बहुत सुंदर कथा ..🖋जय हनुमान जी



एक साधु महाराज श्री रामायण कथा सुना रहे थे।  लोग  आते  और  आनंद विभोर होकर जाते। साधु महाराज का नियम था रोज कथा शुरू  करने से पहले  "आइए  हनुमंत  जी  बिराजिए" कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे।

एक वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई।
 उन्हें लगा कि महाराज रोज "आइए हनुमंत जी बिराजिए" कहते हैं तो क्या हनुमान जी सचमुच आते होंगे!

अत: वकील साहब ने महात्मा जी से पूछ ही डाला- महाराज जी, आप रामायण की कथा बहुत अच्छी कहते हैं।
 हमें बड़ा रस आता है परंतु आप जो गद्दी प्रतिदिन हनुमान जी को देते हैं उसपर क्या हनुमान जी सचमुच बिराजते हैं?

साधु महाराज ने कहा… हाँ यह मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि रामकथा हो रही हो तो हनुमान जी अवश्य पधारते हैं।

वकील ने कहा… महाराज ऐसे बात नहीं बनेगी।
हनुमान जी यहां आते हैं इसका कोई सबूत दीजिए ।
आपको साबित करके दिखाना चाहिए कि हनुमान जी आपकी कथा सुनने आते हैं।

महाराज जी ने बहुत समझाया कि भैया आस्था को किसी सबूत की कसौटी पर नहीं कसना चाहिए यह तो भक्त और भगवान के बीच का प्रेमरस है, व्यक्तिगत श्रद्घा का विषय है । आप कहो तो मैं प्रवचन करना बंद कर दूँ या आप कथा में आना छोड़ दो।

लेकिन वकील नहीं माना, वो कहता ही रहा कि आप कई दिनों से दावा करते आ रहे हैं। यह बात और स्थानों पर भी कहते होंगे,इसलिए महाराज आपको तो साबित करना होगा कि हनुमान जी कथा सुनने आते हैं।

इस तरह दोनों के बीच वाद-विवाद होता रहा।
 मौखिक संघर्ष बढ़ता चला गया। हारकर साधु महाराज ने कहा… हनुमान जी हैं या नहीं उसका सबूत कल दिलाऊंगा।
कल कथा शुरू हो तब प्रयोग करूंगा।

जिस गद्दी पर मैं हनुमानजी को विराजित होने को कहता हूं आप उस गद्दी को आज अपने घर ले जाना।
कल अपने साथ उस गद्दी को लेकर आना और फिर मैं कल गद्दी यहाँ रखूंगा।
मैं कथा से पहले हनुमानजी को बुलाऊंगा, फिर आप गद्दी ऊँची उठाना।
यदि आपने गद्दी ऊँची कर दी तो समझना कि हनुमान जी नहीं हैं। वकील इस कसौटी के लिए तैयार हो गया।

महाराज ने कहा… हम दोनों में से जो पराजित होगा वह क्या करेगा, इसका निर्णय भी कर लें ?.... यह तो सत्य की परीक्षा है।

 वकील ने कहा- मैं गद्दी ऊँची न कर सका तो वकालत छोड़कर आपसे दीक्षा ले लूंगा।
 आप पराजित हो गए तो क्या करोगे?
साधु ने कहा… मैं कथावाचन छोड़कर आपके ऑफिस का चपरासी बन जाऊंगा।

अगले दिन कथा पंडाल में भारी भीड़ हुई जो लोग रोजाना कथा सुनने नहीं आते थे,वे भी भक्ति, प्रेम और विश्वास की परीक्षा देखने आए।
काफी भीड़ हो गई।
पंडाल भर गया।
श्रद्घा और विश्वास का प्रश्न जो था।

साधु महाराज और वकील साहब कथा पंडाल में पधारे... गद्दी रखी गई।
महात्मा जी ने सजल नेत्रों से मंगलाचरण किया और फिर बोले "आइए हनुमंत जी बिराजिए" ऐसा बोलते ही साधु महाराज के नेत्र सजल हो उठे ।
 मन ही मन साधु बोले… प्रभु ! आज मेरा प्रश्न नहीं बल्कि रघुकुल रीति की पंरपरा का सवाल है।
 मैं तो एक साधारण जन हूँ।
 मेरी भक्ति और आस्था की लाज रखना।

फिर वकील साहब को निमंत्रण दिया गया आइए गद्दी ऊँची कीजिए।
लोगों की आँखे जम गईं ।
वकील साहब खड़ेे हुए।
उन्होंने गद्दी उठाने के लिए हाथ बढ़ाया पर गद्दी को स्पर्श भी न कर सके !

