भगवान के उपर
आरोप प्रत्यारोप लगाते हुए
एक रसिक संत के विचार
हम मनुष्यों को स्वयं के लिए
क्या निश्चय करना चाहिए
अवश्यमेव चिंतन कीजिएगा
उपयुक्त डिसीजन लेने में देरी
क्यों कर रहे हैं हम
जबकि हम सभी यह जानते हैं
अगला स्वांस अगला क्षण
मिले ना मिले
बस अपने आपको
तुरंत का पैदा हुए बच्चे की तरह
उसीतरह शरणागति कर रोना है
जैसे जब छोटे बच्चे को
किसी भी आवश्यकता को
पूरा करवाने हेतु केवल अपनी
संसारी माँ के समक्ष रो देता है
और
उसकी मां बच्चे की
सभी आवश्यकताओं को पूरी
कर बच्चे को संतुष्ट कर देती है
ऐसे ही वो
ईश्वरीय पिताभी सभी जानता है
मेरे बेटे को क्या चाहिए
हमारे हृदय में इच्छा पनपते ही
तुरंत जान जाता है
मेरे बेटे को क्याचाहिए
यदि हम सभी भी
शरणागति कर रोकर
निष्काम भाव से पुकारेंगे
तो वो कृपामयी माँ
तुरंत अपनागोलोक तजि
नंगे पांव दौड़ी चली आएंगी
कृपा बरसाने हेतू
बड़ी कृपालु हैं
वो कृपामयी कृपालु माँ
जय श्री कृपालु जी महाराज
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