आप संसार के सबसे बड़े मूर्ख

 एक आश्चर्य की बात सुनिये।मैं आपसे यह कहूँ कि आप संसार के सबसे बड़े मूर्ख को ले आइये।मान लीजिये,आप लाये।मै उसे एक सप्ताह कोठरी में बन्द रखूँ,खाना न दूँ,पानी न दूँ।वह एक सप्ताह बाद कितना भूखा होगा यह आप नहीं सोच सकते।खैर,ऐसे भूखे घोर मूर्ख को सात दिन बाद स्वर्ण की थाली में बड़े आदर के साथ अनेक मेवा-मिष्ठान दिये जायें तो वह कितना खुश होगा!किन्तु यदि उसी के किसी विश्वासपात्र को रुपया आदि देकर,उससे उस मूर्ख के कान में यह कहलवा दिया जाय कि इस खाने में विष मिला है,इसे न खाना,तो वह तुरन्त खाना छोड़ देगा।आप उससे प्रश्न कीजिये-'तुम खाना क्यों नहीं खाते ? वह कहेगा,'इसमें विष मिला है,विष मारक होता है और हमें मरना नहीं है।' पुन: उससे पूछिये,'तुमने क्या कभी विष का अनुभव किया है ? वह कहेगा,'यह भी कोई प्रश्न है ? यदि विष का अनुभव किया होता तो मर गये होते।'तीसरा प्रश्न  कीजिये-'तुमने विष नामक वस्तु को कभी देखा है ? वह कहेगा,'नहीं।मैं क्यों देखूँ जिसे आत्महत्या करनी हो या दूसरे की हत्या करनी हो या डाक्टर आदि अन्य लोग देखें।'चौथा प्रश्न कीजिये-'तुमने इस खाने में कुछ मिलाते देखा है'? वह कहेगा,'नहीं,मैंने तो नहीं देखा,किन्तु मेरा मित्र कह रहा था।'

     अब विचार कीजिये कि सात दिन का भूखा मूर्ख विष के अनुभव के बिना ही एवं विष को न देखे हुए ही अपने मित्र की बात मानकर विश्वास कर लेता है और वह हजारों रुपये देने पर भी खाना नहीं खाता,किन्तु आप लोग संसार के  विषय विष का अनुभव करते हुए भी एवं देखते,पहिचानते हुए भी,बुद्धिमान् कहलाने वाले भी,उससे विरक्त नहीं होते।अब आप लोग सोच लीजिये कि आप कितने समझदार हैं।”

                                         

- जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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