जो भी कारण रहा, उन्होंने तीन बार हाथ बढ़ाया, किन्तु तीनों बार असफल रहे।

महात्मा जी देख रहे थे, गद्दी को पकड़ना तो दूर वकील साहब गद्दी को छू भी न सके।
 तीनों बार वकील साहब पसीने से तर-बतर हो गए।
 वकील साहब साधु महाराज के चरणों में गिर पड़े और बोले महाराज गद्दी उठाना तो दूर, मुझे नहीं मालूम कि क्यों मेरा हाथ भी गद्दी तक नहीं पहुंच पा रहा है।

अत: मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं।
 कहते है कि श्रद्घा और भक्ति के साथ की गई आराधना में बहुत शक्ति होती है। मानो तो देव नहीं तो पत्थर।

प्रभु की मूर्ति तो पाषाण की ही होती है लेकिन भक्त के भाव से उसमें प्राण प्रतिष्ठा होती है तो प्रभु बिराजते है।

  🙏🙏जय श्री राम🙏🙏

जगद्गुरुत्तम संदेश



*( हमेशा याद रखें यह सिद्धान्त ) :-🙏

*द्वेष करने वाले व्यक्ति के प्रति भी द्वेष न करें | उदासीन रहे |

*आज कोई नास्तिक भी है तो कल उच्च साधक बन सकता है अत: साधक यह न सोचे कि इसका पतन सदा को हो चुका | सूरदास संत उदाहरण हैं |

*गुरु की सेवा करने वाला तो साधक ही है, उसके प्रिय होने के कारण उस से द्वेष करना पाप है |

*सचमुच भी कोई अपराधी हो तो भी मन से भी' उसके भूतपूर्व अपराधों को न सोचे , न बोलें |

*संसार में भगवत्प्राप्ति के पूर्व सभी अपराधी हैं |

*बड़े बड़े साधकों का पतन एवं बड़े-बड़े पापियों का भी उत्थान एक क्षण में हो सकता है |

*सब में श्री कृष्ण का निवास है अत: उनको ही महसूस करें |

*मन को सदा श्री कृष्ण एवं उनके नाम , रुप , गुण , लीला , धाम, तथा उनके स्वजन में ही रखना है |

*अपने शरण्य ( हरि एवं गुरु ) को सदा अपने साथ रक्षक रुप में मानना है |

*परदोष दर्शनादि कुसंगों से बचना है |

*दोष चिन्तन करते हुए शनै-शनै बुद्धि भी दोषयुक्त हो जाती है |

*परदोष दर्शन ही स्वयं के सदोष होने का पक्का प्रमाण है l
*हमारा निन्दक हमारा हितैषी है |

*निन्दनीय के प्रति भी दुर्भावना न होने पाये क्योंकि उसके हृदय में भी तो श्री कृष्ण हैं |

*कम बोलो मीठा बोलो |

*निरर्थक बात न करो | काम की बात करो |

*प्रतिदिन सोते समय सोचो आज हमने कितनी बार ऐसे अपराध किये |

*कम दोस्ती रखो | कम लोगों से मिलो | कम लोगों से बात करो |

*बहुत संभल के संयम के साथ वाणी का प्रयोग करो |

*किसी का अपमान न करो | कड़क न बोलो | किसी को दु:खी न करो |

*सबसे बड़ा पाप कहा गया, दूसरे को दु:खी करना |

*सहनशीलता बढ़ाओ, नम्रता बढ़ाओ , दीनता बढ़ाओ |

*मौत को हर समय याद रखो | पता नहीं अगला क्षण मिले न मिले |

*सारे संसार में सब स्वार्थी हैं, किसी के धोखे में मत आना |

*मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है |

*संसार में कहीं राग भी न हो , द्वेष भी न हो , उसको वैराग्य कहते हैं |

*भक्त के लिय भगवान् का प्राण समर्पित है |

*वह दास नही जो भगवान से कुछ माँगे | वह तो व्यापारी है |

*दास माने क्या ? स्वामी की इच्छानुसार सेवा करे |

*सांसारिक कामना की पूर्ति के लिए कोई भी व्यक्ति झूठ बोलेगा , पाप करेगा , सब कुछ करता है |

