कबहुँ सखि हमहुँ देखिहौं श्याम |

कबहुँ सखि हमहुँ देखिहौं श्याम |
बहुत दिनन ते गुनन सुनति हौं, कोटि काम अभिराम |
अंग अंग जनु चुवत सुधारस, अस कह सब ब्रजबाम |
इक तो सुनति चपल चितवनि ते, बिके सबै बिनु दाम |
दूजो सुनति मधुर मृदु मुसुकनि, होत सबै बेकाम |
कह ‘कृपालु’ इक और मुरलिधुनि, घायल कर अविराम   ||



भावार्थ -  अरी सखी ! श्यामसुन्दर को कभी मैं भी देखूँगी? कभी ऐसा सौभाग्य मेरा भी होगा ? बहुत दिनों से उनके गुणों को सुन रही हूँ कि वे करोड़ों कामदेवों से अधिक सुन्दर हैं | उनके अंग-अंग से मानो अमृत रस चूता रहता है, ऐसा समस्त ब्रजांगनाएँ कहती हैं | एक तो सुनती हूँ कि उनके चंचल नेत्र की चितवनि में विलक्षण जादू है जिससे सब बिना दाम के बिक जाते हैं | दूसरे यह भी सुनती हूँ कि उनकी मधुर मुस्कान से सब विह्वल हो जाते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अरी सखी ! एक और भी बात है, उनकी मुरली की धुनि से तो कोई भी नहीं बच पाता, वह निरन्तर सबको घायल करती रहती है |


( प्रेम रस मदिरा     दैन्य   -   माधुरी )
    जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित  -  राधा गोविन्द समिति

धरो मन ! गौर - चरन को ध्यान |

धरो मन ! गौर - चरन को ध्यान |
जिन चरनन को राखत निज उर, सुंदर श्याम सुजान |
भटकत कोटि कल्प तोहिँ बीते, खायो सिर पदत्रान |
चार प्रकार लक्ष चौरासी, द्वार फिर् यो जनु स्वान |
चरण - शरण कबहूँ नहिं आयो, अबहूँ करत न कान |
येहि दरबार दीन को आदर, पतितन को सनमान |
पुनि ‘कृपालु’ तुम कत चूकत मन, पंडित बनत महान ||


भावार्थ - अरे मन ! कीर्ति - कुँवरी राधिका जी के चरणों का निरन्तर ध्यान किया कर, जिन चरणों का ध्यान सच्चिदानंद श्रीकृष्ण भी करते हैं | अरे मन ! तुझे भटकते हुए अनन्त जन्म बीत चुके, एवं तूने उन विषयों के अनन्त बार जूते खाये | स्वेदज, अंडज, उद् भिज, जरायुज इन चार प्रकार की उत्पत्ति के द्वारा कुत्ते की तरह तूने चौरासी लाख योनियों में चक्कर लगाया है, किन्तु किशोरी जी के चरण - कमलों की शरण कभी नहीं ली | आज भी मेरी बात नहीं मान रहा है | अरे मन ! किशोरी जी के दरबार में पतितों एवं दीनों को ही सम्मान मिलता है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अरे मन ! तुम बहुत बड़े पंडित बनते हो फिर ऐसा अवसर क्यों खो रहे हो, अर्थात् किशोरी जी के चरणों की शरण क्यों नहीं लेते ?
( प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त - माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचित
सुखमय, मंगलमय व् भक्तिमय रविवार की शुभकामनाओं के साथ
🙏🙏 राधे राधे 🙏🙏

हम चाकर उन ब्रज नारिनि के |



हम चाकर उन ब्रज नारिनि के |
भूखे रहत ब्रह्म खायेहु पै, जिन ब्रजनारिन गारिनि के |
थेइ थेइ करि नित नाचत गावत, जिनकी तारन तारिनि के |
घर घर फिरत सुनन कटु वचनन, जिनकी चोरिनि जारिनि के |
याचत चरण रेणु ब्रह्मादिक, जिन ब्रज की पनिहारिनि के |
धनि ‘कृपालु’ ब्रजनारिन जिन नित, विहरति संग विहारिनि के ||

भावार्थ    -    हम इन ब्रजांगनाओं के दास हैं, जिनकी सदा गाली खाने पर भी ब्रह्म श्यामसुन्दर भूखे ही बने रहते हैं | जिनके हाथ की तालियों की ताल पर श्यामसुन्दर थेइ - थेइ करते हुए नाचते हैं | जिनके चोरी जारी के कड़वे वचनों को सुनने के लिए श्यामसुन्दर बरबस उनके घरों में जाते हैं | जिनकी चरणधूलि देवाधिदेव ब्रह्मादिक भी चाहते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि वे ब्रजांगनाएँ धन्य हैं जो स्वामिनी कुंज - विहारिणी के साथ विहार करती हैं  |

( प्रेम रस मदिरा    सिद्धान्त  -  माधुरी )
     जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित  -  राधा गोविन्द समिति

🌼मानव देह का महत्व 🌼

🌼मानव देह का महत्व 🌼

यह मनुष्य का शरीर बार बार नहीं मिलता । दयामय भगवान चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात् दया करके कभी मानव देह प्रदान करते हैं । मानव देह देने के पूर्व ही संसार के वास्तविक स्वरुप का परिचय कराने के लिए गर्भ में उल्टा टांग कर मुख तक बाँध देते हैं । जब गर्भ में बालक के लिए कष्ट असह्य हो जाता है तब उसे ज्ञान देते हैं और वह (जीव) प्रतिज्ञा करता है कि मुझे गर्भ से बाहर निकाल दीजिये, मैं केवल आपका ही भजन करूँगा । जन्म के पश्चात जो श्यामसुंदर को भूल जाता है, उसकी वर्तमान जीवन में भी गर्भस्थ अवस्था के समान ही दयनीय दशा हो जाती है । 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मानव देह देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, इसलिए सावधान हो कर श्यामसुंदर का स्मरण करो ।
                          -----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

