💫January 6, 2025: Highlights of soulful morning sadhana🎼

 💫January 6, 2025: Highlights of soulful morning sadhana🎼

🌷✨Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj ki Jai!✨🌷

Jagadguru Aadesh:

Exclusiveness in devotion to your Guru -

It has always been, is, and will always be our nature to seek happiness.

Only Shri Radha Krishna are the embodiment of bliss. Only by attaining them can we get bliss - there is no other path. Also, there are no means, such as devotional practice, yoga, penance, or sacrificial rites, based on which we can attain them - nānyaḥ panthā. They can be attained only by the one with no means, one who is weak—balahīnena


labhyā. Especially in Kaliyug, there can be no possible means to attain them - ehiṃ kalikāla na sādhana dūjā। joga yajña japa tapa vrata pūjā॥.


Then how do we attain them? Just keep these things in mind -

1. They are always seated in our hearts. It is not about sitting and doing sadhana - while walking, eating, drinking, and doing our routine tasks, always realizing that they are seated in our hearts and noting down each of our thoughts.

2. Sit in solitude and do Roopdhyan. First, firmly establish God's divine form in your mind—this requires the most effort. Some people have past sanskars (impressions from previous lives) that help them with Roopdhyan. Some people use an idol or photo for this. But this is not correct. Whether poor or rich, everyone must establish Roopdhyan in their mind. There are two benefits to making the form of God in our mind as compared to using a photo or idol: i) we can adorn them with the most expensive gems, such as Kohinoor, as per our wish, and ii) we can switch from a younger to an older form of Shri Krishna or Radharani instantly according to the kirtan.

3. Ananyata: Only worship Radha Krishna and only follow the philosophy of your own Guru. They are pure and will purify our minds. Our duty is to cleanse our minds. Our Guru will take care of the rest. Don't go to different babas because 99% of them are ignorant these days and show the wrong path. There are subtle differences in the philosophies of even God-realized saints, which will confuse you. In some, there is a vast difference, such as in the philosophy of Shankaracharya.

4. Nishkaamata: Even if you are dying, do not ask; think; if it is your wish that I leave this body, so be it! I cannot think against his wishes.


When you achieve the above four, then

5. Develop a deep longing to meet them - focus on this alone, leave the rest. The more we yearn to meet them, the closer we will get to them. And when we reach the state where we cannot live without meeting them, we will attain our goal.


Throw away all other knowledge - they are only meant for Gurus. You are a sadhak and must attain your goal by doing sadhana.


Don't read various kinds of books, don't listen to the lectures of different saints, and don't think of unnecessary things. Do this soon, as we don't know when we may lose this human body. Don't think I am young right now. Similar to how dacoits loot things and run on getting an opportunity, you must make maximum effort to practice devotion with this human body, which is extremely rare. If we remain careless and don't make a spiritual earning, we won't get this human body again. kabahuṃka kari karunā nara dehi - we get this human body after eons. Don't assume that if I die, I will become a human being again. Even the devatas of heaven yearn for this body. You don't get it just like that. If you make a spiritual earning, God will give this body again. If our earnings remain zero, we will have to wander around in the 84 lakh forms.



Prepare yourself, keeping all these things in mind. You have been very careless. Become alert now and focus on making your spiritual earnings.

Kirtan:

- Deena ki sun lo deenaanath (Prem Ras Madira, Dainya Madhuri, pad no. 48)

- Hare Ram Sankirtan + Ramayan chaupai

hā raghunaṃdana prāṇa pirīte। tumha binu jiyata bahuta dina bīte॥

- Radhey Govind Govind bol (Braj Ras Madhuri, part 1, page no. 215, sankirtan no. 117)

जनवरी 6, 2025: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼

 जनवरी 6, 2025: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼

🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷

जगद्गुरु आदेश:

गुरु में अनन्यता -

आनंद पाने का हमारा स्वभाव था, है, रहेगा।

केवल राधा कृष्ण ही आनन्द रूप हैं - उनको ही पाकर आनंद पाया जा सकता है। उनको पाने के लिए और कोई मार्ग नहीं है - नान्यः पन्था। और कोई भी साधना (कर्म, ज्ञान, योग आदि) ऐसी नहीं है जिसके बल पर हम उनको पा सकें। बलहीनेन लभ्या - वो साधनहीन, बलहीन को मिलते हैं। कलियुग में तो कोई साधन बन ही नहीं सकता - एहिं कलिकाल न साधन दूजा। जोग यज्ञ जप तप व्रत पूजा॥







फिर कैसे मिलेंगे वो? बस तीन-चार बातों का ध्यान रखिये -

1. वे सदा हमारे हृदय में रहते हैं। बैठकर साधना करने वाली बात नहीं - चलते-फिरते खाते-पीते, कहीं भी रहते, यह महसूस करो वो हमारे हृदय में हैं। हम अकेले नहीं हैं। हमारे एक-एक संकल्प को नोट करते हैं - यह 'सदा' मानो।

2. एकांत में बैठकर रूपध्यान की साधना करें। सब से पहले मन में रूपध्यान जमाओ - इसमें सबसे बड़ी मेहनत है। रूपध्यान के लिए कुछ लोगों का पूर्व जन्मों का संस्कार होता है। कुछ लोग मूर्ति या फ़ोटो से ध्यान पक्का करते हैं। लेकिन ये सब ठीक नहीं हैं। साधारण लोग हों या बड़े लोग हों, सब को मन से रूपध्यान बनाना चाहिए। मन से रूपध्यान बनाने में दो लाभ हैं - i) हम अपनी इच्छानुसार कोई भी महँगी से महँगी चीज़ से उनका श्रृंगार कर सकते हैं (जैसे कोहिनूर), और ii) कीर्तन एवं पद के अनुसार छोटे या बड़े श्रीकृष्ण या राधारानी का रूप तुरंत बदल सकते हैं।

3. अनन्यता - केवल राधा कृष्ण की ही उपासना करें, केवल अपने गुरु के सिद्धांत का पालन करें। ये शुद्ध हैं, इनसे मन शुद्ध होगा। मन शुद्ध करना ही हमारी ड्यूटी है। बाकी सब काम गुरु करेंगे। जगह जगह बाबाओं के पास न जाएँ, क्योंकि 99% लोग अज्ञानी हैं और गलत मार्ग बताते हैं। सिद्ध महापुरुषों के यहाँ भी थोड़ा थोड़ा अंतर है, और कुछ के यहाँ तो बहुत बड़ा अंतर है (जैसे शंकराचार्य के सिद्धांत)।

4. निष्कामता - प्राण निकल रहे हों तो भी माँगना नहीं है। यह सोचो कि अगर उनकी इच्छा है कि मैं ये शरीर छोड़ दूँ, उनकी इच्छा के विरुद्ध सोचना गलत है।


जब ये चार हो जाएँ, तब -

5. उनके मिलन की व्याकुलता - बस इस एक चीज़ पर ध्यान दो, बाकी सब छोड़ दो। ये जितनी बढ़ती जाएगी उतना उनके समीप पहुँचते जाओगे। जब उनके दर्शन के बिना रहा न जायेगा तो सब कुछ बन जायेगा।


बाकी सारा ज्ञान फ़ेंक दो - वो गुरुओं के लिए आवश्यक है। आप साधक हैं आपको साधना करके अपना काम बनाना है।


अनेक प्रकार की किताबें न पढ़ा करो, न अनेक बाबाओं के प्रवचन सुना करो, न ही मन से इधर उधर की बातें सोचा करो। जल्दी करो, पता नहीं कब ये मानव देह छिन जाये। ये मत सोचो कि अभी तो हम जवान हैं। जैसे कोई लूट होती है तो गुंडे जल्दी जल्दी सामान लूटकर भागते हैं - ऐसे करना है हमको इस मानव देह को पाकर - अगर लापरवाही किया और कमाया नहीं तो यह मानव देह बार बार नहीं मिलेगा। कबहुँक करि करुना नर देहि - मानव देह कल्पों के बाद मिलता है । ये मत सोचिये कि मरने पर फिर से मनुष्य बन जायेंगे। इस शरीर को तो स्वर्ग के देवता चाहते हैं। ऐसे ही नहीं मिल जाता है। कुछ कमा लो तो भगवान् दे देंगे। ज़ीरो रहोगे तो 84 लाख में घूमना होगा।



इन सब बातों को मस्तिष्क में रखकर तैयारी कर लो। बहुत लापरवाही कर चुके। अब संभल जाओ।

कीर्तन:

- दीन की सुन लो दीनानाथ (प्रेम रस मदिरा, दैन्य माधुरी, पद सं. 48)

- हरे राम संकीर्तन + रामायण चौपाई

हा रघुनंदन प्राण पिरीते। तुम्ह बिनु जियत बहुत दिन बीते॥

- राधे गोविन्द गोविन्द बोल (ब्रज रस माधुरी, भाग 1, पृष्ठ सं. 215, संकीर्तन सं. 117)

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*भक्ति दिवस साधना शिविर - पहला सत्र*

 *भक्ति दिवस साधना शिविर - पहला सत्र*

💫जनवरी 1, 2025: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼

🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷

*जगद्गुरु आदेश:*

उधार करना बंद करो -

संसार में दो चीज़ें बहुत दुर्लभ हैं: 1. मानव देह। स्वर्ग के देवता भी मनुष्य शरीर पाने के लिए तरसते हैं। इसी में कर्म करने का अधिकार है। इसी शरीर में भगवत्प्राप्ति हो सकती है। करोड़ों कल्प और योनियों में भटकने के बाद कभी भगवान मानव देह देते हैं । 2. वास्तविक गुरु जो शास्त्रों वेदों का सार समझा दें।

और भगवान् को पाना सबसे सरल है, क्योंकि वे अंदर ही बैठे हैं।

फिर भी अगर बिना भगवत्प्राप्ति किए मर गए, तो इसके दो कारण हैं:

1. हम लोग अपने अंदर और सब में भगवान को नहीं मानते। वे सबके अंदर बैठे हैं और हमारे विचार नोट करते हैं।

2. भगवान की (तन, मन, धन से) भक्ति करने में उधार कर देते हैं। रावण ने लक्ष्मण से कहा - अच्छा काम तुरंत करना, और गलत काम को उधार कर देना। इससे ये होगा कि मनुष्य की प्रवृत्ति बदलती रहती है - तो क्या पता कल वो खराब वाला विचार न आये और हम पाप करने से बच जाएँ। भगवान् की भक्ति में उधार मत करो। जब पेट के लिए 6-8 घंटे लगाते हो, तो आत्मा के लिये कम से कम 2-4 घंटे तो दो! कुछ काम नहीं है तो अंड बंड सोचते रहते हैं - अरे भगवान् को ही सोच लो जिससे मन शुद्ध हो जायेगा। लापरवाही मत करो।



मानव देह क्षणभंगुर है। अगला क्षण मिले न मिले। अगर पाप करते-करते ये देह छूट गया तो चौरासी लाख योनियों में भटकना होगा - इसको कोई नहीं रोक सकता। इसलिए भगवान् की कृपा को रियलाइज़ करके, सब में भगवान् को मानो और भक्ति में उधार नहीं करो।

*कीर्तन:*

- भुक्ति ना दे मुक्ति ना दे बैकुण्ठ ना दे (ब्रज रस माधुरी, भाग 3, पृष्ठ सं. 190, संकीर्तन सं. 114)

- जयति जय जय सद्गुरु महाराज (प्रेम रस मदिरा, सद्गुरु माधुरी, पद सं. 3)

- हरि हरि बोल बोल हरि बोल

गौर हरि बोल कृपालु हरि बोल

गौर हरि बोल, चैतन्य हरि बोल

हरि हरि बोल बोल हरि बोल


हरि गुरु भजु नित गोविंद राधे।

भाव निष्काम अनन्य बना दे॥

भुक्ति ना दे मुक्ति ना दे बैकुण्ठ ना दे,

क्षण क्षण हरि गुरु स्मरण करा दे॥

भुक्ति ना दे मुक्ति ना दे बैकुण्ठ ना दे,

सदा सर्वत्र रूपध्यान करा दे॥

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*अक्षय नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ!* 👣🪷💖✨

 

*शरद पूर्णिमा साधना शिविर - पहला सत्र*

💫नवम्बर 10, 2024: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼

🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷

*जगद्गुरु आदेश:*

साधना शिविर में लापरवाही क्यों? -

ये श्री महाराज जी का विनम्र निवेदन है - साधना के समय अनुशासन का पालन कीजिये। जब साधना करने के लिए शिविर में घर छोड़कर आये हैं, तो कोई किसी से बात न करें, किसी की बात न सुनें। केवल भगवान् के नाम गुण लीलादि का संकीर्तन करें और अगर थक जाएँ तो सुनें, रूपध्यान करें। दृढ़ प्रतिज्ञा कर लें कि हम हॉल में ही रहेंगे ताकि बाहर जाकर कुछ सुनना या बोलना न पड़े। कार्यकर्ताओं को छोड़कर कोई हॉल से बाहर न जाएँ। उनको भी अगर कुछ बोलना हो तो इशारों में या लिखकर बता दें। मौन व्रत का पालन करें।



भगवान् के धाम में आकर अपने टीचर की बात नहीं मानी तो राधारानी दुःखी होंगी। इससे श्री महराज जी को दुःख होता है। गुरु के अनुयायी होने का मतलब 100% आज्ञा पालन होता है। अनंत जन्म हमने बर्बाद कर दिये, अब थोड़े समय के लिए राधारानी के धाम पर आये हैं तो इसका उपयोग करना चाहिए। ज़बान और कान पर कण्ट्रोल करना चाहिए।


द्वौ निषेद्य यन् मन्त्रयेते तद् राजा वेद (ऋग्वेद)

जब दो आदमी प्राइवेट में बात करते हैं और ये सोच रहे होते हैं की तीसरा कोई सुन नहीं रहा, तो ठाकुर जी हसते हैं कि मैं तेरे अंदर बैठकर सुन रहा हूँ, तू धोखे में है।


हमें समझना चाहिए कि गुरु और भगवान् हर समय हमारे आइडियाज़ और कर्म को नोट कर रहे हैं।


साधना क्लास में समय पर आना चाहिए। संसार में तो हम बड़ी सावधानी से रहते हैं। संसार में सर्वत्र हमारा मन वश में रहता है। हर जगह हम टाइम से पहले पहुँचते हैं, अनुशासन में रहते हैं, नियम का पालन करते हैं चाहे ट्रेन पकड़ना हो या बस या जहाज़। बल्कि वहाँ तो हम आधा घंटा पहले पहुँच जाते हैं इस डर से कि जहाज़ छूट न जाये, या ऑफिस में ससपेंड ने हो जाएँ। तो भगवान् के एरिया में आए तो ऐसे क्यों सोचते हो कि - 'मेरा मन कर रहा है...।' कम से कम ऐसे कर्म तो करें जिससे अगले जन्म में मानव देह तो मिले।


हमें ये अहंकार हो जाता है कि हम सब कुछ जानते हैं - ये ज्ञानाभिमान कहलाता है - जब गुरु आदेश और वेद शास्त्र का पालन नहीं कर रहे हैं तो हमें क्या तत्त्वज्ञान है? और अगर सब जानकर आज्ञा पालन नहीं करेंगे तो ये और बड़ा अपराध है। संसार में रहकर पाप करने और धाम में आकर पाप करने के फल में बहुत बड़ा अंतर है - इसको नामापराध कहते हैं । भगवान् के निमित्त जीवन में कुछ घंटे हम देते हैं, उसमें भी हम लापरवाही करते हैं। तत्त्व ज्ञान को बार-बार सुनो, बार-बार मनन करो (श्रोतव्य:, मंतव्य:, आवृत्तिरस्कृत् उपदेशात्) तब डिसीज़न पक्का होगा, तब पालन होगा। सिद्धांत बलिये चित्त न कर आलस।


गुरु और भगवान् की कृपा पाने के लिए कुछ करना पड़ता है। शरणागति का अर्थ मनमानी करना या चोरी-चोरी बात करना नहीं है। अगर हमें वही लाभ चाहिए जो शरणागत जीवों को मिलता है, तो शास्त्र वेद और गुरु के आदेशानुसार चलना चाहिए। साधना करने आये हैं तो करके दिखाओ। इस दुष्ट मन की एक न सुनो। ज़बान को बाँध लो। कान में रुई लगाकर चलो। ज़िद्द कर लो कि हम किसी की नहीं सुनेंगे। साधना के समय महाराज जी या भगवान् की भी बातें न करें। जब अजामिल सरीका महापापात्मा भगवत्प्राप्ति कर सकता है, तो क्या हम बिना बोले नहीं रह सकते? भगवान्नाम न ले सकें तो कम से कम भगवान् का चिंतन तो करें।

*कीर्तन:*

- मन करु सुमिरन राधे रानी के चरण (ब्रज रस माधुरी, भाग 1, पृष्ठ सं. 125, संकीर्तन सं. 58)

- मेरी राधे मेरी राधे मेरी राधे मेरी राधे (ब्रज रस माधुरी, भाग 3, पृष्ठ सं. 164, पद सं. 97)

- रहो रे मन गौर चरन लव लाई (प्रेम रस मदिरा, सिद्धान्त माधुरी, पद सं. 91)

- पाहि मां श्यामा श्याम (युगल माधुरी, पृष्ठ सं. 139, पद सं. 43)

- हरे राम संकीर्तन

*Happy Akshaya Navami!* 👣🪷💖✨

*Sharad Poornima Sadhana Shivir - First Session*

💫November 10, 2024: Highlights of soulful morning sadhana🎼

🌷✨Jagadguru Shri Kripalu Ji Maharaj ki Jai!✨🌷

*Jagadguru Aadesh:*

Carelessness in Sadhana Shivir -

This is a humble request from Shri Maharaj Ji - please follow discipline during sadhana. Having left your homes to attend Sadhana Shivir for devotional practice, you must not engage in conversation or listen to others. Dedicate yourself solely to singing God's names, qualities, and pastimes. If you get tired, then listen to kirtan and do Roopdhyan. Make a firm resolution to remain within the sadhana hall to avoid hearing or talking to others outside. Except for the volunteers, no one should leave the hall. If communication is absolutely necessary, use gestures or written notes. Complete silence must be observed during sadhana shivir.


Not following your teacher's instructions after coming to God's abode brings sadness to Radharani, which deeply pains Shri Maharaj Ji. Being a guru's disciple means complete obedience. After wasting countless lifetimes, now that you have reached Radharani's abode for this brief period, utilize it fully by controlling your tongue and ears.


dvau niṣedya yan mantrayete tad rājā veda (Rigveda)

When two people converse privately, thinking they are unheard, Thakur Ji smiles and says, "I am present within, listening to you. You are deceived."

Remember that the Guru and God are always aware of our thoughts and actions.


Come on time for the sadhana class. You exercise great care in worldly matters - arriving early for trains, buses, flights, and work commitments to avoid missing them or risking your employment. Why, then, do you follow your whims when in Dhaam? At a minimum, perform actions that ensure a human birth in your next life.


Becoming proud thinking that we know everything is called 'gyanabhimaan' - What philosophical knowledge do you possess if you don't follow these teachings? Moreover, possessing knowledge but failing to apply it is an even greater offense. The consequences of sins committed in dhaam are more severe than those in the material world - this constitutes nāmāparādh. You dedicate only a few hours to God, yet remain negligent even in that time. Repeatedly listen to philosophical knowledge and repeatedly contemplate on it (śrotavya:, maṃtavya:, āvṛttiraskṛt upadeśāt). Only then can you form a firm resolve and follow through. siddhāṃta baliye citta na kara ālasa।


Attaining the blessings of Guru and God requires effort. Surrender does not mean following your mind's desires or conversing secretly. If you wish to attain the same benefit surrendered souls receive, follow the scriptures, Vedas, and your Guru's instructions. When you have come to do sadhana, focus solely on that. Don't listen to this evil mind. Tie your tongue, and put cotton in the ears. Be stubborn that you will not listen to anyone. Do not talk about Maharaj Ji or even God during sadhana.


If a great sinner like Ajamil could attain God, why can't you remain silent? If you cannot speak out God's name, at least maintain a loving remembrance of God.

*Kirtan:*

- Mana karu sumiran Radhey Rani ke charan (Braj Ras Madhuri, part 1, page no. 125, sankirtan no. 58)

- Meri Radhey meri Radhey meri Radhey meri Radhey (Braj Ras Madhuri, part 3, page no. 164, pad no. 97)

- Raho re man Gaur charan lava laai (Prem Ras Madira, Siddhant Madhuri, pad no. 91)

- Paahi maam Shyama Shyam (Yugal Madhuri, page no. 139, kirtan no. 43)

- Hare Ram Sankirtan


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