राधे राधे..
'ब्रजभाव माधुर्य'
खंड : श्रीराधारानी/गोपीजन माधुर्य
टॉपिक : प्रेम की रीति (गोपनीयता)
प्रेम ढँका हुआ होने पर बढ़ता है और प्रेम खुला हुआ होने पर लोगों की उस पर नजर लगती है. इसीलिए प्रेम के संबंध में यह बात कही गई :
प्रेमाद्वयो रसिकयोरपि दीप एव हृद्वेश्म भासयति निश्चल एष भांति ।
द्वारादयं वदनुतस्तु बहिष्कृतश्चेन् निर्वाति शान्तिमथवा लघुतामुपैति ।।
एक बार भगवान् गोपदेवी बनकर के, साँवरी सखी बनकर के राधारानी के पास गये और जाकर के बताया कि मैं ब्रज में बहुत दिन से आई हूँ स्वर्ग की देवी हूँ. लेकिन मैं दुःखी होकर तुम्हारे पास आई हूँ, तुम हमें उस दुःख से बचाओ. राधारानी ने पूछा - तुमको क्या दुःख है? तो बोली कि तुम विश्वास नहीं करोगी हमारी बात पर, तो कैसे बतायें? राधा जी बोलीं - तुम कहो तो सही. बोलीं कि मैं जब से यहाँ आई हूँ, एक नंदनंदन श्यामसुन्दर है नंद बाबा का छोरा,
देखो री यह नन्द का छोरा बरछी मारे जाता है,
बरछी सी, तिरछी चितवन से पैनी छुरी चलाता है..
वह हमारे पीछे लगा रहता है. हमको न सोने दे, न बैठने दे, न कहीं जाने दे, न आने दे, वह हमको बहुत सताता है, हमारे साथ बड़ा अन्याय करता है. राधारानी ने कहा - सखी ! तू झूठ बोलती है, हमारा नंदनंदन, श्यामसुन्दर, हमारा प्राण प्यारा तो हमको छोड़कर दूसरे की ओर देखता ही नहीं है. वह बोली कि नहीं; एक दिन तो मैं धोखे में आ गई सखी ! असल में वह दस गाँव में किसी भी गोपी को शान्ति से नहीं रहने देता है, सबको परेशान करता है. अब तो प्रेम की चर्चा छिड़ गई.
प्रेम की जब चर्चा चली, तब राधारानी ने उसको बताया कि प्रेम है दीपक की लौ. और वह हृदय के मंदिर में सर्वदा प्रज्जवलित रहता है और प्रेमी और प्रियतम दोनों के हृदय को प्रकाशित करता रहता है, लेकिन जब वह मुँह (जुबान) के दरवाजे से बाहर निकलता है, तो लड़खड़ा जाता है, या तो बाहर की हवा लगती है, और बुझ जाता है. इसलिए सखी प्रेम कोई ऐसी चीज नहीं है कि गाँव में इसको बताते फिरें कि हम बड़े प्रेमी, हम बड़े प्रेमी. यह प्रेम ढिंढोरा पीटने की वस्तु नहीं है; गोपी नाम ही इसलिये है कि गोपी अपने प्रेम को गुप्त रखने में समर्थ है, गोपन (छिपाने) करने में समर्थ है...
(एक संत के व्याख्यान से उद्धृत; साधना में लाभ हेतु साभार)
* ब्रजभाव माधुर्य
* श्री कृपालु भक्तिधारा प्रचार समिति
'ब्रजभाव माधुर्य'
खंड : श्रीराधारानी/गोपीजन माधुर्य
टॉपिक : प्रेम की रीति (गोपनीयता)
प्रेम ढँका हुआ होने पर बढ़ता है और प्रेम खुला हुआ होने पर लोगों की उस पर नजर लगती है. इसीलिए प्रेम के संबंध में यह बात कही गई :
प्रेमाद्वयो रसिकयोरपि दीप एव हृद्वेश्म भासयति निश्चल एष भांति ।
द्वारादयं वदनुतस्तु बहिष्कृतश्चेन् निर्वाति शान्तिमथवा लघुतामुपैति ।।
एक बार भगवान् गोपदेवी बनकर के, साँवरी सखी बनकर के राधारानी के पास गये और जाकर के बताया कि मैं ब्रज में बहुत दिन से आई हूँ स्वर्ग की देवी हूँ. लेकिन मैं दुःखी होकर तुम्हारे पास आई हूँ, तुम हमें उस दुःख से बचाओ. राधारानी ने पूछा - तुमको क्या दुःख है? तो बोली कि तुम विश्वास नहीं करोगी हमारी बात पर, तो कैसे बतायें? राधा जी बोलीं - तुम कहो तो सही. बोलीं कि मैं जब से यहाँ आई हूँ, एक नंदनंदन श्यामसुन्दर है नंद बाबा का छोरा,
देखो री यह नन्द का छोरा बरछी मारे जाता है,
बरछी सी, तिरछी चितवन से पैनी छुरी चलाता है..
वह हमारे पीछे लगा रहता है. हमको न सोने दे, न बैठने दे, न कहीं जाने दे, न आने दे, वह हमको बहुत सताता है, हमारे साथ बड़ा अन्याय करता है. राधारानी ने कहा - सखी ! तू झूठ बोलती है, हमारा नंदनंदन, श्यामसुन्दर, हमारा प्राण प्यारा तो हमको छोड़कर दूसरे की ओर देखता ही नहीं है. वह बोली कि नहीं; एक दिन तो मैं धोखे में आ गई सखी ! असल में वह दस गाँव में किसी भी गोपी को शान्ति से नहीं रहने देता है, सबको परेशान करता है. अब तो प्रेम की चर्चा छिड़ गई.
प्रेम की जब चर्चा चली, तब राधारानी ने उसको बताया कि प्रेम है दीपक की लौ. और वह हृदय के मंदिर में सर्वदा प्रज्जवलित रहता है और प्रेमी और प्रियतम दोनों के हृदय को प्रकाशित करता रहता है, लेकिन जब वह मुँह (जुबान) के दरवाजे से बाहर निकलता है, तो लड़खड़ा जाता है, या तो बाहर की हवा लगती है, और बुझ जाता है. इसलिए सखी प्रेम कोई ऐसी चीज नहीं है कि गाँव में इसको बताते फिरें कि हम बड़े प्रेमी, हम बड़े प्रेमी. यह प्रेम ढिंढोरा पीटने की वस्तु नहीं है; गोपी नाम ही इसलिये है कि गोपी अपने प्रेम को गुप्त रखने में समर्थ है, गोपन (छिपाने) करने में समर्थ है...
(एक संत के व्याख्यान से उद्धृत; साधना में लाभ हेतु साभार)
* ब्रजभाव माधुर्य
* श्री कृपालु भक्तिधारा प्रचार समिति
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