💫अप्रैल 22, 2023: सुबह की भावपूर्ण साधना के मुख्य आकर्षण🎼
🌷✨जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की जय!✨🌷
जगद्गुरु आदेश:
दीनता बढ़ाओ -
हमें तीन बातें समझनी हैं और तीन काम करने हैं: 1 दीन भाव 2. रूपध्यान 3. श्यामा श्याम का नाम गुण लीलादि संकीर्तन। इन में से हम एक करते हैं - संकीर्तन। किन्तु दो नहीं करते। केवल रसना से संकीर्तन करना ऐसे है जैसे प्राण हीन शरीर। बिना दीनता और रूपध्यान के आंसू नहीं आयेंगे। बिना आंसू का कीर्तन, कीर्तन नहीं है।
1. दीन भाव - यह भक्ति के विषय में पहला अध्याय है - नम्रता बढ़ाओ। दीनता जितनी अधिक होगी, उतनी जल्दी हम गुरु और भगवान के प्रिय बनेंगे। अपने में सबसे नीचे की भावना रखो। माया के सब अवगुण हमारे अंदर हैं - अपने को अधम पतित रियलाइज़ करो।
सब में भगवान बैठे हैं। किसी के प्रति दुर्भावना न लाओ, दोष न देखो, नीचा न समझो, द्वेष न लाओ। निन्दनीय के प्रति भी निन्दनीय की भावना न हो क्योंकि इससे हमारा मन और गंदा हो जायेगा। इससे भगवान् और गुरु दुःखी होंगे।
मन में भगवान् और गुरु को लाओ, यही दो शुद्ध हैं, इन्हीं से मन शुद्ध होगा।
ईश्वरीय जगत में लोकरंजन की बुद्धि न लाओ। लोकरंजन की बुद्धि से बड़े बड़े योगीश्वरों का पतन हो गया।
2. रूपध्यान - मन से भगवान को सामने खड़ा करो। जितना मन भगवान् का रूपध्यान करेगा उतना ही भगवान् के पास जाओगे, भगवान् तुम्हारे पास आएंगे।
3.श्यामा श्याम नाम गुण लीला संकीर्तन - रोकर पुकारो।
सोते समय सोचो - आज हमने कहाँ अहंकार किया ? कहाँ हमने प्रतिष्ठा की भावना बनाई मन में ? यह मूर्ख मन ही हमें 84 लाख में घुमा रहा है।
अहंकार घोर शत्रु है उससे बचकर साधना करो। जिसके प्रति दुर्भवावना हो गई है, उससे क्षमा मांगें और मधुर व्यवहार करें - ऐसा व्यवहार करें कि वो जुट जाए।
इस तरह साधना करो और फिर देखो दिन प्रतिदिन कितनी उन्नति होगी। फिर देखो कृपालु बिना बुलाये बार बार आयेंगे और आपकी सेवा करेंगे।
कीर्तन:
- प्रथम नमन गुरुवर पुनि गिरिधर (ब्रज रस माधुरी 1, पृष्ठ सं. 31, संकीर्तन सं. 3)
- गहो रे मन ! श्याम चरण शरणाई (प्रेम रस मदिरा, सिद्धान्त माधुरी, पद सं. 37)
- हरे राम संकीर्तन + रामायण चौपाई
सीताराम चरन रति मोरे, अनुदिन बढ़ै अनुग्रह तोरे॥
उमा कहहुँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजन जगत सब सपना॥
कलयुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा॥
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