"कर्मसन्यास"



कर्मसन्यास उसे कहते हैं जिसमें ईश्वर - भक्ति तो कर्मयोगी की भाँति ही हो किन्तु वेदादि - प्रतिपादित कर्म न हो । ऐसा कर्मसंन्यासी भक्तियोग के फल के अनुसार ईश्वर - प्राप्ति का लक्ष्य पूरा कर लेगा और चूँकि कर्म करेगा ही नहीं, अतएव उसके फल भोगने का अथवा न भोगने का प्रश्न ही नहीं उठता ।
इस प्रकार कर्मयोगी की भाँति यह कर्मसंन्यासी भी शास्त्रों, वेदों एवं आप्त महापुरुषों द्धारा वन्दनीय है ।

जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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