*संसार की कामना के स्थान पर भगवान् की कामना बनाना है | बड़ी सीधी सी बात है उसी का नाम भक्ति है |

*संसार का वैभव पागल बना देता है | वो अकिंचन नहीं महसूस करता अपने आपको |

*भगवान् से प्रेम करना है तो संसार की कामना छोड़ना पड़ेगा |

*यदि भगवान् को सर्वान्तर्यामी सर्वज्ञ समझकर यह सब उन्ही पर छोड़ दिया जाय , तो माँगने की बीमारी ही उत्पन्न न होगी |

*जिस दिन किसी जीव को यह दृढ़ विश्वास हो जाएगा कि भगवान् और भगवान् का नाम एक ही है, तो उसी क्षण उसे भगवत्प्राप्ति हो जाएगी |

*भगवत्प्राप्ति केवल भगवत्कृपा से ही संभव है , अन्य कर्म , ज्ञानादि किसी भी साधन से असम्भव है |

*भगवत्कृपा के हेतु अन्त:करण शुद्ध करना होगा |

*यह कार्य वास्तविक गुरु की सहायता से ही होगा |

*सब कुछ देकर भी न सोचो कि मैने कुछ दिया क्योंकि कोई भी प्रदत्त मायिक वस्तु दिव्य सामान का मूल्य नहीं हो सकती |

*संत और भगवान् दया के सिवाय और कुछ कर ही नहीं सकते |

*अपनी बुध्दि को संत की बुध्दि में जोड़ दो | बस पूर्ण शरणागति यही है |

*संसार में न सुख है न दु:ख हैं , हमारी मान्यता से सुख या दु:ख मिलता है |

*संसारी कामना ही दुखों का मूल है , क्योंकि कामना पूर्ति पर लोभ एवं अपूर्ति पर क्रोध बढ़ता है |

*केवल कान फुकवा लेने मात्र से अथवा गुरुजी के पैर दबाने मात्र से , अथवा गुरु जी को संसारिक द्रव्य देने मात्र से अथवा बातें बनाने मात्र से , शरणागति नहीं हो सकती |

*वास्तविक गुरु तत्त्वज्ञानी एवं भगवत्प्रेम प्राप्त होना चाहिए |

*मन से हरि गुरु में अनुराग करना एवं तन से संसार का कर्म करना ही कर्मयोग है |

*भक्ति के अनेक भेद हैं किन्तु श्रवण , कीर्तन , एवं स्मरण तीन ही प्रमुख है |

*सर्व प्रमुख स्मरण भक्ति ही है |

*-- तुम्हारा कृपालु

So beautifully written



A young girl Nandini in Mayapur wrote this:

May I be quarantined in the heart of Sri Sri Radha Madhava for the rest of eternity.

May They have me locked down beneath Their reddish lotus feet for the rest of eternity, keeping me safe from the virus of illusion.

May They increase my immune system by giving me the vitamins of Their service.

“This is an order from the government of my heart to the citizens of my mind, during the lockdown period which will extend till the existence of the soul. “

Let me use the hand wash called sincerity, to cleanse me of the germs of superficiality. (This should be done as many times in the day as possible, for at least 20 seconds, as per the time of Lord Brahma. )

Let me keep great distance from the people called lust, anger, pride and hypocrisy who have arrived from a foreign land full of virus.

Let me at the least keep a two meter distance of anger, from anyone who sneezes and coughs out harsh words against You or Your devotees.

Let me cover my mouth with the tissue of intelligence, whenever I cough or sneeze any complaints about the service of Your Lordships.

Let me always keep in my mouth the antivirus of Your holy names and pastimes

एक बार की बात है.....

