अनमोल तेरा जीवन यूँ ही गवाँ रहा है, किस ओर तेरी मंज़िल किस ओर जा रहा है।
सपनों की नींद में ही यह रात ढल न जाए, पल भर का क्या भरोसा यह जान निकल न जाए।
गिनती की ये साँसें यूँ ही लूटा रहा है, किस ओर तेरी मंजिल किस और जा रहा है।
जायेगा जब यहाँ से कोई न साथ देगा, इस हाथ जो किया है उस हाथ जा तू लेगा।
कर्मों की है यह खेती, फल आज पा रहा है । किस ओर तेरी मंज़िल किस और जा रहा है।
ममता के बंधनो ने क्यों आज तुझको घेरा, सुख में सभी हैं साथी, दुःख में कोई नहीं है तेरा।
तेरा ही मोह तुझको, कब से रुला रहा है। किस ओर तेरी मंज़िल किस और जा रहा है।
जब तक है भेद मन में, भगवान से जुदा है, देखे जो दिल का दर्पण, इस घर में ही ख़ुदा है।
सुख रूप होके भी तू दुःख आज पा रहा है, किस ओर तेरी मंजिल किस ओर जा रहा है।।
जय श्री राधे।
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