुरुदेव कि महिमा



पूजा करो, मगर सदगुरुदेव भगवान् से "सदगुरुदेव भगवान्" को मांगने के लिए ...........
तुम्हारे सारे धर्म तुम्हें मांगना सिखाते हैं। उपवास, पूजा, दर्शन, तीर्थ यात्रा सब तुम इसीलिए करते हो कि संसार मिल जाए यानी पैसा, नौकरी, बेटा, सुख मिल जाए। हमारा मार्ग इससे उलटा है। जो संसार बिगाडऩे को तैयार है, वो यहाँ आए। आप लोग ये सुनकर सोचोगे कि हम कहाँ आ गए। ये तो संसार बिगाडऩे की बात करते हैं, लेकिन आपको पता नहीं है कि संसार बनता भी यहाँ से ही है। यदि आपका अध्यात्म सुधर गया, तो समझो संसार सुधर गया।
मंदिरों पर मेले लगेंगे। कोई लेटकर आएगा, कोई नंगे पैर आएगा। कोई इनसे पूछे कि ऐसा क्यों कर रहे हैं, तो वे संसार पाने की चाह में ही ये सब कर रहे हैं। आप भी उपवास आदि करते हो इसीलिए कि भगवान अन्न-धन देगा। जरा खुद ही सोचिए क्या भगवान चाहेगा कि उसके बच्चे भूखे रहे ? तुम्हे तो उपवास का मतलब भी नहीं पता? कोई मुझे किसी भी प्रामाणिक ग्रंथ में ये लिखा बता दे कि उपवास का मतलब भूखे रहना होता है I जिनके पास अन्न-धन है उन्हें देखो। क्या उनके पास शांति है। वे भी तुम्हें परेशान ही मिलेंगे। फिर तुम अन्न-धन के पीछे क्यों भाग रहे हो। तुम संसार में ऐसे उलझे हो कि पहले बेटे की सेवा, फिर पोते की सेवा। इसी में सारा जीवन गुजर रहा है। तुम अपने लिए कभी कुछ करोगे या नहीं। कई लोग कहते हैं कि अभी उम्र क्या है, जो साधना-ध्यान में जाएं। इसके लिए तो 60-70 की उम्र होना चाहिए। बच्चे अव्वल तो आते नहीं। आएं भी तो तुम यही कहते हो कि अभी से आकर ये क्या करेंगे। अब सोचिए कि जब कुछ भी करने की ताकत नहीं बचेगी, तो ज्ञान लेने की ताकत रह जाएगी। जब करना था, तब नहीं कर पाए, तो बाद में कुछ नहीं कर पाओगे। साधना के बारे में कहते हो कि समय मिला तो कर लेंगे , ऐसे लोगों को आने की जरूरत ही नहीं है। तुम्हें कभी समय नहीं मिलेगा और यूँ देखें तो तुम्हें समय मिला ही हुआ है, मगर तुम संसार में उलझे हो, इसलिए लग रहा है कि समय नहीं है।
तुम जिंदा हो, यही इस बात का सबूत है कि तुम्हारे पास समय है। अभी तुम बेटे के लिए साधना को छोड़ रहे हो। एक दिन जब बेटा मरेगा, तो तुम कहोगे कि इसके कारण मैंने साधना को छोड़ दिया था। कितने सड़े काम के लिए तुमने साधना को छोड़ा, ये बात तुम्हें तब समझ आएगी।
दुनिया में सब लोग गुरुदेव के पास, भगवान के पास पैसे के लिए जा रहे हैं। तुम्हें कभी पैसा नहीं मिलेगा।(तुम्हारे दादा जी ने 5 किलो घी जला दिया ,लक्ष्मी नहीं आयी,तुम्हारे पिता ने 10 किलो घी जला दिया लक्ष्मी नहीं आयीं तुम 50 किलो जला कर देख लेना लक्ष्मी नहीं आएगी( क्या कभी तुम भगवान के पास भगवान के लिए गए ? क्या कभी गुरुदेव के पास गुरुदेव के लिए गए ?
क्या अपने गुरुदेव ,भगवान् को इतना मूर्ख समझ रखा है। तुम दर्शन करने जाते हो कोई मांग लेकर। जैसे तुम जाते हो, वैसे ही चोर भी चोरी से पहले भगवान के पास मांगने जाता है। तुम कहोगे कि भगवान चोर की थोड़ी सुनेंगे, लेकिन तुम भी छोटे-मोटे चोर तो हो। तुम भी तो पैसे के लिए ही भगवान के पास जा रहे हो। तुम भी तो एक नारियल चढ़ाकर बेटा मांग रहे हो। दादा-दादी,नाना-नानी बनने का आशीर्वाद मांग रहे हो, पूजा करना बिलकुल गलत नहीं है नहीं है, लेकिन "ऐसी पूजा को मैं पूजा नहीं मानता जिसमें कुछ मांगा जाता है"। तो तुम्हें खुद अपने जैसा बना सकते है । उनसे कुछ भी मांगना बेईमानी है। तुम इंसान भी नहीं हो पाए, तो भगवान कैसे हो पाओगे। यूं ये आसान है। तुम सच्चे हो जाओ, भगवान हो जाओगे। कुछ लोग कहते हैं कि सच्चाई में क्या मिला? ऐसा कहने वाले भी दरअसल झूठ ही बोलते हैं। राजा हरीशचंद्र का उदाहरण दिया जाता है कि उन्होंने सच्चाई के रास्ते पर चलकर कितना दु:ख भोगा। बताइए कि क्या खुद हरीशचंद्र ने कहा कि उन्हें सच्चाई में दु:ख मिला। यदि वे दु:खी होते तो सच्चाई छोड़कर सुखी हो जाते। बहुत अवसर मिले उन्हें, लेकिन सच्चाई का सुख वे जानते थे। ये तुम्हें दिखाई नहीं देता। तुम गलत करते हो और सोचते हो कि कोई नहीं देख रहा। एक बेटा भी गलती करे, तो बाप उसकी सजा देता है, फिर तुम्हारे गुरुदेव तो ........... है, वो सजा नहीं देंगे ?

क्रमशः .............


गुरूदेव कि महिमा

................ तुम अपने गुरुदेव की ,भगवान् की खूब पूजा करो, लेकिन मांगो कुछ मत। उसे जो देना होगा, देगा। मुझे कुछ नहीं लेना है, ये भाव हमेशा रखो। आप लायक बन जाओ, तुम्हारे गुरु तुम्हारे भगवान तुम्हें सब कुछ अपने आप दे देगा। तुम्हारी तलाश सच्ची होना चाहिए। कहा भी है कि खोजी होय तुरत मिल जाऊं, एक पल की तलाश में। पल कहते हैं पलक झपकने जितने वक्त को, इतने समय में तुम्हें वो मिल सकता है, लेकिन तलाश सच्ची होना जरूरी है। यहाँ हम सबसे महंगी चीज सबसे सस्ती देते हैं। अपने गुरुदेव से महंगा कुछ हो सकता है क्या, लेकिन यहाँ वो मुफ्त मिलता है। केवल आपको उस लायक बनना पड़ता है। यदि आप हिमालय जाना चाहते हैं, तो आपको वहाँ पहुचाने वाले रास्ते पर हि चलना पडेगा । किसी और दिशा में गए तो कहीं भी पहुँच जाओगे, हिमालय नहीं । इसलिए सद्गुरू - भगवान को पाने के लिए सही रास्ते पर चलना आवश्यक हैं ।
आप अक्सर दु:खी होते है । लेकिन वडे से वडे दु:ख में भी हंसा जा सकता है, नाचा जा सकता है । यदि आप ठान ले कि हर हाल में सुखी रहना है, मन में कोई गन्दगी नहीं रखना हैं तो फिर तुम्हें कोई दु:खी नहीं कर सकता । सुख, दु:ख हम ने ही बनाया है । तुम सुख में भी दु:ख ढूंढ लेते हो तो , फिर कैसे सुखी हो सकते हो ? यदि तुम्हें दु:ख में भी सुख देखना आ गया तो कैसे दु:ख पाओगे ? तुम गुरुदेव कि मर्जी में रहना सिख लो, फिर तुम हमेशा के लिए सुखी हो जाओगे। अभी तुम अपनी  मर्जी चलाते हो, इसीलिए दु:खी रहते हो । वो जैसा रखे, वैसा रहो । उस से कुछ भी मत मांगो ।

जय जय श्री राधे ।

जय जय श्री राधे ।