एक बार की बात है। एक संत जंगल में कुटिया बना कर रहते थे और भगवान श्री कृष्ण का भजन करते थे। संत को यकीं था कि एक ना एक दिन मेरे भगवान श्री कृष्ण मुझे साक्षात् दर्शन जरूर देंगे।

उसी जंगल में एक शिकारी आया। उस शिकारी ने संत कि कुटिया देखी। वह कुटिया में गया और उसने संत को प्रणाम किया और पूछा कि आप कौन हैं और आप यहाँ क्या कर रहे हैं।

संत ने सोचा यदि मैं इससे कहूंगा कि भगवान श्री कृष्ण के इंतजार में बैठा हूँ। उनका दर्शन मुझे किसी प्रकार से हो जाये। तो शायद इसको ये बात समझ में नहीं आएगी। संत ने दूसरा उपाय सोचा। संत ने किरात से पूछा- भैया! पहले आप बताओ कि आप कौन हो और यहाँ किसलिए आते हो?

उस किरात(शिकारी) ने कहा कि मैं एक शिकारी हूँ और यहाँ शिकार के लिए आया हूँ।

संत ने तुरंत उसी की भाषा में कहा मैं भी एक शिकारी हूँ और अपने शिकार के लिए यहाँ आया हूँ।

शिकार ने पूछा- अच्छा संत जी, आप ये बताइये आपका शिकार दिखता कैसे है? आपके शिकार का नाम क्या है? हो सकता है कि मैं आपकी मदद कर दूँ?

संत ने सोचा इसे कैसे बताऊ, फिर भी संत कहते हैं- मेरे शिकार का नाम है । वो दिखने में बहुत ही सुंदर है। सांवरा सलोना है। उसके सिर पर मोर मुकुट है। हाथों में बंसी है। ऐसा कहकर संत जी रोने लगे।

किरात बोला: बाबा रोते क्यों हो ? मैं आपके शिकार को जब तक ना पकड़ लूँ, तब तक पानी भी नहीं पियूँगा और आपके पास नहीं आऊंगा।

अब वह शिकारी घने जंगल के अंदर गया और जाल बिछा कर एक पेड़ पर बैठ गया। यहाँ पर इंतजार करने लगा। भूखा प्यासा बैठा हुआ है। एक दिन बीता, दूसरा दिन बीता और फिर तीसरा दिन। भूखे प्यासे किरात को नींद भी आने लगी।

बांके बिहारी को उन पर दया आ गई। भगवान उसके भाव पर रीझ गए। भगवान मंद मंद स्वर से बांसुरी बजाते आये और उस जाल में खुद फंस गए।

जैसे ही किरात को फसे हुए शिकार का अनुभव हुआ हुआ तो तुरंत नींद से उठा और उस सांवरे भगवान को देखा।

जैसा संत ने बताया था उनका रूप हूबहू वैसा ही था। वह अब जोर जोर से चिल्लाने लगा, मिल गया, मिल गया, शिकार मिल गया।

शिकारी ने उसे शिकार को जाल समेत कंधे पर बिठा लिया। और शिकारी कहता हुआ जा रहा है आज तीन दिन के बाद मिले हो, खूब भूखा प्यासा रखा। अब तुम्हे मैं छोड़ने वाला नहीं हूँ।

शिकारी धीरे धीरे कुटिया की ओर बढ़ रहा था। जैसे ही संत की कुटिया आई तो शिकारी ने आवाज लगाई- बाबा! बाबा !

संत ने तुरंत दरवाजा खोला। और संत उस किरात के कंधे पर भगवान श्री कृष्ण को जाल में फंसा देख रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण जाल में फसे हुए मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं।

किरात ने कहा: आपका शिकार लाया हुँ। मुश्किल से मिले हैं।

संत के आज होश उड़ गए। संत किरात के चरों में गिर पड़े। संत आज फूट-फूट कर रोने लगे। संत कहते हैं- मैंने आज तक आपको पाने के लिए अनेक प्रयास किये प्रभु लेकिन आज आप मुझे इस किरात के कारण मिले हो।

भगवान बोले: इस शिकारी का प्रेम तुमसे ज्यादा है। इसका भाव तुम्हारे भाव से ज्यादा है। इसका विस्वास तुम्हारे विश्वास से ज्यादा है। इसलिए आज जब तीन दिन बीत गए तो मैं आये बिना नहीं रह पाया। मैं तो अपने भक्तों के अधीन हूँ।

और आपकी भक्ति भी कम नहीं है संत जी। आपके दर्शनों के फल से मैं इसे तीन ही दिन में प्राप्त हो गया। इस तरह से भगवान ने खूब दर्शन दिया और फिर वहां से भगवान चले गए।