मैं तेरा मेरा तेरा गोविंद राधे।
तेरी वस्तु को माना अपनी क्षमा दे।।

हे हरि! मैं आपका ही हूँ। मेरी हर वस्तु आपकी ही है। वस्तुतः मैंने आपकी ही वस्तु को अपना मान लिया था। इसके लिए आप मुझे क्षमा प्रदान करें।

तन मन प्राण तेरा गोविंद राधे।
मैं तो हूँ सदा का भिखारी तोहिं का दे।।

हे प्रभु! मेरा तन,मन, प्राण सब तुम्हारा ही दिया हुआ है। मैं भिखारी हूँ। मैं भला तुम्हें क्या दे सकता हूँ।

माटी का पुतला तू गोविंद राधे।
काल जब चाहे तोहिं माटी बना दे।।

यह मानव शरीर पंचतत्वों -पृथ्वी, जल, अग्नि,वायु और आकाश द्वारा निर्मित है। मृत्यु किसी भी क्षण इस शरीर को नष्ट कर पंचतत्वों में विलीन कर सकती है।

तन यौवन धन गोविंद राधे
चार दिन की है सब चाँदनी बता दे।।

सुन्दर शरीर, युवावस्था एवं धन केवल चार दिन के हैं। इनमें से कोई भी स्थिर रहने वाली वस्तु नहीं है।

तू ही बिनु हेतु दाता गोविंद राधे।
जग कछु लै के कछु दे दान ना दे।।

 हे नाथ! संसार में कोई किसी से कुछ लेकर उसे कुछ देता है। बिना हेतु के दान देने वाले एकमात्र दाता तो तुम ही हो।

तन क्षणभंगुर गोविंद राधे।
तजि दे गुमान मन हारि में लगा दे।।

हे मानव! शरीर नाशवान है। इसका गर्व न कर। अपने मन को तुरन्त श्रीहरि में लगा दे।

नंगे तनु आया था गोविंद राधे।
बिनु तनु जाये  काल तनु भी  छिना दे।।

हे जीव! तू संसार में नग्न शरीर लेकर आया था जाते समय यह शरीर भी तुझसे मृत्यु छीन लेगी।

कोटि यतन करू गोविंद राधे।
तन धन धाम तेरा कोई साथ ना दे।।

हे प्राणी ! तू करोड़ों प्रयास क्यों न कर ले। शरीर, धन या भवन कोई तेरे साथ नहीं जायगा।

हरि की शरण गहु गोविंद राधे।
हाय हाय में काहे जनम गँवा दे।।

श्री कृष्ण की शरणागति ग्रहण कर। सांसारिक कामनाओं के चक्कर में पड़ कर क्यों अपने जीवन को व्यर्थ नष्ट कर रहा है?

गर्भ ते न लाया कछु गोविंद राधे।
संग भी न जाये कछु मन को बता दे।।

जब जीव माँ के गर्भ से संसार में आता है तो खाली हाथ ही आता है। इसी प्रकार जब वह शरीर छोड़कर जाता है तब उसे खाली हाथ ही जाना पड़ता है। थोड़े से बीच के समय के लिए जोड़ा- जोड़ी कर वह अपना भविष्य बिगाड़ लेता है।

मुट्ठी बाँधे आया था तू गोविंद राधे।
हाथ पसारे जाये मन को बता दे।।

अरे जीव ! जब तू जगत में आया था तब तेरी मुट्ठी बंधी हुई थी। उस समय भी तू खाली हाथ ही था। अपनी आयु पूरी होने पर जब तुझे इस मृत्युलोक से वापस जाना होगा तब भी तू खाली हाथ ही जायगा। अपने मन को बार-बार इस सत्य का स्मरण करा ताकि वह इस जगत में आसक्त न हो।

जो आया जाये वह गोविंद राधे।
केहि लगि तू धन धाम सजा दे।।

जो इस संसार में आया है उसे यहाँ से जाना भी होगा फिर धनादि के एकत्र करने में अपने अमूल्य जीवन को क्यों नष्ट कर रहा है? तेरे पूर्व जन्मों के पुण्य-पुञ्जों के परिणाम स्वरुप श्रीहरि ने कृपा करके तुझे सीमित काल के लिए मानव-तन प्रदान किया है इसे तो क्षण-क्षण हरि स्मरण में ही लगाना उचित है-    "दो बातन को भूल मत जो चाहे कल्याण।
         नारायण इक मौत को दूजे श्रीभगवान्।"

तेरे जैसा दाता कौन गोविंद राधे।
मेरे जैसा भिक्षु कौन बानक बना दे।।

हे प्रेम-दानियों में सर्वश्रेष्ठ उदार शिरोमणि युगल किशोर! तुम्हारे जैसा देने वाला नहीं और मेरे जैसा माँगने वाला भी नहीं। मुझे भी अपने किसी प्रेमी से प्रेम की भिक्षा दिलाकर कृतार्थ करो।

पुस्तक-दानमेकं कलौ युगे                                                  रचयिता-जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज