हरिगुरु प्रेम


जो व्यक्ति हरिगुरु प्रेम से वास्तविक रुप से भरता जाता है वह संसार मे भी व्यवहारिक होता जाता है शालिनता आती जाती है उसका व्यवहार निश्चल , निश्कपट होता जाता है , आन्तरिक  परिवर्तन , शुध्दता उसके व्यवहार के आईने मे साफ गोचर होता है , वह हर किसी को एक ही भाव से देखता है कि उसमे हमारे प्रेमास्पद बैठे हैं, हमारा व्यवहार ही हमारे सोच और प्रगति का आइना होता हैं , छल , कपट मलिनता दुर होती जाती है , जैसे जैसे अंत:करण शुध्द होता जाता है  अहंकार , क्रोध, राग, द्वेश , ईर्श्या घृणा आदी समाप्त होती जाती है, अगर यह नही हो रहा है तो समझो की हम अभी कक्षा एक का भी विध्यार्थी नही है , चाहे हम गुरु के कितने पास ही क्युँ न हो शरीर से  , हम पास होकर भी प्यासे है खाली हैं , चिराग तले अँधेरे की तरह , हरिगुरु से प्रेम का नाटक मात्र किय जा रहे हैं पर उनके सिध्दातं और उनके प्रेम से कोसो दुर हैं  और कोई बहुत दुर है पर उसका कल्याण हो रहा है क्युकि वो वास्तविक रुप से हरिगुरु का परमचरणानुरागी है |

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